Operation Mahadev: लिडवास में सेना का ‘ऑपरेशन महादेव’ जारी, 3 आतंकी ढेर

Operation Mahadev: जम्मू-कश्मीर के लिडवास में सेना का ऑपरेशन महादेव जारी है। चिनार कॉर्प्स ने एक जारी बयान में सिर्फ इतना कहा है कि कॉन्टैक्ट इस्टैब्लिश हो चुका है और ऑपरेशन अभी जारी है। आर्मी ने बताया है कि अब तक तीन आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जिन आतंकियों को घेरा गया है, उनका कनेक्शन पहलगाम हमले से हो सकता है।

जानकारी के लिए बता दें कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने 26 पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया था। उस आतंकी हमले के बाद ही भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान में स्थित आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया, इस कार्रवाई का नाम ऑपरेशन सिंदूर रखा गया था। दावा हुआ कि 100 से ज्यादा आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया गया।

अब पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकाने तो ध्वस्त हुए, लेकिन एक सवाल कायम रहा- पहलगाम हमले को अंजाम देने वाले दोषी कहां हैं? उनकी पहचान कब तक होने वाली है? अब इस समय जो ऑपरेशन महादेव चल रहा है, उसी को लेकर चर्चा है कि इसके जरिए पहलगाम के दोषियों तक पहुंचा जा सकता है, संभावना यह भी जता दी गई है कि सेना ने जिन आतंकियों को घेरा है, उनका हाथ 22 अप्रैल के हमले में हो सकता है।

बताया जा रहा है कि इस ऑपरेशन को संयुक्त रूप से सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने मिलकर अंजाम दिया है, जिन आतंकियों को भी मौत के घाट उतारा गया है, उनका कनेक्शन TRF से हो सकता है। TRF वही आतंकी संगठन है जिसने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी ली थी, कुछ दिन पहले ही अमेरिका ने भी उसे ग्लोबल टेररिस्ट ऑर्गनाइजेशन घोषित कर दिया था।

जिन आतंकियों को सेना ने मार गिराया है, उनके पास से भारी हथियार भी बरामद हुए हैं। तीनों ही आतंकी घने जंगलों में छिपे हुए थे, लेकिन उनकी कुछ संदिग्ध बातचीत सामने आई और उसी से इनपुट लेते हुए ऑपरेशन महादेव चलाया गया।

‘जांच पूरी होने का क्यों किया इंतजार?’ जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल

Justice Yashwant Varma News: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर ही सवाल उठाए। आंतरिक जांच समिति ने नकदी बरामदगी विवाद में जस्टिस यशवंत वर्मा को दोषी पाया था।

जब जस्टिस यशवंत वर्मा मार्च में दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे तो उनके सरकारी आवास से कथित तौर पर बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी मिली थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने वर्मा की पैरवी करने वाले वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि जस्टिस जांच समिति के सामने क्यों पेश हुए? क्या आप अदालत इसलिए आए थे कि वीडियो हटा दिया जाए?

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सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा पर सवाल खड़े किए और कहा कि आपने जांच पूरी होने और रिपोर्ट जारी होने का इंतज़ार क्यों किया? क्या आप समिति के पास यह सोचकर नही गए, कि शायद आपके पक्ष में फैसला आ जाए?’ न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा से उनकी याचिका में बनाए गए पक्षकारों को लेकर सवाल किए और कहा कि उन्हें उनकी याचिका के साथ आंतरिक जांच रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए थी।

लिडवास में सेना का ‘ऑपरेशन महादेव’ जारी, 3 आतंकी ढेर

जस्टिस वर्मा की तरफ से पेश वकील कपिल सिब्बल ने पीठ के समक्ष कहा कि अनुच्छेद 124 (सुप्रीम कोर्ट की स्थापना और गठन) के तहत एक प्रक्रिया है और किसी न्यायाधीश के बारे में सार्वजनिक तौर पर बहस नहीं की जा सकती है। सिब्बल ने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर वीडियो जारी करना, सार्वजनिक टीका टिप्पणी और मीडिया द्वारा न्यायाधीशों पर आरोप लगाना प्रतिबंधित है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह एक पन्ने पर ‘बुलेट प्वाइंट’ में लिख कर लाएं और वर्मा की याचिका में पक्षकार बनाए गए लोगों के ज्ञापन को सही करें। न्यायालय अब इस मामले पर 30 जुलाई को सुनवाई करेगी। जस्टिस यशवंत वर्मा ने भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा आठ मई को की गई उस सिफारिश को भी रद्द किए जाने का अनुरोध किया था, जिसमें उन्होंने (खन्ना) संसद से उनके (वर्मा) खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया था।

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अपनी याचिका में जस्टिस वर्मा ने कहा कि जांच ने साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी बचाव पक्ष पर डाल दी, जिसके तहत उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जांच करने और उन्हें गलत साबित करने का भार उन पर डाल दिया गया है। जस्टिस वर्मा ने आरोप लगाया कि समिति की रिपोर्ट पहले से तय धारणा पर आधारित थी। उन्होंने कहा कि जांच की समय-सीमा केवल कार्यवाही को जल्द से जल्द समाप्त करने की इच्छा से प्रेरित थी, चाहे इसके लिए “प्रक्रियात्मक निष्पक्षता” से ही क्यों न समझौता करना पड़े।

जस्टिस वर्मा की याचिका में तर्क दिया गया कि जांच समिति ने वर्मा को पूर्ण और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिए बिना ही उनके खिलाफ निष्कर्ष निकाल दिया। घटना की जांच कर रही जांच समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां आग लगने की घटना के बाद बड़ी मात्रा में आधी जली हुई नकदी मिली थी, जिससे उनका कदाचार साबित होता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।

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थाईलैंड ने F-16 विमान से कंबोडिया पर किया अटैक, जानिए क्यों आपस में भिड़े हुए हैं दोनों बौद्ध देश

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच तनाव चरम पर हैं। अब थाईलैंड ने कंबोडिया पर F-16 फाइटर जेट के जरिए बमबारी की है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने थाईलैंड आर्मी के हवाले से बताया कि थाईलैंड – कंबोडिया की सीमा पर थाईलैंड द्वारा तैनात किए गए छह F-16 फायटर जेट्स में से एक ने गुरुवार को कंबोडिया पर बम गिराए और एक मिलिट्री टारगेट को नष्ट कर दिया।

गुरुवार सुबह इन दोनों ही बौद्ध देशों ने गुरुवार सुबह एक-दूसरे पर अटैक करने के आरोप लगाए। थाईलैंड आर्मी की डिप्टी स्पोक्स पर्सन ऋचा सुक्सुवानोन ने बताया कि उन्होंने प्लान के मुताबिक मिलिट्री टारगेट्स के खिलाफ हवाई ताकत का इस्तेमाल किया है।

कंबोडिया की डिफेंस मिनिस्ट्री ने बताया कि थाईलैंड के विमानों ने सड़क पर बम गिराए। उन्होंने कहा कि वे “कंबोडिया की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के विरुद्ध थाईलैंड के लापरवाह और क्रूर सैन्य आक्रमण की कड़ी निंदा करते हैं।”

रॉयटर्स द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, दोनों बौद्ध देशों के बीच तनाव तब और ज्यादा गहरा गया, जब थाईलैंड ने कंंबोडिया से अपना राजदूत वापस बुला लिया और कहा कि वो कंबोडिया के राजदूत को वापस भेज देंगे। इससे पहले थाईलैंड ने कंबोडिया पर आरोप लगाया कि उसने विवाद वाले इलाके में लैंड माइन बिछाई हुई हैं, जिससे एक हफ्ते के भीतर दूसरे थाई सैनिक ने अपने अंंग खो दिए। थाईलैंड का कहना है कि कंबोडिया से टकराव में उसके नौ नागरिकों मारे जा चुके हैं। कंबोडिया का कहना है कि जिन लैंड माइन्स की बात थाईलैंड कर रहा है, वो दशकों पर सिविल वार के समय की हैं। हालांकि थाईलैंड मानता है कि सीमावर्ती एरिया में ये लैंडमाइन हाल में बिछाए गए हैं।

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थाईलैंड के विदेश मंत्रालय ने कहा कि कंबोडिया के सैनिकों ने उसके मिलिट्री बेस पर गुरुवार सुबह हैवी आर्टिलरी फायरिंग की और अस्पताल सहित उसके सिविलियन एरिया को निशाना बनाया। उन्होंने कहा कि अगर कंबोडिया अपने हमले और थाईलैंड की संप्रभुता के उल्लंघन पर अड़ा रहा तो रॉयल थाई सरकार अपनी आत्मरक्षा के उपायों को और तेज करने के लिए तैयार है।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, थाईलैंड के सीमावर्ती सुरिन राज्य के लोगों ने कंक्रीट से बने आश्रय स्थलों में पनाह ली हुई है। इन जगहों के आसपास रेत की बोरियां और कार के टायर लगाए गए हैं। एक महिलाल ने थाईलैंड की सरकारी टीवी चैनल को बताया कि अनगिनत गोलियां उनकी तरफ दागी गईं।

कंबोडिया के विदेश मंत्रालय े कहा कि थाईलैंड की तरफ से बिना किसी उकसावे के बावजूद एयर स्ट्राइक की गई। कंंबोडिया ने अपने पड़ोसी से अपनी सेना वापस बुलाने और ऐसी किसी भी एक्शन से बचने के लिए कहा, जिससे हालात बिगड़ें।”

थाईलैंड और कंबोडिया अपनी 817 किलोमीटर लंबी बॉर्डर शेयर करते हैं। 100 सालों से भी अधिक समय से दोनों देश अपनी सीमा पर अन-मार्क्ड पॉइंट्स पर कंट्रोल को लेकर संघर्षरत हैं। इस वजह से कई वर्षों से झड़पें हो रही हैं और इन झड़पों में कम से कम एक दर्जन मौतें हो चुकी हैं। इनमें साल 2011 में एक हफ्ते तक चली आर्टिलरी फायरिंग भी शामिल है। इस साल मई में विवाद तब फिर से बढ़ गया, जब दोनों देशों की सेनाओं के बीच फायरिंग हुई और कंबोडिया के एक सैनिक की मौत हो गई। इस वजह से राजनयिक संकट भी पैदा हो गया।

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India-UK FTA News: सॉफ्ट ड्रिंक्स, कॉस्मेटिक्स, मेडिकल उपकरण होंगे सस्ते… ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौते से भारत को कितना फायदा होगा?

UK India Vision 2035: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिटेन के दौरे पर हैं और इस दौरान भारत और ब्रिटेन के बीच Free Trade Agreement (FTA) पर दस्तखत किए गए हैं। कहा जा रहा है कि इससे दोनों देशों के बीच होने वाला व्यापार हर साल 34 बिलियन डॉलर तक बढ़ जाएगा और यह दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों को एक नया आकार देने वाला साबित होगा।

इसके साथ ही दोनों देश ट्रेड, डिफेंस, एजुकेशन और जलवायु से जुड़े मुद्दों को लेकर UK-India Vision 2035 रोड मैप को सामने रखेंगे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने इसे एक ऐतिहासिक समझौता बताया है।

अब बात करते हैं कि भारत के लिए इस समझौते में क्या है, यानी भारत को इससे क्या फायदा होगा?

इस समझौते के होने के बाद भारत की कंपनियों को ब्रिटिश मार्केट में ज्यादा पहुंच मिलेगी, टैरिफ कम होंगे और इससे व्यापार करना आसान होगा। जबकि ब्रिटिश एक्सपोर्टर्स के लिए वहां के प्रोडक्ट जैसे कि- सॉफ्ट ड्रिंक, कॉस्मेटिक, मेडिकल इक्विपमेंट और ऑटोमोबाइल पर लगने वाले टैरिफ 15% से घट कर सिर्फ 3 प्रतिशत रह जाएंगे और इससे भारत के लोगों के लिए स्वाभाविक रूप से इनकी कीमतें कम हो जाएंगी। यानी ये प्रोडक्ट सस्ते हो जाएंगे।

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ब्रिटेन हर साल भारत से 11 अरब डॉलर के सामान का आयात करता है। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि इस समझौते के होने के बाद ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर नौकरियों के मौके बनेंगे। खुद प्रधानमंत्री स्टारमर ने कहा है कि इस समझौते से देश के हर कोने में विकास को रफ्तार मिलेगी।

समझौते के होने के बाद व्यापार करने में आने वाली मुश्किलें भी कम होंगी और व्यापार से जुड़ी प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाएगा। भारत सरकार की ओर से कहा गया है कि यह समझौता काफी व्यापक है और ब्रिटेन के साथ रणनीतिक संबंधों की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

लगभग 99% भारतीय प्रोडक्ट्स को ब्रिटिश बाज़ार में duty-free access मिलेगा। इसमें कपड़ा, फुटवियर, आभूषण, ऑटो कंपोनेंट, मशीनरी, रसायन, खेल के सामान, फर्नीचर और दवा जैसे क्षेत्रों के उत्पाद शामिल हैं।

स्कॉच व्हिस्की और जिन (Scotch whisky and gin) पर आयात शुल्क 150% से घटकर 75% हो जाएगा। अगले 10 सालों में यह घटकर 40% हो जाएगा। यूके में बनी कारों पर भारत में 100% से ज्यादा टैक्स लगता है लेकिन अब यह घटकर सिर्फ 10% होगा, लेकिन ऐसा कोटे के आधार पर होगा।

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फुटवियर के मामले को देखें तो भारतीय कंपनियों को Zero-duty access मिलेगा। इससे आगरा, कानपुर और चेन्नई के मैन्युफैक्चरर को फायदा होगा। भारतीय EV और हाइब्रिड वाहन बनाने वाली कंपनियों को UK में निर्यात पर कम टैक्स देना होगा। इससे Tata Motors और Mahindra Electric को फायदा होगा।

इसके अलावा ऑटो कम्पोनेंट और इंजीनियरिंग सामान, मेडिकल उपकरण और फर्नीचर, खिलौने-खेल के सामान बनाने वाली कंपनियों को भी इस डील के होने के बाद मुनाफा होगा।

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Fact Check: दुबई में आई बाढ़ का पुराना वीडियो नई दिल्ली एयरपोर्ट का बताकर वायरल, दावा झूठा

लाइटहाउस जर्नलिज्म को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक वीडियो मिला जो तेजी से वायरल हो रहा था। इस वीडियो में दावा किया गया था कि इसमें नई दिल्ली हवाई अड्डे पर आई बाढ़ को दिखाया गया है।

जांच के दौरान, हमने पाया कि यह वीडियो वास्तव में दुबई का है, न कि नई दिल्ली का। वायरल दावा भ्रामक है।

X यूज़र HASSAN ने इस वीडियो को एक भ्रामक दावे के साथ साझा किया।

Airplane 🛫✈️ ocean 🌊 me take off karte howe. Aase manzar kabhi nahi dehka hoga.#DelhiRains #Airport pic.twitter.com/1wtNe1A9rc

अन्य यूज़र भी इसी तरह के दावे के साथ यह वीडियो साझा कर रहे हैं।

दिल्ली एयरपोर्ट तो समन्दर बन गया..😱 निजामुद्दीन अहमद वारसी pic.twitter.com/IEpHoTreEK

हमने वायरल वीडियो से प्राप्त कीफ्रेम्स पर रिवर्स इमेज सर्च चलाकर जांच शुरू की, जिसमें वीडियो पर मौजूद टेक्स्ट को हटा दिया गया था।

इसके माध्यम से, हमें 2024 में YouTube पर अपलोड किया गया एक वीडियो मिला। वीडियो से पता चला कि इसमें दुबई हवाई अड्डे को दिखाया गया था।

हमें यह वीडियो 2024 में फुल स्काईवे के फेसबुक पेज पर भी मिला।

हमें डेली मेल की X प्रोफ़ाइल पर भी एक समान वीडियो मिला।

🚨 BREAKING: Dubai is UNDERWATER as floods submerge the city pic.twitter.com/XN7hmkA4oJ

हमें joe.co.uk पर एक लेख भी मिला।

आर्टिकल में कहा गया है: दुबई में एक दिन में दो साल के बराबर बारिश होने के बाद भारी बाढ़ आई है। दुबई में आमतौर पर हर साल औसतन केवल 3.12 इंच बारिश होती है। खराब मौसम की स्थिति के कारण दुबई हवाई अड्डे से उड़ानें डायवर्ट और रद्द कर दी गईं जिससे पूरे शहर में हालात बिगड़ गए।

हमें TRT वर्ल्ड के YouTube चैनल पर भी ऐसा ही वीडियो मिला।

निष्कर्ष: दुबई हवाई अड्डे में आई बाढ़ का 2024 का वीडियो नई दिल्ली एयरपोर्ट का बताकर शेयर किया जा रहा है। वायरल वीडियो गुमराह करने वाला है।

शिव मंदिर को लेकर थाईलैंड और कंबोडिया में युद्ध, भारत किसका करेगा समर्थन?

Thailand-Cambodia War: हजारों साल पुराने शिव मंदिर को लेकर थाईलैंड और कंबोडिया के बीच में जंग छिड़ चुकी है, रॉकेट दागे जा रहे हैं, जंग में फाइटर जैट भी कूद चुके हैं। माना जा रहा है कि इस युद्ध में चीन भी एक अहम भूमिका निभा सकता है। यहां भी उसके दोनों देशों के साथ रिश्ते अच्छे हैं, लेकिन क्योंकि थाईलैंड के साथ आर्थिक साझेदारी ज्यादा चल रही है, ऐसे में माना जा रहा है कि दबाव कंबोडिया पर बनाया जा सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भारत का क्या स्टैंड रहने वाला है? भारत थाईलैंड का समर्थन करेगा या वो कंबोडिया के साथ जाएगा?

अब इस सवाल का सीधा जवाब है- भारत ऐसे मामलों में ना कभी पूरी तरह थाईलैंड का समर्थन करने वाला है और ना ही वो कंबोडिया का समर्थन करेगा। भारत तो हमेशा की तरह ऐसे मामलों में न्यूट्रल रहता है, वो बैलेंसिंग करने की कोशिश करता है। इसका भी अपना कारण है। बात चाहे थाईलैंड की हो या फिर कंबोडिया की, भारत के दोनों के साथ रिश्ते काफी अच्छे हैं। दोनों देशों के साथ अलग-अल क्षेत्रों में कई सालों से सहयोग चल रहा है। ऐसे में किसी एक देश को समर्थन कर भारत दूसरे के साथ रिश्ते बिगाड़ने का रिस्क नहीं ले सकता।

भारत के थाईलैंड के साथ रिश्ते काफी मजबूत हैं। दोनों ही देश इस समय Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation (BIMSTEC) का हिस्सा हैं, इसके ऊपर एक्ट ईस्ट पॉलिसी की वजह से भी मजबूत साझेदारी देखने को मिलती है। वहीं भारत और थाईलैंड समय-समय पर ज्वाइंट मिलिट्री एक्सरसाइज भी करता है, बात चाहे मैत्री की हो या फिर Siam Bharat की। दोनों ही देशों की नेवी भी समय-समय पर संयुक्त अभ्यास करती रहती है।

व्यापार की बात करें तो भारत और थाईलैंड के बीच में 18 बिलियन डॉलर का कारोबार चलता है। यहां भी ndia-ASEAN Free Trade Agreement के जरिए भारत ट्रेड को और ज्यादा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। इसके ऊपर इंडिया-म्यांमार-थाईलैंड ट्राइलेट्रल हाईवे का जिक्र करना भी जरूरी है, इस एक हाईवे की वजह से भारत और साउथईस्ट एशिया के बीच में कनेक्टिविटी काफी मजबूत हो जाएगी।

अब बात अगर कंबोडिया की करें तो यह थाईलैंड की तुलना में छोटा और कमजोर देश है, भारत के इसके साथ भी सांंस्कृतिक, व्यापारिक रिश्ते हैं। भारत पिछले कई दशकों से कंबोडिया की आईटी, इंफ्रास्ट्रक्चर, एजुकेशन के क्षेत्र में मदद कर रहा है। इसके ऊपर कई मंदिरों का जीर्णोद्धार भी भारत की मदद से हुआ है। भारत तो पिछले कई सालों से कंबोडिया की सेना को भी ट्रेन कर रहा है, वहां भी बड़े स्तर पर मदद दी जा रही है। बात चाहे काउंटर टेररिज्म ट्रेनिंग की हो या फिर कैपिसिटी बिल्डिंग की, भारत ने हमेशा कंबोडिया को सहारा दिया है।

बात अगर व्यापार की करें तो भारत और कंबोडिया में 300-400 मिलियन डॉलर का कारोबार है। यहां भी भारत अब आने वाले समय में एग्रिकल्चर और टेक्सटाइल सेक्टर में भी अपनी साझेदारी बढ़ाने पर विचार कर रहा है। इसके ऊपर कुछ समय पहले कंबोडिया Mekong-Ganga Cooperation फ्रेमवर्क का भी हिस्सा भी बन चुका है, इससे भारत के साथ सांस्कृति, पर्यटक और शैक्षणिक रिश्ते अच्छे हुए हैं।

यहां पर एक समझने वाली बात यह भी है कि भारत एक्ट ईस्ट पॉलिसी में काफी मानता है, ASEAN देशों के साथ उसके रिश्ते अच्छे रहे, इस बात को प्राथमिकता दी जाती है। मोदी सरकार के आने के बाद तो एक्ट ईस्ट पॉलिसी को और ज्यादा बल मिला है। यहां भी चीन के प्रभाव को कम करने के लिए भी ASEAN देशों के साथ रिश्ते मजबूत करने की कवायद होती है। इसी वजह से जानकार मानते हैं कि थाईलैंड और कंबोडिया के बीच में छिड़ी जंग ना सिर्फ ASEAN देशों के बीच जारी आपसी साझेदारी को झटका देगा बल्कि कहीं ना कहीं भारत की रणनीति को भी नुकसान पहुंचाएगा।

इसी वजह से कहा जा रहा है कि इस बार भी भारत किसी एक देश का साथ नहीं लेने वाला है बल्कि वो शांति पर फोकस करेगा, किस तरह से दोनों देशों को बातचीत की टेबल पर लाया जाए, इस पर जोर दिया जाएगा। वैसी इसी नीति पर भारत रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान-इजरायल जंग में भी चल चुका है, ऐसे में यहां भी उसी सिद्धांत पर आगे बढ़ने की तैयारी है।

चीन की एक रणनीति रही है जहां पर कमजोर देशों को ज्यादा से ज्यादा कर्ज देकर उन्हें डैप्ट ट्रैप में फंसा लेता है। बात चाहे नेपाल की हो या फिर श्रीलंका की, वो ऐसा कर चुका है, बांग्लादेश के साथ भी ऐसा हो रहा है। इसके ऊपर ऐसे सभी देशों के साथ कई क्षेत्रों में चीन साझेदारी बढ़ता है, कारण स्प्ष्ट है, वो भारत को आगे बढ़ने का और विस्तार करने का मौका नहीं देना चाहता। इसी वजह से इस युद्ध में भी अगर चीन कमजोर कंबोडिया का साथ देता है और भारत खुलकर थाईलैंड के समर्थन में उतर जाता है, तो यह हिंदुस्तान की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के लिए झटका होगा। कंबोडिया अगर औ ज्यादा चीन के करीब गया, उस स्थिति में भी चिंता भारत की बढ़ने वाली है।

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद कोई नई बात नहीं है। यह एक सदी से भी ज़्यादा पुराना है जब कंबोडिया पर फ़्रांसीसी औपनिवेशिक कब्ज़े के दौरान दोनों देशों के बीच सीमाएं पहली बार खींची गई थीं। 2008 में जब कंबोडिया ने विवादित सीमा क्षेत्र में स्थित 11वीं सदी के एक मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में रजिस्टर करने की मांग की तो दोनों देशों के बीच दुश्मनी और बढ़ गई।

इस कदम के बाद थाईलैंड में भयंकर विरोध प्रदर्शन हुए और सशस्त्र संघर्षों की एक श्रृंखला शुरू हो गई, जिसमें सबसे घातक संघर्ष 2011 में हुआ, जब हफ़्ते भर चली लड़ाई में 15 लोग मारे गए और हज़ारों लोग विस्थापित हुए। तब से, समय-समय पर छिटपुट झड़पें होती रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप सैनिकों और नागरिकों दोनों की जानें गईं। मई में सीमा पर हुई झड़प में एक कंबोडियाई सैनिक की मौत के बाद तनाव की यह मौजूदा लहर शुरू हुई। उस घटना ने संबंधों को एक दशक से भी ज़्यादा समय के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया।

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Snake Rescuer Death: जान ले रही सोशल मीडिया पर सांपों के साथ रील डालने की ‘सनक’, जिंदगी को दांव पर क्यों लगा रहे लोग?

Snake Rescuer Deepak Mahawar: सोशल मीडिया पर आपने कई ऐसी रील देखी होंगी जिसमें लोग अपने गले में या हाथों में सांप को लेकर खतरनाक स्टंट करते दिखाई देते हैं। इस तरह की सनक या कुछ हटकर करने की कोशिश जानलेवा साबित हो रही है। ऐसा सिर्फ लोग सोशल मीडिया पर वायरल होने के लिए करते हैं और पैसा कमाने के लिए भी लेकिन वे इतना भी नहीं सोचते कि इसमें कहीं उनकी जान चली गई तो?

क्या सोशल मीडिया पर वायरल होने के लिए हम अपनी जान को दांव पर लगा सकते हैं, क्या ये निहायत ही बेवकूफी भरा काम नहीं है? आइए कुछ ऐसे मामलों को देखते हैं जिनमें सांपों को बचाने वाले स्नेक रेस्क्यूर्स कैसे अपनी जान गंवा चुके हैं।

हाल ही में मध्य प्रदेश के गुना जिले में दीपक महावर की मौत हो गई। मौत के बाद दीपक महावर की एक क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें उनके गले में कोबरा लटका हुआ था लेकिन इस जहरीले सांप के काटने की वजह से उनकी जान नहीं बच सकी।

बच्ची को गेट खोलते ही दिखा फन फैलाए बैठा काला नाग, डरकर लगी भागने, सांप भी करने लगा पीछा और फिर…

6 जुलाई को बिहार के वैशाली में ‘सर्प मित्र’ कहे जाने वाले जेपी यादव की कोबरा के काटने से मौत हो गई। इसी साल मई में बिहार में कोबरा बचाओ अभियान के दौरान समस्तीपुर में ‘स्नेक मैन’ जय कुमार साहनी को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। इस साल मार्च में ही तमिलनाडु के कोयंबटूर में भी संतोष कुमार के साथ ऐसा ही हुआ और अगस्त 2023 में सांपों को बचाने वाले के. मुरली की रसेल वाइपर नाम के सांप के काटने की वजह से मौत हो गई।

2023 में कर्नाटक के ‘सांप’ कहे जाने वाले नरेश अपने स्कूटर में एक कोबरा सांप को रखकर ले जा रहे थे जिसने उन्हें काट लिया और उनकी मौत हो गई। 2021 में राजस्थान के पाली में ‘snake expert’ मनीष वैष्णव की मौत हो गई थी। मनीष वैष्णव को फेसबुक लाइव के दौरान कोबरा ने काट लिया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी।

लड़की के गले में लिपट गया जहरीला नाग, फन फैलाकर रेंगने लगा सांप फिर..

सोशल मीडिया पर ऐसा देखा गया है कि सांप को लेकर किए जाने वाले स्टंट काफी वायरल होते हैं और लोग अपने फॉलोवर्स की संख्या बढ़ाने के लिए सांप के साथ स्टंट करते हैं। इससे उन्हें नाम और पैसा भी मिलता है लेकिन कई बार इसमें जान भी चली जाती है। जैसा हमने ऊपर आपको कुछ उदाहरण में बताया है।

कई लोग सिर्फ सोशल मीडिया पर पॉपुलर होने और पैसे कमाने के लिए ही सांपों के साथ बेहद खतरनाक स्टंट करते हैं जबकि कुछ लोग सांपों को बचाने के काम से पैसे कमाने के लिए जुड़े हुए हैं। कई लोगों की मौत होने के बाद सोशल मीडिया पर इसे लेकर काफी गंभीर चर्चा हो रही है।

भारत में कई बड़े ‘स्नेक इनफ्लुएंसर’ हैं। जैसे- उत्तर प्रदेश के मुरलीवाले हौसला, उनके यूट्यूब पर 1.6 करोड़ सब्सक्राइबर और इंस्टाग्राम पर 36 लाख फॉलोअर हैं। छत्तीसगढ़ के कमल चौधरी के यूट्यूब पर 12 लाख, कर्नाटक के स्नेक हरिहा के 2 लाख सब्सक्राइबर हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे यूटयुबर्स हैं जो सांपों के साथ वीडियो बनाकर लगभग एक लाख सब्सक्राइबर बना चुके हैं।

भारत के कई राज्यों में सांपों को बचाने के लिए नियम बनाए गए हैं। ज्यादातर जगहों पर फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को सांपों को पकड़ने के लिए ऐसे ही ‘स्नेक रेस्क्यूर्स’ के भरोसे रहना पड़ता है। विशेष रूप से बरसात के मौसम में सांपों के मिलने की घटनाएं बहुत ज्यादा होती हैं।

मध्य प्रदेश में फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के एक सीनियर अफसर ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हमारे पास प्रशिक्षित लोगों की कमी है और इसलिए हमें प्राइवेट लोगों की सेवाएं लेनी पड़ती हैं।

क्या सच में होते हैं इच्छाधारी नाग? जानें क्या कहता है विज्ञान

भारत में सांपों की चार खतरनाक प्रजातियां हैं और यह सांप बेहद जहरीले हैं। इनमें krait (Bungarus caeruleus), cobra (Naja naja) saw-scaled viper (Echis carinatus) और (Russell’s viper) हैं। सांपों के साथ किसी प्रकार का स्टंट करना, उनके साथ करतब दिखाना, उन्हें छेड़ना वाइल्डलाइफ एक्ट के तहत अपराध है और इसके लिए सजा भी हो सकती है लेकिन बावजूद इसके लोग ऐसा धड़ल्ले से करते हैं।

Wildlife Trust of India के मुख्य अधिकारी जोस लुइस बताते हैं, “बचाव के दौरान सांप उत्तेजित होता है और अगर उसे काटने का मौका मिलता है तो वह ज्यादा मात्रा में जहर छोड़ सकता है।” जबलपुर के विवेक शर्मा बताते हैं कि सांपों को बचाने वाले ज्यादातर लोग 40 साल से कम उम्र के हैं, कम पढ़े-लिखे हैं और सामान्य घरों से आते हैं। उनके सामने आर्थिक मजबूरियां होती हैं और वह इस काम में होने वाले जोखिम का अंदाजा नहीं लगा पाते।

सांप को बचाना बेहद ही जिम्मेदारी भरा और जोखिम वाला काम है। इसे उन्हीं लोगों को करना चाहिए जिन्हें इसकी जानकारी हो। सोशल मीडिया पर वायरल होने के लिए इस तरह का कॉन्टेंट बनाना आपकी जान पर भारी पड़ सकता है।

बेहद जहरीला होता है धरती का ये सांप, एक बार में ले सकता है 20 लोगों की जान

Fact Check: पुराने वीडियो को कंबोडिया के थाईलैंड पर हालिया हमले का बताकर किया शेयर, दावा भ्रामक

लाइटहाउस जर्नलिज्म को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर व्यापक रूप से शेयर किया जा रहा एक वीडियो मिला। रॉकेट दागते हुए दिखाए गए इस वीडियो में दावा किया गया था कि कंबोडिया ने थाईलैंड पर RM-70 रॉकेट दागे हैं।

जांच के दौरान, हमने पाया कि यह वीडियो 2022 का था, जो कथित तौर पर यूक्रेन-रूस संघर्ष से संबंधित था। वायरल दावा भ्रामक है।

एक्स (X) यूजर NOOR AL HAQ NEWS ने भ्रामक दावे के साथ वायरल वीडियो शेयर किया।

🚨BREAKING: Cambodia just fired RM-70 rockets at Thailand — 20+ dead, mostly civilians. 🇰🇭⚔️🇹🇭Border villages hit without warning.This war just escalated — fast. pic.twitter.com/cv5U0utLNn

अन्य यूजर भी इसी वीडियो को भ्रामक दावे के साथ शेयर कर रहे हैं।

🚨कंबोडिया ने एक बार फिर थाईलैंड के सिसाकेत प्रांत पर BM-21 रॉकेट दागे।अब तक 20 से अधिक थाई नागरिकों की मौत की पुष्टि।जारी युद्ध में आम नागरिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है।#Cambodia #Thailand #RocketAttack #BreakingNews pic.twitter.com/Zla7B4Jqcl

Additional civilian casualties reported after Cambodia again fired BM-21 rockets at Thailand’s Sisaket province. 20+ Thai nationals have been killed in the ongoing war. #Thailand #combodiaopenedfire pic.twitter.com/jThtKS7jI9

Thailand- Cambodia example is the prime example of Op Preparedness which Indian should have when it comes to adversaries like China and Pakistan. We have HAL still stuck in timelines, trials and technical excuses. even after decades of formation. While our armed forces demand… pic.twitter.com/UJa4EA1gq8

हमने वीडियो को InVid टूल पर अपलोड करके और उससे प्राप्त कीफ्रेम पर रिवर्स इमेज सर्च करके जांच शुरू की।

हमें पता चला कि यह वीडियो इंटरनेट पर ईरान-इजरायल संघर्ष, भारत-पाकिस्तान संघर्ष और रूस-यूक्रेन संघर्ष के रूप में व्यापक रूप से शेयर किया जा रहा था।

हमें यह वीडियो टिकटॉक पर मिला, जिसे 2022 में पोस्ट किया गया था और तब इसे सबसे पहले अपलोड किया गया था।

टिकटॉक पर वीडियो में इस्तेमाल किया गया एक हैशटैग डोनबास (Donbas) था, जो यूक्रेन का एक शहर है।

लाइटहाउस जर्नलिज्म यह सत्यापित नहीं कर पाया कि यह वीडियो वास्तव में रूस-यूक्रेन युद्ध का था या नहीं; हालांकि, यह वीडियो 2022 का था और हाल का नहीं था जिसमें यह दावा किया गया था कि यह कंबोडिया के द्वारा थाईलैंड पर हमला करने का है।

निष्कर्ष: 2022 का पुराना वीडियो हाल का बताकर शेयर किया जा रहा है। वीडियो में दावा किया गया है कि यह कंबोडिया द्वारा थाईलैंड पर हमले का है। वायरल दावा भ्रामक है।

मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: जग दीप्त हो!

राजा भोज ने जब विक्रमादित्य के सिंहासन पर बैठने की कोशिश की तो उसमें लगी बत्तीस पुतलियों ने बारी-बारी से पूछना शुरू किया कि क्या आप इस सिंहासन पर बैठने के योग्य हैं? हर बार बैठने की कोशिश के दौरान राजा भोज को पुतलियों से राजा विक्रमादित्य की न्यायप्रियता की कहानी सुनने को मिलती। इन कहानियों को सुनते-सुनते राजा भोज उस सिंहासन को पूजनीय वस्तु के रूप में देखने लगे। ऐसी ही प्रवृत्ति संवैधानिक कुर्सियों की होती है। संवैधानिक प्रक्रियाओं को अंजाम देते, संविधान का हवाला देते हुए आप अपने नियोक्ता के दिए पूर्व नियुक्ति पत्र को भूल जाते हैं। यह भी भूल जाते हैं कि साथ ही समय पूर्व सेवानिवृत्ति के कागज भी टंकित कर दिए गए हैं। फिर आप अपना सब कुछ ईश्वर की मर्जी पर छोड़, जो होगा देखा जाएगा के भाव से संवैधानिक प्रतिनिधि के रूप में व्यवहार करने लगते हैं। पटकथा निर्देशकों को नागवार गुजरता है कि आप अपने किरदार के लिए लिखे संवादों से इतर शब्द बोलें। अब जगदीप धनखड़ से उन शब्दों की उम्मीद करता बेबाक बोल जो जग को सच से दीप्त करे।

पूछ लेते वो बस मिजाज मिराकितना आसान था इलाज मिरा-फहमी बदायूनी

कुछ समय पहले संसद परिसर में धक्कामुक्की में दो सांसदों को चोट लगी थी। चोट देने का आरोप नेता प्रतिपक्ष पर था तो दोनों सांसदों के साथ ‘राष्ट्रीय मरीज’ जैसा व्यवहार हुआ। पार्टी से जुड़े इतने लोग उनसे मिलने पहुंचे कि अस्पताल की व्यवस्था भी परेशान हो गई थी। उस वक्त पार्टी से जुड़ा कोई भी व्यक्ति आह भर सकता था कि काश इनकी जगह मैं घायल होता।

जरा याद करें तीन-चार दशक पहले का दौर जब उपभोक्तावाद चरम पर नहीं था। तब आम घरों में बिस्कुट और डबल रोटी जैसी चीजें मौके पर ही आती थीं। उन दिनों घर के किसी बच्चे की तबीयत खराब होने पर उसे बिस्कुट-डबल रोटी जैसी हल्की चीज दी जाती थी तो घर के दूसरे बच्चे भी दावा करने लगते थे कि उन्हें भी बुखार है, लिहाजा वे भी बिस्कुट खाने के अधिकारी हैं। दो सांसदों की उच्च स्तरीय तीमारदारी देख कर अन्य सोच रहे थे, ‘घायल अच्छे हैं’।

कुछ समय बाद देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति ने अपने बीमार होने का हवाला देते हुए पद छोड़ दिया। बीमार का हाल पूछना तो दूर, बीमारी के नाम पर पद छोड़ने की उन्हें इतनी शुभकामना दी गई कि लगा बीमारी कोई शुभ चीज हो गई हो। उनके अस्तित्व को ऐसा शून्य जैसा करार दिया गया कि इतना उपेक्षित होकर अच्छे-भले तंदुरुस्त आदमी की सेहत बिगड़ जाए।

जगदीप धनखड़ के जरिए एक सीधा संदेश मिला है कि राजनीति में पवित्र गाय जैसी कोई अवधारणा नहीं होती। इसके लिए काम पूरा करने के बाद सभी समान रूप से त्याज्य हैं। इस तरह की राजनीति में आप पूर्व-नियुक्ति लेकर आते हैं। लोकतांत्रिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद आपकी पूर्व नियुक्ति पर सिर्फ मोहर लगाई जाती है। जिस वक्त पूर्व नियुक्ति पत्र टंकित होते रहते हैं, उसी वक्त आपकी समय पूर्व सेवानिवृत्ति का दस्तावेज भी तैयार किया जा रहा होता है। अगर आप राजनीतिक उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते हैं तो फिर पूर्व दस्तखतशुदा कागज पर तारीख ही डालनी होती है।

मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: कोई शेर सुना कर

पद का मोह ऐसा होता है कि आप सिर्फ पूर्व नियुक्ति वाले कागज पर मोहर लगते देख कर खुश होते हैं। आपको लगता है कि मेरे साथ ऐसा नहीं होगा कि दूसरे कागज की जरूरत पड़ जाए। मेरे साथ ऐसा नहीं होगा…बस यही भ्रम वह ऊर्जा देता है कि आप बंगाल में चुनी हुई सरकार से सीधे टकराना शुरू कर देते हैं। बंगाल का राजनिवास दिल्ली से भेजे गए दूत का ‘दूतावास’ जैसा हो गया था।

आपने वही करना शुरू कर दिया जो विपक्षी दलों वाले शासन में सभी राज्यपाल कर रहे थे। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आप राजाओं वाले समय से ज्यादा राजा की तरह व्यवहार कर रहे थे। बंगाल में आपके ‘दूतावास’ की भूमिका बहुत पसंद आई और इसके लिए आपको पुरस्कृत भी किया गया। आपको पुरस्कृत करते वक्त तर्क दिए गए कि आप जाट हैं, किसान हैं। ऊपरी प्रशंसा से आपने मान भी लिया कि जाटों और किसानों के बीच आपकी पैठ है इसलिए सदन में निष्पक्ष दिखने के लिए खुद के किसान पुत्र होने की बात भी कह डाली।

मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: ऐ ‘मालिक’ तेरे बंदे हम

आप जमीनी हकीकत भूल गए कि अगर जाट और किसानों के बीच आपकी पैठ होती तो 2027 तक वाले नियुक्ति-पत्र की मियाद किसान आंदोलन के साथ ही खत्म हो जाती। दिल्ली में भी सब सीधा और सपाट चल रहा था। आप अपनी पूर्व-नियुक्ति की शर्तों के हिसाब से काम कर रहे थे। तभी देश के संसदीय इतिहास को लेकर एक नया इतिहास बनने का मोड़ आ जाता है। पहली बार कोई उपराष्ट्रपति महाभियोग के दायरे में आने वाले थे। संसद परिसर की सीढ़ियों पर आपके संसद में किए जा रहे व्यवहार की नकल उतारी गई। यह भी शायद पहली बार हुआ था। आपको लगा कि विपक्ष के बीच आपकी कोई इज्जत नहीं है। सत्ता पक्ष से सर्वश्रेष्ठ मिलने के बाद भी दिल में हूक उठी कि उधर से भी इज्जत मिल जाती। इसलिए आपने अपनी नकल को लेकर गहरा रोष व्यक्त किया था।

दावा किया जाता है कि यौगिक क्रियाओं के दौरान व्यक्ति की कुंडलिनी जागृत होती है जो उसके मानस के सभी द्वार खोल देती है। कुछ ऐसा ही संवैधानिक क्रियाओं के साथ भी होता है। जिस परिसर में आप संविधान की शपथ लेकर प्रवेश करते हैं, जहां संविधान बचाने को लेकर संघर्ष शुरू हुआ, वहां आपको भी संवैधानिक प्रतिनिधि बनने जैसा मोह पैदा हो गया। इसे हम संविधान की शक्ति कह सकते हैं कि सब कुछ पाया हुआ व्यक्ति यह जान कर भी संवैधानिक हो जाना चाहता है कि शायद इसके बाद उसके पास कुछ भी न बचे।

मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: जी हुजूर (थरूर)

नियोक्ता के दिए नियुक्ति-पत्र की सेवा शर्तों को भूलकर आप संविधान के साथ संबद्ध दिखने की कोशिश करने लगे। ‘संविधान हत्या-दिवस’ जैसा कठोर शब्द आपके कानों में गूंज रहा था। सोचिए, आपके पक्ष के हिसाब से जिसकी हत्या हो चुकी है, आपको उसके साथ खड़े होने का मोह क्यों दिखा? क्या इसलिए कि भविष्य के नागरिक शास्त्र की किताबों में आपके किरदार की हत्या न हो जाए? भविष्य को यह समझ नहीं आए कि आपके भूत को किस खाते में दर्ज किया जाए। आज देश भी सोचे, उस कथित मृत संविधान की ताकत जिसने आपको संवैधानिक रूप से इतना स्वस्थ कर दिया कि अपने नियोक्ता पक्ष के लिए आप बीमार साबित हो गए।

परदे के पीछे क्या हुआ, हम वह जानने का दावा कतई नहीं कर रहे हैं। हम सिर्फ वही लिख रहे हैं जो परदे के सामने राजनीति के रंगमंच पर किरदार केंद्रित रोशनी और ध्वनि विस्तारक यंत्र के साथ हुआ। आपने कार्य मंत्रणा समिति की बैठक बुलाई। उसके पहले केंद्रीयमंत्री व पार्टी अध्यक्ष जगत प्रसाद नड्डा संसद में अपने-पराए का भेद बताते हुए कह रहे थे, ‘आपको जानना चाहिए आपका कहा कुछ भी रिकार्ड में नहीं जाएगा, जो मैं कहूंगा वह जाएगा।’ जो व्यक्ति संसद परिसर में अपनी नकल से दुखी हुआ था, वह अपनी भूमिका के इस तरह छिन जाने से भी दुखी हुआ होगा। इस्तीफे के महज 11 दिन पहले आपने कहा था ‘दैवीय कृपा रही तो मैं सही समय पर अगस्त 2027 में सेवानिवृत्त हो जाऊंगा।’ यह बोलते वक्त भी आपको पहले से तैयार त्यागपत्र याद आ रहा होगा तभी आपने सेवानिवृत्ति की तारीख बता कर गहरे अंदाज में कहा, दैवीय कृपा रही तो…। कुंडलिनी जागृत होने के बाद आपको अपने लिए सिर्फ ईश्वर से ही उम्मीद थी।

मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: राज हमारा धर्म तुम्हारा

आज हम बेबाक बोल के माध्यम से यह बता रहे हैं कि आपका कार्यक्रम इस्तीफे के बाद के दिनों का भी तय था। आपको 27 जुलाई को एक किताब के लोकार्पण में उपस्थित होना था। उसमें राज्यसभा में आपके सहयोगी को भी आना था। जिन आयोजनकर्ताओं ने आपको उपराष्ट्रपति के तौर पर बुलाया था वे आपको पूर्व उपराष्ट्रपति के तौर पर भी बुलाने को सहर्ष तैयार थे। न जाने क्या हुआ, आप आने के लिए तैयार नहीं हुए।

मुश्किल यह है कि राज्यसभा में आपके सहयोगी हरिवंश राष्ट्रपति से मिल कर पुष्प गुच्छ देते हुए तस्वीरें भी खिंचवा चुके हैं और उनका नाम अगले उपराष्ट्रपति के तौर पर भी लिया जा रहा है। मूल मुद्दा यह है कि राजनीतिक रंगमंच पर आपका इस्तीफा पटकथा का हिस्सा नहीं था। हम बस सामान्य ज्ञान के आधार पर कह रहे हैं कि कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है।

जिस तरह नीतीश कुमार के एकनाथ शिंदे बन जाने की आशंका जताई जा रही है, उसी तरह कहा जा रहा, कहीं आपकी हालत सत्यपाल मलिक जैसी न हो जाए। भारतीय घरों में संतान का नाम सोच-समझ कर उम्मीदों के साथ रखा जाता है। संयोग की बात है कि सत्यपाल मलिक को लगा कि सत्य का पालन करना चाहिए। आपके नाम में दीप है। मौजूदा हालात में आपने जो इतना बड़ा फैसला लिया उसके सच से जग को दीप्त करेंगे या नहीं? करना तो चाहिए।

पापा जल्दी टीवी चलाओ, हमला हो गया… लालू राज में हुए सबसे बड़े जहानाबाद जेल कांड की पूरी कहानी

Bihar Elections 2025: मैं बिहार हूं, मैंने अपनी धरती पर अपराध की अनगिनत कहानियां देखी हैं। समय-समय पर मेरे दामन पर हत्या, लूट, अपहरण, भ्रष्टाचार के दाग लगते रहे हैं। सरकारें बदली हैं, नेता नए आए हैं, लेकिन मेरी तकदीर में अपराध की रेखा इतनी गहरी और स्पष्ट है कि कोई चाहकर भी इसे नहीं मिटा पाया है। ऐसा ही एक किस्सा याद आता है जब जेल से ही एक खूंखार अपराधी भागा था, राबड़ी मुख्यमंत्री थीं, लालू सरकार चला रहे थे और मैंने सबसे बड़ा जेलब्रेक अपनी आंखों के सामने होते देखा था। मैं बिहार हूं और आज उसी जेलब्रेक की पूरी कहानी बताता हूं-

बात 2005 की है, लालू जेल में थे और राबड़ी बिहार की महिला मुख्यमंत्री। लेकिन उन्हें ना पढ़ना आता था और ना ही लिखना, ऐसे में राबड़ी का तो सिर्फ चेहरा था, सरकार लालू ही चला रहे थे। अपने कैबिनेट सेकरेट्री को आदेश देते रहते थे, उसी आधार पर कुछ फाइलें राबड़ी देवी के पास जाती थीं और फिर उन पर अंगूठा भी लगा दिया जाता था। दूसरी तरफ सारी ताकत लालू के दो सालों साधु और सुभाष के पास जा चुकी थी। बात चाहे शराब सेक्टर की हो, एक्साइज की हो, पब्लिक ट्रांसपोर्ट की हो, तबादलना करना हो, सबकुछ इन दोनों की तरफ से डंके की चोट पर हो रहा था।

इसी वजह से कानून व्यवस्था भी हर बीतते दिन के साथ खराब होती जा रही थी, धमकियां मिलना आम हो चुका था, अपहरण रोज हो रहे थे। इस बीच ही जहनाबाद में कुछ बहुत बड़ा होने वाला था। 13 नवंबर, 2005 का एक फैक्स आया था जिसमें जहानाबाद पुलिस को चेताया गया। एक सीनियर पुलिस अधिकारी आरआर वर्मा ने लिखा था-

सूत्रों से ऐसी खबर मिली है कि 100 के करीब चरमपंथी लोग जहानाबाद के Nadaul और Kako इलाके में इकट्ठा हो रहे हैं। ये भी जानकारी मिली है कि झारखंड से भी एक टीम ने उन्हें ज्वाइन कर लिया है। वहां भी 6 से 7 युवकों को बाइक पर कुछ इनफॉर्मेशन शेयर करते हुए देखा है। लोकल लोगों से वो सभी बातें कर रहे थे। हमे तो पता चला है कि Nadaul रेलवे स्टेशन, काको पुलिस स्टेशन या फिर किसी मोबाइल पुलिस यूनिट पर हमला हो सकता है। प्लीज सभी रेलवे स्टेशन्स, पुलिस स्टेशन्स को अलर्ट कर दीजिए। अपनी फोर्स इकट्ठा कर लें इन चरमपंथियों से मुकाबला करने के लिए। उन लोगों के पास क्योंकि गाड़ियां भी होंगी, वो दूसरे इलाकों में जा सकते हैं। ऐसे में पूरे जिले को अलर्ट कीजिए, गया के डीआईजी खुद इसका संज्ञान लें।

आरआर वर्मा, IG (Operations), पटना

अब उस जमाने में जहानाबाद के एसपी सुनील कुमार हुआ करते थे, अब उन्हें वो फैक्स मिला या नहीं, क्या उन्होंने स्थिति का जायजा लिया या नहीं, आज तक इस राज से पर्दा नहीं उठ पाया है। इतना जरूर रहा कि उस दिन भी अपना काम खत्म कर एसपी सुनील कुमार शाम पांच बजे घर के लिए निकल गए थे। इसी तरह उस जमाने में गया के डीआईजी का नाम भी सुनील कुमार ही था, वे तब जहानाबाद से काफी दूर अजमेर में थे। वहीं जहानाबाद के डिस्ट्रिक्ट मेजिस्ट्रेट राणा अधेश पटना में मौजूद थे।

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इसके ऊपर जिस जहानाबाद में जेल में कुछ बड़ा करने की तैयारी थी, वहां कोई जेलर तक नहीं था। 6 महीने से वो पोस्ट खाली पड़ी थी, एक असिस्टेंट जेलर जरूर थे, लेकिन वो भी तब छुट्टी पर गए हुए थे। किसी को उस छुट्टी के बारे में तब पता भी था या नहीं, लेकिन जहानाबाद के जेल में सुरक्षा के कोई इंतजाम दिखाई नहीं दे रहे थे। फैक्स में साफ लिखा था कि हमला हो सकता है, लेकिन प्रशासन की तरफ से कोई तैयारी नहीं दिख रही थी। दूर जहानाबाद पुलिस के ही सार्जेंट ऑल इंडिया रेडियो सुन रहे थे, खाने का इंतजार था, लेकिन तभी उनकी दिल्ली में बैठी बेटी का फोन आया। बेटी ने डरी-सहमी आवाज में बोला-

टीवी चलाओ पापा, नक्सली लोगों ने जहानाबाद जेल पर हमला किया है, बम फटा है, सुनाई नहीं दिया क्या। यहां सबकुछ टीवी पर आ रहा है।

सार्जेंट नवल चंद्र, बिहार पुलिस

अब सभी को पता चल चुका था कि जहानाबाद जेल पर हमला किया गया है। फैक्स में जिस बात का डर था, वो सच साबित हुआ। माओवादियों ने अपने मिशन को पूरा कर लिया था। जहानाबाद में कई जगह धमाके हुए, जेल के दो जूनियर अधिकारियों को भी गोली लगी और देखते ही देखते जहानाबाद जेल से 200 कैदियों को भगा दिया, वहां भी माओवादी संगठन का कमांडर अजय कानू का भागना सबसे ज्यादा चर्चा में आया।

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हिम्मत इतनी ज्यादा रही कि जहानाबाद जेल की दीवारों पर इन माओवादियों ने सरकार को सीधी चुनौती देने का काम किया, किसी बात का डर उन्हें नहीं था, उनके साथ क्या हो सकता था, ऐसा कभी सवाल ही नहीं आया। तल्ख अंदाज में उस समय की सरकार को धमकी देते हुए जेल की दीवारों पर लिख दिया गया-

चेतावनी जान हो, समानती सरकार के चंगुल से अपने कामरेडों को मुक्त करने आएंगे जल्द ही। लाल सलाम

अब ये सिर्फ चेतावनी भर नहीं थी, इस बात को अमलीजामा पहनाया गया और बिहार ने अपना सबसे बड़ा जेल कांड देख लिया जहां सरकार सोती रह गई, प्रशासन समय रहते हरकत में नहीं आ पाया और नाक के नीचे 200 खूंखार अपराधी भाग गए।

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