पापा जल्दी टीवी चलाओ, हमला हो गया… लालू राज में हुए सबसे बड़े जहानाबाद जेल कांड की पूरी कहानी

BIHAR ELECTIONS, LALU UADAV, JAHANABAD

Bihar Elections 2025: मैं बिहार हूं, मैंने अपनी धरती पर अपराध की अनगिनत कहानियां देखी हैं। समय-समय पर मेरे दामन पर हत्या, लूट, अपहरण, भ्रष्टाचार के दाग लगते रहे हैं। सरकारें बदली हैं, नेता नए आए हैं, लेकिन मेरी तकदीर में अपराध की रेखा इतनी गहरी और स्पष्ट है कि कोई चाहकर भी इसे नहीं मिटा पाया है। ऐसा ही एक किस्सा याद आता है जब जेल से ही एक खूंखार अपराधी भागा था, राबड़ी मुख्यमंत्री थीं, लालू सरकार चला रहे थे और मैंने सबसे बड़ा जेलब्रेक अपनी आंखों के सामने होते देखा था। मैं बिहार हूं और आज उसी जेलब्रेक की पूरी कहानी बताता हूं-

बात 2005 की है, लालू जेल में थे और राबड़ी बिहार की महिला मुख्यमंत्री। लेकिन उन्हें ना पढ़ना आता था और ना ही लिखना, ऐसे में राबड़ी का तो सिर्फ चेहरा था, सरकार लालू ही चला रहे थे। अपने कैबिनेट सेकरेट्री को आदेश देते रहते थे, उसी आधार पर कुछ फाइलें राबड़ी देवी के पास जाती थीं और फिर उन पर अंगूठा भी लगा दिया जाता था। दूसरी तरफ सारी ताकत लालू के दो सालों साधु और सुभाष के पास जा चुकी थी। बात चाहे शराब सेक्टर की हो, एक्साइज की हो, पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हो, तबादलना करना हो, सबकुछ इन दोनों की तरफ से डंके की चोट पर हो रहा था।

इसी वजह से कानून व्यवस्था भी हर बीतते दिन के साथ खराब होती जा रही थी, धमकियां मिलना आम हो चुका था, अपहरण रोज हो रहे थे। इस बीच ही जहनाबाद में कुछ बहुत बड़ा होने वाला था। 13 नवंबर, 2005 का एक फैक्स आया था जिसमें जहानाबाद पुलिस को चेताया गया। एक सीनियर पुलिस अधिकारी आरआर वर्मा ने लिखा था-

सूत्रों से ऐसी खबर मिली है कि 100 के करीब चरमपंथी लोग जहानाबाद के Nadaul और Kako इलाके में इकट्ठा हो रहे हैं। ये भी जानकारी मिली है कि झारखंड से भी एक टीम ने उन्हें ज्वाइन कर लिया है। वहां भी 6 से 7 युवकों को बाइक पर कुछ इनफॉर्मेशन शेयर करते हुए देखा है। लोकल लोगों से वो सभी बातें कर रहे थे। हमे तो पता चला है कि Nadaul रेलवे स्टेशन, काको पुलिस स्टेशन या फिर किसी मोबाइल पुलिस यूनिट पर हमला हो सकता है। प्लीज सभी रेलवे स्टेशन्स, पुलिस स्टेशन्स को अलर्ट कर दीजिए। अपनी फोर्स इकट्ठा कर लें इन चरमपंथियों से मुकाबला करने के लिए। उन लोगों के पास क्योंकि गाड़ियां भी होंगी, वो दूसरे इलाकों में जा सकते हैं। ऐसे में पूरे जिले को अलर्ट कीजिए, गया के डीआईजी खुद इसका संज्ञान लें।

आरआर वर्मा, IG (Operations), पटना

अब उस जमाने में जहानाबाद के एसपी सुनील कुमार हुआ करते थे, अब उन्हें वो फैक्स मिला या नहीं, क्या उन्होंने स्थिति का जायजा लिया या नहीं, आज तक इस राज से पर्दा नहीं उठ पाया है। इतना जरूर रहा कि उस दिन भी अपना काम खत्म कर एसपी सुनील कुमार शाम पांच बजे घर के लिए निकल गए थे। इसी तरह उस जमाने में गया के डीआईजी का नाम भी सुनील कुमार ही था, वे तब जहानाबाद से काफी दूर अजमेर में थे। वहीं जहानाबाद के डिस्ट्रिक्ट मेजिस्ट्रेट राणा अधेश पटना में मौजूद थे।

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इसके ऊपर जिस जहानाबाद में जेल में कुछ बड़ा करने की तैयारी थी, वहां कोई जेलर तक नहीं था। 6 महीने से वो पोस्ट खाली पड़ी थी, एक असिस्टेंट जेलर जरूर थे, लेकिन वो भी तब छुट्टी पर गए हुए थे। किसी को उस छुट्टी के बारे में तब पता भी था या नहीं, लेकिन जहानाबाद के जेल में सुरक्षा के कोई इंतजाम दिखाई नहीं दे रहे थे। फैक्स में साफ लिखा था कि हमला हो सकता है, लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई तैयारी नहीं दिख रही थी। दूर जहानाबाद पुलिस के ही सार्जेंट ऑल इंडिया रेडियो सुन रहे थे, खाने का इंतजार था, लेकिन तभी उनकी दिल्ली में बैठी बेटी का फोन आया। बेटी ने डरी-सहमी आवाज में बोला-

टीवी चलाओ पापा, नक्सली लोगों ने जहानाबाद जेल पर हमला किया है, बम फटा है, सुनाई नहीं दिया क्या। यहां सबकुछ टीवी पर आ रहा है।

सार्जेंट नवल चंद्र, बिहार पुलिस

अब सभी को पता चल चुका था कि जहानाबाद जेल पर हमला किया गया है। फैक्स में जिस बात का डर था, वो सच साबित हुआ। माओवादियों ने अपने मिशन को पूरा कर लिया था। जहानाबाद में कई जगह धमाके हुए, जेल के दो जूनियर अधिकारियों को भी गोली लगी और देखते ही देखते जहानाबाद जेल से 200 कैदियों को भगा दिया, वहां भी माओवादी संगठन का कमांडर अजय कानू का भागना सबसे ज्यादा चर्चा में आया।

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हिम्मत इतनी ज्यादा रही कि जहानाबाद जेल की दीवारों पर इन माओवादियों ने सरकार को सीधी चुनौती देने का काम किया, किसी बात का डर उन्हें नहीं था, उनके साथ क्या हो सकता था, ऐसा कभी सवाल ही नहीं आया। तल्ख अंदाज में उस समय की सरकार को धमकी देते हुए जेल की दीवारों पर लिख दिया गया-

चेतावनी जान हो, समानती सरकार के चंगुल से अपने कामरेडों को मुक्त करने आएंगे जल्द ही। लाल सलाम

अब ये सिर्फ चेतावनी भर नहीं थी, इस बात को अमलीजामा पहनाया गया और बिहार ने अपना सबसे बड़ा जेल कांड देख लिया जहां सरकार सोती रह गई, प्रशासन समय रहते हरकत में नहीं आ पाया और नाक के नीचे 200 खूंखार अपराधी भाग गए।

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