Bihar Voter List Revision: बिहार में जैसे-जैसे 25 जुलाई की तारीख नजदीक आ रही है, वोटर लिस्ट के रिवीजन Special Intensive Revision (SIR) का काम भी रफ्तार पकड़ गया है। इसे लेकर अफरा-तफरी जैसा माहौल भी है। इस बीच, चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के रिवीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा (Counter-Affidavit) दाखिल किया है।
बताना होगा कि चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के रिवीजन के तहत कहा है कि राज्य के 7.8 करोड़ मतदाताओं को एक फॉर्म भरना होगा और जरूरी दस्तावेज भी जमा करने होंगे। तभी वे बिहार के विधानसभा चुनाव में वोट डाल पाएंगे।
विपक्ष ने इसका जबरदस्त विरोध किया और कहा कि चुनाव आयोग के इस कदम से बिहार में बड़ी संख्या में मतदाता वोट नहीं डाल पाएंगे और यह गरीब लोगों के वोट काटने की एक बड़ी साजिश है। चुनाव आयोग ने कहा है कि वोट डालने के लिए 11 में किसी एक डॉक्यूमेंट का होना जरूरी है।
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इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई और 10 जुलाई को जब सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा था कि वह इस बात पर विचार करे कि क्या आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को भी डॉक्यूमेंट के रूप में स्वीकार किया जा सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि वह इस मामले में 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करे।
चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा है कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता और कई हाईकोर्ट भी ऐसा कह चुकी हैं। इसलिए इसे चुनाव आयोग के द्वारा जारी किए गए 11 डॉक्यूमेंट की सूची में नहीं रखा गया है।
चुनाव आयोग ने हलफनामे में यह भी कहा है कि बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्ड जारी किए जाते हैं। आयोग ने कहा है कि केंद्र सरकार ने 7 मार्च को 5 करोड़ से ज्यादा फर्जी राशन कार्ड रद्द कर दिए थे। वोटर आईडी कार्ड को लेकर चुनाव आयोग ने कहा कि वोटर आईडी कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
चुनाव आयोग ने अपने हफनामे में दोहराया है कि मतदाता जो भी दस्तावेज देंगे उसे लेकर Electoral Registration Officers (ERO) ही फैसला करेंगे। बिहार में इससे पहले वोटर लिस्ट का रिवीजन जनवरी 2003 में किया गया था।
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बताना होगा कि चुनाव आयोग के इस कदम के विरोध में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी खुलकर विरोध में उतर आई। ममता ने कहा कि यह बैकडोर से नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस लागू करने (NRC) की तैयारी है लेकिन चुनाव आयोग ने साफ तौर पर कहा कि वोटर लिस्ट के रिवीजन का काम पूरे देश भर में होगा और बिहार से इसकी शुरुआत हुई है।
चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा है कि वोटर लिस्ट के रिवीजन के किसी भी शख्स की नागरिकता खत्म नहीं होगी लेकिन उसे चुनाव में वोट डालने के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है। आयोग ने कहा कि भारत के संविधान के आर्टिकल 324 और 326 के मुताबिक, उसे यह अधिकार है कि वह वोटर लिस्ट की सूची और मतदाताओं की योग्यता को लेकर फैसला कर सकता है।
कुल मिलाकर चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि आधार, राशन कार्ड और वोटर ID कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता। 28 जुलाई को इस मामले में अगली सुनवाई होनी है और इस पर बिहार के राजनीतिक दलों की नजरें लगी हुई हैं। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
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