Union Budget 2025 Makhana Board: मखाना बोर्ड के ऐलान से क्या NDA को बिहार विधानसभा चुनाव में कोई फायदा होगा?

Nirmala Sitharaman Makhana Board: केंद्र सरकार ने बजट में बिहार के लिए कई बड़े ऐलान किए हैं। बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं इसलिए माना जा रहा है कि केंद्र की सरकार इस राज्य पर ज्यादा मेहरबान हुई है। जितने भी ऐलान बिहार के लिए किए गए हैं, उसमें से मखाना बोर्ड को लेकर कई गई घोषणा को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सवाल यह पूछा जा रहा है कि क्या इस ऐलान से बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को बिहार के विधानसभा चुनाव में कोई राजनीतिक फायदा होगा?

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा कि मखाने के प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन और इसकी मार्केटिंग करने के लिए मखाना बोर्ड की स्थापना की जाएगी। इसके बाद से ही मखाना बोर्ड को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है। बिहार और इसके बाहर रहने वाले लोग इस बात को जानना चाहते हैं कि आखिर बिहार के लिए मखाना बोर्ड का ऐलान किए जाने का क्या मतलब है?

आइए, इस बारे में कुछ जानते-समझते हैं।

पिछले कुछ सालों में मखाना या फॉक्स नट एक सुपर फूड के रूप में काफी पॉपुलर हुआ है। सोशल मीडिया पर आपने कई तरह की रील देखी होंगी जिसमें मखाने के बारे में बताया गया है कि यह कितना फायदेमंद है। इसे लेकर यूट्यूब पर भी कई वीडियो हैं। मखाने को स्नैक के रूप में भी काफी पसंद किया जाता है।

केजरीवाल के लिए कितना बड़ा झटका है 8 विधायकों का इस्तीफा, BJP-कांग्रेस इसका फायदा उठा पाएंगे?

मखाना प्रिकली वॉटर लिली या गॉर्डन प्लांट (Euryale ferox) का सूखा हुआ खाने वाला बीज है। यह पौधा दक्षिण और पूर्वी एशिया में मीठे पानी के तालाब में भी उगाया जाता है। इसमें बैंगनी और सफेद फूल होते हैं और इसकी गोल, कांटेदार पत्तियां 1 मीटर से भी ज्यादा चौड़ी होती हैं।

बिहार के मिथिलांचल में बड़े पैमाने पर मखाने का उत्पादन होता है। बिहार से मखाना देश के कई इलाकों में जाता है। मिथिलांचल के मखाने को जीआई टैग भी मिल चुका है। इसके बाद मखाने की मांग काफी बढ़ गई है। हालांकि लो प्रोडक्टिविटी, फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स का कम होना और अच्छी मार्केटिंग चेन ना होने की वजह से घरेलू और इंटरनेशनल मार्केट में मखाने की जिस पैमाने पर मांग है, बिहार उस मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है।

फैसला एक, असर सीधे 330 सीटों पर… मिडिल क्लास पर ऐसे ही इतनी मेहरबान नहीं हो रही मोदी सरकार

भारत में मखाने के कुल उत्पादन का लगभग 90% बिहार में होता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की 2020 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में 15 हजार हेक्टेयर जमीन पर मखाने की खेती होती है, जिससे लगभग 10,000 टन मखाना (पॉप्ड फॉर्म में) तैयार होता है।

मखाना उत्तरी और पूर्वी बिहार के नौ जिलों- दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, सुपौल, अररिया, किशनगंज और सीतामढ़ी में होता है। ये सभी जिले मिथिलांचल इलाके में आते हैं। इनमें से भी चार जिले (दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया और कटिहार) बिहार में होने वाले कुल मखाना उत्पादन का 80% पैदा करते हैं। बिहार के बाहर मखाने की खेती असम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और ओडिशा के साथ-साथ नेपाल, बांग्लादेश, चीन, जापान और कोरिया में भी की जाती है।

दिल्ली में केजरीवाल के साथ क्यों आए अखिलेश यादव, क्या टूट जाएगी ‘यूपी के दो लड़कों’ की जोड़ी?

मखाना लंबे वक्त से हिंदू धर्म के अनुष्ठानों का हिस्सा रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह अपने पौष्टिक गुणों के कारण लोगों की प्लेट तक पहुंच गया है। मखाने को कम वसा (low-fat) वाला, पोषक तत्वों से भरपूर और एक बेहतरीन हेल्दी स्नैक माना जाता है।

बिहार भारत में मखाने का सबसे बड़ा उत्पादक जरूर है लेकिन वह इसके बढ़ते बाजार का पूरा फायदा नहीं उठा पा रहा है। इसका बड़ा उदाहरण यह है कि भारत में मखाने के सबसे बड़े निर्यातक पंजाब और असम हैं जबकि पंजाब में तो मखाने की खेती तक नहीं होती। इसके पीछे तीन बड़ी वजहें हैं। बिहार में फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री विकसित नहीं हुई है। इसके अलावा बिहार के किसी भी हवाई अड्डे पर कार्गो की सुविधा नहीं है और इस वजह से निर्यात में मुश्किल आती है।

क्या दिल्ली का चुनाव तय करेगा इंडिया गठबंधन का भविष्य? राहुल-केजरीवाल की लड़ाई क्यों है BJP के लिए खुशी की वजह

बिहार के एक सीनियर ब्यूरोक्रेट ने नाम न छापने की शर्त पर द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “बिहार अपने मखाने को राज्य के बाहर एफपीयू (फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स) को सस्ते दामों पर कच्चे माल के रूप में बेच देता है। ये एफपीयू मखाने में स्वाद और पैकिंग करके इसे महंगे दामों पर बेचती हैं।” इसके अलावा बिहार में मखाने का बाजार असंगठित है और इस वजह से किसान और राज्य सरकार को इसका फायदा नहीं मिल पाता। इस वजह से ही मखाने की खेती करने वालों को बाजार में मखाने की तुलना में इसकी बहुत कम कीमत मिलती है।

मखाने की खेती बहुत मेहनत वाली होती है इससे इसकी लागत बढ़ जाती है। मखाने के बीजों को तालाबों या एक फुट गहरे पानी में बोया जाता है और इसकी कटाई करना मुश्किल होता है। मखाना सुखाने, भूनने और पॉपिंग की प्रक्रिया भी हाथ से ही की जाती है।

सीधी बात यही है कि बिहार में मखाने की बड़ी पैदावार होने के बावजूद प्रोसेसिंग और मार्केटिंग बेहतर न होने की वजह से किसान और राज्य सरकार को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है। अगर बिहार की सरकार फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स (FPUs) और एक्सपोर्ट की सुविधाओं को विकसित करे तो इससे दोनों को फायदा होगा।

पिछले साल बिहार सरकार ने केंद्र से मखाने के लिए एमएसपी की मांग की थी। मखाने की खेती और कटाई का काम मल्लाह (मछुआरे और नाविक) करते हैं और यह समुदाय काफी गरीब है। बिहार की आबादी में मल्लाहों की हिस्सेदारी सिर्फ़ 2.6% है। पिछले कुछ सालों में तमाम राजनीतिक दल उनका वोट हासिल करने की कोशिश करते रहे हैं। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि बिहार में करीब 10 लाख परिवार मखाने की खेती और प्रोसेसिंग से जुड़े हुए हैं। इसलिए यह एक बड़ा वोट बैंक भी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *