मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: ये जो चिलमन है

खूब पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैंसाफ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं-दाग देहलवी

लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ जन्मी पत्रकारिता के बारे में माना गया था कि यह जनता की ओर से सत्ता से सवाल करेगी। बीसवीं सदी के सत्तर के दशक के दौरान जब खोजी पत्रकारिता ने जोर पकड़ा तो पत्रकारों की सुरक्षा की चिंता भी सामने आई। 1972 के वाटरगेट कांड में वाशिंगटन पोस्ट के पत्रकार बाब वुडवर्ड और कार्ल बर्नस्टीन ने अपने स्रोत की पहचान छुपाने के लिए खुफिया नाम ‘डीप थ्रोट’ रखा जो कालांतर में सूत्र बना। पत्रकारिता में सूत्र उतना ही पवित्र है जितना लोकतंत्र में संवैधानिक मूल्य। लेकिन जनता को छोड़ सत्ता के खेमे में जा बैठी पत्रकारिता आज ‘सूत्र’ को वह चिलमन बना चुकी है जिसके पीछे असली चेहरा छुपा कर खास एजंडे को खबर के रूप में परोस दिया जाता है। बिहार चुनाव से चर्चा में आए ‘सूत्र’ पर चर्चा करता बेबाक बोल।

पिछले दिनों देश के एक प्रतिष्ठित संस्थान ने देश की प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पार्टी के बारे में खबर छापी कि वह घर-घर जाकर विशेष अभियान चलाएगी। लेकिन जल्द ही उस संस्थान को कहना पड़ गया कि उसकी खबर गलत थी और ऐसा कोई अभियान नहीं चलाया जा रहा है। संस्थान की उस खबर के बल पर कई राजनीतिक दलों ने तीखे बयान भी दे दिए थे। उस राजनीतिक खबर का कुछ ऐसा राजनीतिक माहौल बन गया कि बहुत से लोगों तक खबर के गलत होने की खबर तक नहीं पहुंची और बहुत से लोग उस खबर को गलत बताने वालों को गलत खबर देनेवाला करार दे रहे थे।

अहम बात यह है कि कोई भी उस कथित खबर के साथ खड़ा हो भी नहीं सकता था। कई बार ऐसा होता है कि किसी दबाव में खबर हटा ली जाती है, लेकिन जितने दिनों तक वह खबर वजूद में रहती है, अपना काम कर जाती है। वह खबर सूत्रों के हवाले से छापी गई थी। उस खबर में कहीं यह जिक्र नहीं था कि पार्टी के इतने अहम अभियान को शुरू करने का एलान किसने किया।

सत्ता व व्यवस्था को हिला देनेवाली किसी खबर में सूत्र का इस्तेमाल हो तो बात समझ में आती है। ऐसी खबर में सूत्र का इस्तेमाल करना और सत्ता के द्वारा खारिज कर दिया जाना, पत्रकारिता को नुकसान पहुंचाना है।

यह मामला अभी ज्यादा पुराना नहीं हुआ है और सबको अच्छी तरह से याद है कि एक कथित ‘महा’ राजनीतिक अभियान को लेकर ‘सूत्र’ कैसे खारिज कर दिया गया। इस ताजा अनुभव के बाद अगर देश की कोई लोकतांत्रिक संस्था अपने अभियान को सही साबित करने के लिए सूत्र का हवाला दे तो फिर उस सूचना के साथ क्या किया जाए? जिस सूत्र का आविष्कार पत्रकार और पत्रकारिता की रक्षा करने के लिए किया गया था, आज उसी सूत्र पर जनतांत्रिक अधिकारों के हनन का आरोप लग रहा है।

मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: कोई शेर सुना कर

आज ‘सूत्रधार’ वाली पत्रकारिता का तो यह हाल है कि वह यह नहीं पता लगा सकती कि फलां चुनाव के बाद फलां राज्य में कौन मुख्यमंत्री बनने वाला है या फलां पार्टी, फलां संगठन का अध्यक्ष कौन बनने वाला है? तो क्या सूत्रों का काम खत्म हो जाएगा? नहीं, इन सूत्रों के पास ‘रिश्ता वही सोच नई’ वाली टीवी धारावाहिक मार्का तकनीक है। ये बताते हैं कि अंत-अंत तक मुख्यमंत्री या किसी अन्य का नाम नहीं पता लगने देना फलां पार्टी का ‘तुरुप का पत्ता’ है।

सूत्रों की हर नाकामी को सत्ता का तुरुप का पत्ता घोषित कर दिया जाता है। सूत्रों ने समाज को समझा दिया कि सत्ता की यही सबसे बड़ी खूबी है कि वह किसी को कुछ पता नहीं चलने देती है। कोई चीज पता चल जाने के बाद अगर उस पर हंगामा मचा तो उससे ज्यादा हंगामेदार चीज को सामने लाकर खुद भी हंगामे का हिस्सा बन जाना भी तुरुप का पत्ता ही है।

मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: पीने दे पटना में बैठ कर…

तुरुप ही तुरुप वाले सूत्रधारों से अब पूछने का वक्त आ गया है कि आखिर एक ही बाजी में तुरुप के कितने पत्ते हैं? ऐसी कौन सी बाजी है जिसमें तुरुप के पत्ते खत्म ही नहीं होते? अब तो लगता है कि खबरनवीसी के नाम पर तुरुप का पेड़ लगा दिया गया है जिससे पत्ते गिरते ही रहते हैं।

किसी भी संप्रभु देश के लिए घुसपैठ एक बड़ी समस्या है। अफसोस, यह घुसपैठ भी तुरुप का वह पत्ता है जो चुनावों के वक्त सामने आता है और हर जगह इसका जिम्मेदार विपक्ष होता है। जब लगातार दो पारी सत्ता किसी एक गठबंधन की हो तो दस साल में उससे क्या उम्मीद की जा सकती है? सीमा पार से अगर घुसपैठिए आ रहे हैं तो आपकी सुरक्षा एजंसियां क्या कर रही हैं?

पिछले दिनों अमेरिका में चुनाव के समय अवैध अप्रवासी सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बने। अहम यह है कि चुनाव खत्म होते ही इस मुद्दे को भुला नहीं दिया गया बल्कि अमेरिकी सरकार ने अपने नियम-कायदों के तहत उन्हें अपने देश से निकाला।

मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: मुड़ मुड़ के न देख…

यहां सवाल यह है कि अगर लोकसभा चुनाव में इतने घुसपैठिए वोट देने में कामयाब हुए थे तो इस नाकामयाबी की जिम्मेदारी किसकी बनती है? आधार कार्ड परियोजना के लिए जब पूरा देश अपनी अंगुलियों के निशान से लेकर आंख की पुतलियों तक के नमूनों को सरकार के हवाले कर रहा था तो क्या उस वक्त अंदाजा नहीं था कि आने वाले समय में भारत की सीमाओं पर घुसपैठियों को यह थोक के भाव में मिलने लगेगा।

किसी नामी-गिरामी नेता ने न सही, किसी सूत्र तक ने अब तक यह सवाल क्यों नहीं पूछा कि आधार कार्ड परियोजना पर देश की जनता के कर का कितना पैसा खर्च हुआ? आखिर इसमें ऐसी क्या बात थी कि नई सत्ता ने पूर्ववर्ती सत्ता के सब कुछ बदल देंगे वाले एलान के बाद भी इससे जुड़े अगुआ का दिल खोल कर स्वागत किया।

बिहार, बंगाल, सिक्किम की सीमा पर प्रवेश करते ही अगर घुसपैठियों का स्वागत आधार कार्ड से होता है तो पिछले दस वर्षों में इसके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? कथित ‘जंगलराज’ पंद्रह साल का था। अब दस आपके भी पूरे हुए। पंद्रह साल के बुरे को ठीक करने के लिए क्या दस साल इतने कम हैं?

मुकेश भारद्वाज का कॉलम बेबाक बोल: जी हुजूर (थरूर)

पत्रकारिता खबर के स्रोत की रक्षा के लिए सूत्रों के हवाले से बात करती है। जब संस्थाएं भी सूत्रों का सहारा लेंगी तो पूरा-पूरा नाम कौन लेगा? या आपकी रणनीति सिर्फ काम निकालना है और नाम लेना आपके लक्ष्य में ही नहीं है। पत्रकारिता एक आधुनिक विधा है। पत्रकारिता और साहित्य में फर्क ही सत्य बनाम गल्प का है।

आज कथा सम्राट प्रेमचंद के कथ्य को बदल कर कह सकते हैं कि पत्रकारिता सत्ताधारी राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है। यह विपक्ष तले सिर्फ अंधेरा चाहती है। साहित्य ने नाम लेने का साहस पत्रकारिता के कंधों पर डाल दिया था। धीरे-धीरे काल बदला तो पत्रकारिता का आपात दूसरी तरह का हो गया है। अब कहानियां वही हैं, दिन और नाम कहीं नहीं हैं।

अपनी प्रवृत्ति के विपरीत पत्रकारिता आज कहानियां गढ़ने का काम कर रही है। इन कहानियों में भी उलझन है। इन कहानियों में किरदारों का कोई नाम नहीं है। बहुत सोच-समझ कर इन कहानियों के किरदार से नाम छीन लिए जा रहे हैं। जब नाम ही नहीं तो किसी की पहचान कैसे होगी? कृत्रिम मेधा ने तो नाम के खिलाफ वाले अभियान को और आसान कर दिया है। अगर आपने अपनी कहानी में किरदार का नाम लेने की हिम्मत कर भी दी तो कृत्रिम मेधा पाठकों तक उसकी पहुंच ही खत्म कर देगी।

जंगल में मोर नाचा किसने देखा। बिना पहुंच के, बिना प्रसार के आप नाम लेकर करेंगे भी क्या अगर कोई उसे सुने ही नहीं? इसके साथ ही आज की पत्रकारिता ने सूत्र का इस्तेमाल जनता के सवालों से सत्ता व व्यवस्था की रक्षा करने के लिए शुरू कर दिया।

पत्रकारिता के बाद बजरिए बिहार लोकतांत्रिक संस्था ने सूत्र का दामन पकड़ा है। अभी तक नागरिक-शास्त्र की किताबों में हम चुनावों को लोकतंत्र का पर्व पढ़ते थे, जिसे आज की राजनीतिक शैली के आधार पर महापर्व कहा जाने लगा है। भारतीय संस्कृति में किसी चीज को पर्व कहते हैं तो उसमें उत्सवधर्मिता के साथ पवित्रता का भी भाव होता है।

गणतांत्रिक तिथियों को पौराणिक तिथियों की तरह पवित्र मानने वाली जनता के लिए ही नारा दिया गया, ‘पहले मतदान, फिर जलपान’ का। इस नारे को बनाने वाले संस्थान को इतना सावधान तो होना चाहिए कि उस पर पूरी जनता का भरोसा टिका है। अगर उस पर से भरोसा हिला तो जनता की लोकतंत्र को लेकर उत्सवधर्मिता ही खत्म हो जाएगी।

बिहार का आगामी विधानसभा चुनाव अब सिर्फ सत्ता परिवर्तन के लिहाज से ही नहीं संस्थाओं की छवि निर्माण के लिहाज से भी अहम हो गया है। वहां मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान दिए जा रहे तथ्य, तर्क का विश्लेषण करते रहना जरूरी है क्योंकि बिहार ही इस प्रक्रिया के देशव्यापी बनने का ‘सूत्रधार’ है।

Mumbai Train Blast: 11 जुलाई 2006 को क्या हुआ था? मुंबई ट्रेन ब्लास्ट की पूरी कहानी

Mumbai Local Train Bomb Blast Case: मुंबई लोकल ट्रेन बम ब्लास्ट मामले में हाई कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है। जिस हमले में 189 लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी, उसमें हाई कोर्ट के फैसले ने सभी को हैरान कर दिया है। सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई है कि जांच एजेंसियां पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर सकीं और इसी वजह से इन 12 लोगों को बरी कर दिया गया।

हाई कोर्ट के इस एक फैसले के बाद सभी के मन में एक सवाल आ रहा है- आखिर 11 जुलाई 2006 को ऐसा क्या हुआ था? ऐसे कौन से बम धमाके हुए थे जिसने 189 लोगों की जान ले ली 11 जुलाई की शाम को मुंबई में ऐसा क्या हुआ कि लोगों ने उसे 1992 के धमाकों के बाद सबसे बड़ा हमला करार दिया?

असल में 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों को निशाना बनाया गया था। ये वही ट्रेनें हैं जिन्हें लोग मायानगरी की लाइफ लाइन तक कहते हैं, कहीं भी जाना हो तो टैक्सी से ज्यादा लोग इन्हीं ट्रेनों का इस्तेमाल करते हैं। इससे समय भी बचता है और पैसे भी कम लगते हैं। लेकिन आरोपियों ने इसी बात का फायदा उठाया, ज्यादा भीड़ को देखते हुए उनकी तरफ से इन्हीं लोकल ट्रेनों को निशाने पर लिया गया। सबसे पहला धमाका शाम को 6:24 पर हुआ, उसके बाद सात और बम धमाके हुए, बात चाहे माटुंगा रूट की हो, बांद्रा की हो, खार रोड की हो, माहिम जंक्शन की हो, जोगेश्वरी की हो, भयंदर की हो या फिर बोरिवली रेलवे स्टेशन की, सभी जगह एक के बाद एक बड़े धमाके हुए और भारी तबाही देखने को मिली।

हैरानी की बात यह थी इन बम धमाकों को साजिश के तहत अंजाम दिया गया, सभी धमाकों में सिर्फ एक से 2 मिनट का ही अंतर रहा। पहला धमाका 6:24 पर हुआ, इसी तरह बाकी कई और धमाके हुए और 11 मिनट के अंदर पूरी मुंबई बम ब्लास्ट से दहल गई।

चर्चगेट बोरीवली के बीच जो लोकल ट्रेन चली थी, सबसे ज्यादा 43 मौतें वहीं पर देखने को मिलीं। मीरा रोड भयंदर की लोकल ट्रेन में 31 लोगों की जान चली गई, इसी तरह चर्चगेट-विरार लोकल ट्रेन में 28 लोगों ने और चर्चगेट- बोरिवली लोकल ट्रेन में भी 28 लोगों ने अपनी जान गंवाई।

जब इन बम ब्लास्ट की जांच शुरू हुई तो पता चला कि मुंबई के वेस्टर्न लाइन की लोकल ट्रेनों को ही निशाने पर लिया गया था। वही प्रेशर कुकर की मदद से उन धमाकों को अंजाम दिया गया। जिन भी कोच में धमाके हुए थे, उनके परखच्चे पूरी तरह उड़ गए। जांच में ये भी पाया गया कि आरोपियों ने दूर जाने वाली ट्रेनों को अपने निशाने पर लिया था क्योंकि सबसे ज्यादा ऑफिस जाने वाले लोग उन्हीं ट्रेनों में मौजूद थे। पाकिस्तान से ऑपरेट कर रहे लश्कर ऐ तैयबा ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी।

अब इस बड़े आतंकी हमले की बाद निचली अदालत में तो पांच दोषियों को फांसी की सजा और सात को उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। लेकिन जब बाद में इन्हीं फैसलों को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई तो मामला पूरी तरह पलट गया। आरोपियों के वकील ने दावा किया कि जबरदस्ती टॉर्चर कर पुलिस ने कबूलनामा लिखवाया गया। इसी वजह से पुलिस का केस कमजोर हो गया और हाई कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी किया।

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Devdutt Pattanaik on Arts and Culture: भारत में अहम हैं अलग-अलग धर्मों में अंतिम संस्कार की प्रथाएं, देवदत्त पटनायक से समझिए इनकी संस्कृति

Devdutt Pattanaik on Arts and Culture: (द इंडियन एक्सप्रेस ने UPSC उम्मीदवारों के लिए इतिहास, राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध, कला, संस्कृति और विरासत, पर्यावरण, भूगोल, विज्ञान और टेक्नोलॉजी आदि जैसे मुद्दों और कॉन्सेप्ट्स पर अनुभवी लेखकों और स्कॉलर्स द्वारा लिखे गए लेखों की एक नई सीरीज शुरू की है। सब्जेक्ट एक्सपर्ट्स के साथ पढ़ें और विचार करें और बहुप्रतीक्षित UPSC CSE को पास करने के अपने चांस को बढ़ाएं। इस लेख में, पौराणिक कथाओं और संस्कृति में विशेषज्ञता रखने वाले प्रसिद्ध लेखक देवदत्त पटनायक ने अपने लेख में भारत में अलग-अलग धर्मों में होने वाली अंतिम संस्कार की प्रथाओं पर चर्चा की है।)

किसी भी समाज में अलग-अलग संस्कृतियां परलोक की अलग-अलग कल्पना करती हैं और इसलिए अंतिम संस्कार की प्रथाएं भी अलग-अलग होती हैं। आमतौर पर एक जीवन में विश्वास करने वाले लोग शवों को कब्रों में रखते हैं और दफ़न स्थलों पर क़ब्र के पत्थर लगाते हैं। इसी तरह पुनर्जन्म में विश्वास करने वाले लोग शरीर को प्रकृति में विलीन कर देते हैं। वे इसे विलीन करने के लिए आग, जल या जंगली जानवरों की प्रक्रिया को अपनाते हैं।

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असम में 13वीं शताब्दी में दक्षिण-पूर्व एशिया के रास्ते चीन से आए अहोम राजा, मृतकों को मोइदम नामक टीलों में दफनाते थे। कभी-कभी राजाओं के साथ उनके सेवकों या अन्य लोगों को भी दफनाया जाता था। जब वे हिंदू बन गए और दाह संस्कार की प्रथा अपनाने लगे, तो यह प्रथा बदल गई। हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार, पुनर्जन्म के लिए अस्थियों को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता था। इस प्रकार अंतिम संस्कार की प्रथाओं में बदलाव संस्कृति में बदलाव को दर्शाता है।

प्रागैतिहासिक काल में बर्तन दफ़नाने का अभिन्न अंग थे। प्राथमिक तौर पर दफ़नाने में प्राचीन लोग मृतकों को बर्तनों में दफ़नाते थे। द्वितीयक दफ़नाने में बर्तनों में दाह संस्कार के बाद एकत्रित अस्थियाँ रखी जाती थीं। तमिल संगम काव्य में एक विधवा द्वारा कुम्हार से अपने मृत पति के लिए एक बड़ा बर्तन बनाने का उल्लेख भी मिलता है। दफ़नाने वाले प्रागैतिहासिक स्थलों में ‘सिस्ट’ भी पाए जाते हैं, जो पत्थरों से बने गड्ढे होते हैं, जो आमतौर पर दक्षिण भारत में पाए जाते हैं।

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हड़प्पा सभ्यता में दाह संस्कार तो होता था लेकिन कई समुदाय मृतकों को दफनाते थे। हड़प्पा में ऐसे कब्रिस्तान मिले हैं, जहां लोगों के पास बहुत कम दफ़नाने का सामान जैसे मनके और कुछ बर्तन था। इसके अलावा धोलावीरा में ऐसे टीले हैं, जहां कोई शव नहीं हैं शायद ये उन लोगों की याद में बनाए गए थे जो दूर देशों की यात्रा करते समय मारे गए थे।

दक्कन क्षेत्र के महापाषाण लौह युग (1000 ईसा पूर्व) के समाधि स्थलों से संबंधित हैं। महापाषाण संस्कृति दक्षिण भारतीय संस्कृति की एक विशिष्ट विशेषता है, ये उस समय जब वैदिक संस्कृति गंगा-यमुना नदी घाटी में फल-फूल रही थी। समाधि स्थलों पर दो ऊर्ध्वाधर पत्थरों से एक मंदिर बनाया जाता था, जिसके ऊपर एक शीर्षशिला क्षैतिज रूप से रखी जाती थी, जिसे डोलमेन कहा जाता है। इस संरचना के नीचे मृतकों की स्मृति में अस्थियाँ और खाद्य पदार्थ रखे जाते थे।

वेदों में दाह संस्कार और दफ़नाने, दोनों ही प्रथाओं का उल्लेख है। रामायण और महाभारत , दोनों में दाह संस्कार का उल्लेख मिलता है। दशरथ का दाह संस्कार किया गया। रावण का दाह संस्कार किया गया। कौरवों का दाह संस्कार किया गया। अंतिम संस्कार के बाद की रस्मों में मृतक, अर्थात् पितृ को भोजन कराना शामिल था।

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अंतिम संस्कार आमतौर पर उच्च जातियों के समुदायों में होते हैं, जो लकड़ी का प्रबंध कर सकते हैं। कई निम्न जातियों के समुदाय आज भी पूर्व-वैदिक दफ़नाने की प्रथाओं का पालन करते हैं। दफ़नाने का कार्य अक्सर परिवार के स्वामित्व वाले खेतों में किया जाता है ताकि स्वामित्व और स्वामित्व का संकेत मिल सके।

भारत के कई हिस्सों में लोगों को बैठी हुई अवस्था में ही दफनाया जाता था, खासकर अगर वे किसी धार्मिक समुदाय से संबंधित होते थे। ऐसा माना जाता था कि किसी धार्मिक समुदाय से जुड़े लोगों का पुनर्जन्म नहीं होता। कई हिंदू मठों में, संत को बैठी हुई अवस्था में ही दफनाया जाता था और उसके ऊपर एक विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए गमले में तुलसी लगाई जाती थी।

जैन भिक्षुओं की कब्र पर अक्सर एक पेड़ लगाया जाता था या उसके ऊपर एक स्तूप बनाया जाता था। दाह संस्कार के बाद उनकी अस्थियों पर स्तूप बनाने की प्रथा बौद्धों द्वारा भी अपनाई जाती थी। वास्तव में वैदिक लोग बौद्धों को अस्थि पूजक मानकर उनकी निंदा करते थे। शरीर या अस्थियों को दफ़नाने वाले बौद्ध स्थलों को स्तूप कहा जाता था, जबकि हिंदू और जैन स्थलों को समाधि कहा जाता था।

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समाधि स्थल बनाए जाते थे जहाँ दफ़नाने या दाह संस्कार स्थल को एक मंदिर द्वारा चिह्नित किया जाता था और उस पर शिवलिंग की एक प्रतिमा स्थापित की जाती थी। कुछ चोल राजाओं द्वारा इसका प्रचलन था। राजस्थान, गुजरात और भारत के कई हिस्सों में वीर शिलाओं का उपयोग उस स्थान को चिह्नित करने के लिए किया जाता था, जहां कोई योद्धा गांव को हमलावरों या जंगली जानवरों से बचाते हुए शहीद हुआ था। सती शिलाओं का उपयोग उन स्थानों को चिह्नित करने के लिए किया जाता था, जहां स्त्रियां अपने पतियों की चिता पर आत्मदाह करती थीं। कर्नाटक में निशिधि शिलाओं का उपयोग उन स्थानों को चिह्नित करने के लिए किया जाता था जहां जैन मुनियों ने मृत्युपर्यन्त उपवास किया था।

मकबरे बनाने की शुरुआत दसवीं शताब्दी के बाद भारत में इस्लामी संस्कृति के आगमन के साथ हुई लेकिन मकबरे बनाना कोई अरबी प्रथा नहीं है बल्कि, यह मध्य एशिया से आई है। अरब लोग मृतकों को दफ़नाते थे, और प्राचीन पारसी लोग अपने मृतकों को प्राकृतिक वातावरण और गिद्ध जैसे जंगली पक्षियों के सामने छोड़ देते थे। मध्य एशियाई जनजातियों, जिन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया था। उन्हें भी मकबरे बनाने का शौक था और उन्होंने भारत में स्मारकीय मकबरों का निर्माण शुरू किया। इसलिए, दसवीं शताब्दी के बाद, हमें भारत में खिलजी, तुगलक, लोदी और सूरी के मकबरे मिलते हैं और उसके बाद प्रसिद्ध मुगल स्मारक ताजमहल भी है।

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इस मुस्लिम प्रथा का पालन करते हुए, कई राजपूतों ने शाही दाह-संस्कार स्थल पर गुंबद और मंडप बनवाना शुरू कर दिया। इन्हें क्षत्रियां कहा जाता था। कुछ क्षत्रियां महाराष्ट्र और गुजरात में भी पाई जाती हैं। यह प्रथा 13वीं शताब्दी से 19वीं शताब्दी तक प्रचलित रही। आज भी जिन स्थानों पर राजनीतिक नेताओं का दाह-संस्कार किया जाता है, वहां ‘समाधियां’ बनाई जाती हैं। यह वैदिक मान्यता के विरुद्ध था कि पुनर्जन्म की सुविधा के लिए मृतक का कोई निशान नहीं रखा जाना चाहिए।

पूर्वोत्तर भारत में मोनपा जैसे आदिवासी समुदाय हैं, जहां शवों को 108 टुकड़ों में काटकर नदियों में फेंक दिया जाता है ताकि मछलियाँ उन्हें खा जाएं। इस प्रकार, भारत भर में अंतिम संस्कार स्मारकों का अध्ययन देश की विविध धार्मिक प्रथाओं और मान्यताओं के बारे में जानकारी प्रदान करता है।

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(देवदत्त पटनायक एक प्रसिद्ध पौराणिक कथाकार हैं जो कला, संस्कृति और विरासत पर लिखते हैं।)

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Fact Check: टीवी सीरियल की शूटिंग का वीडियो दहेज हत्या का बताकर गलत दावे के साथ वायरल

लाइटहाउस जर्नलिज्म को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो रहा एक वीडियो मिला। वीडियो के साथ यह दावा किया जा रहा था कि इसमें एक महिला को दिखाया गया है जिसे उसके ससुराल वालों ने दहेज संबंधी कारणों से मार डाला था।

जांच के दौरान, हमने पाया कि यह वीडियो एक टीवी सीरियल की शूटिंग का है और इसका दहेज हत्या से कोई संबंध नहीं है।

इंस्टाग्राम यूजर vlogs_adalhat_mirzapur_up_63 ने इस वीडियो को भ्रामक दावे के साथ साझा किया है।

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अन्य यूजर्स भी इसी तरह के दावे के साथ यही वीडियो साझा कर रहे हैं।

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हमने वायरल वीडियो से प्राप्त कीफ्रेम पर रिवर्स इमेज सर्च करके जांच शुरू की।

इससे हमें दो साल पहले YouTube पर अपलोड किया गया एक वीडियो मिला:

वीडियो पर ‘शूटिंग’ लिखा हुआ था।

हमें ‘infocast.co.in’ नामक वेबसाइट पर वीडियो का एक स्क्रीनशॉट मिला। इससे पता चला कि वीडियो में दिख रहा व्यक्ति अभिनेता सहीम खान था।

इसके बाद हमने सहीम खान की इंस्टाग्राम प्रोफाइल चेक की और 8 नवंबर, 2022 को ‘शूटिंग टाइम’ कैप्शन के साथ प्रोफाइल पर वायरल वीडियो अपलोड किया हुआ मिला।

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निष्कर्ष: एक टेलीविजन सीरियल की शूटिंग का पुराना वीडियो इस दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि इसमें दहेज की वजह से मौत हुई है। वायरल दावा भ्रामक है।

PAK vs BAN: पाकिस्तान 19.3 ओवर में 110 रन पर ऑलआउट, बांग्लादेश के खिलाफ 7 बल्लेबाज नहीं छू पाए दहाई का आंकड़ा

PAK vs BAN 1st T20I: बांग्लादेश के खिलाफ 3 मैचों की टेस्ट सीरीज के पहले मैच में पाकिस्तान की बैटिंग काफी खराब रही और ये टीम 20 ओवर भी पूरा नहीं खेल पाई। इस मैच में बांग्लादेश ने टॉस जीता था और पहले गेंदबाजी करने का फैसला किया था। पाकिस्तान की बल्लेबाजी इस मैच में अच्छी नहीं रही और 7 बल्लेबाज दहाई का आंकड़ा तक नहीं छू पाए।

बांग्लादेश के खिलाफ पहले बैटिंग करते हुए इस मैच में पाकिस्तान की टीम 19.3 ओवर में 110 रन बनाकर आउट हो गई और बांग्लादेश को जीत के लिए 111 रन का टारगेट दिया। पाकिस्तान के लिए फखर जमान ने ही टीम के लिए उपयोगी पारी खेली जबकि अन्य बल्लेबाजों ने काफी निराश किया।

इस मैच में बांग्लादेश के गेंदबाज शुरू से ही पाकिस्तानी बल्लेबाजों पर हावी दिखे। हालांकि टीम के ओपनर बल्लेबाज फखर जमान ने अच्छी पारी खेली और 34 गेंदों पर एक छक्का और 6 चौकों की मदद से 44 रन की पारी खेली। इस टीम के विकेट नियमित अंतराल पर गिरते रहे और पाकिस्तान बड़ा स्कोर करने से चूक गई।

पाकिस्तान के लिए खुशदिल शाह ने 18 रन जबकि अब्बास अफरीदी ने 22 रन की पारी खेली। इनके अलावा 7 बल्लेबाज तो दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाए। सईम अयूब 6 रन तो मोहम्मद हासिल 4 रन जबकि कप्तान सलमान आगा 3 रन बनाकर आउट हो गए। इनके अलावा मोहम्मद नवाज ने 3 रन जबकि फहीम अशरफ ने 5 रन बनाए।

हसन नवाज और सलमान मिर्जा तो अपना खाता भी नहीं खोल पाए जबकि अबरार अहमद बिना खाता खोले नाबाद रहे। बांग्लादेश की तरफ से तास्कीन अहमद 3 विकेट लेकर सर्वाधिक सफल गेंदबाज रहे जबकि मुस्ताफिजुर रहमान ने 2 विकेट लिए तो वहीं मेंहदी हसन और तंजीम हसन ने एक-एक विकेट लिए।

अगले 3 WTC final भी इंग्लैंड में होंगे, ICC ने किया कंफर्म

वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप (WTC) के अगले तीन संस्करणों के खिताबी मुकाबले इंग्लैंड में ही खेले जाएंगे। इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने रविवार (20 जुलाई) को इसकी पुष्टि की। भारत ने भी फाइनल की मेजबानी में कथित रूप से रुचि दिखाई थी। यह फैसला सिंगापुर में आयोजित आईसीसी की वार्षिक आम बैठक के दौरान लिया गया।

आईसीसी द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि बोर्ड ने “हाल के फाइनल की मेजबानी के सफल ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड को 2027, 2029 और 2031 संस्करणों के लिए आईसीसी वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल की मेजबानी के अधिकार देने की पुष्टि की है।”

अब तक, डब्ल्यूटीसी फाइनल के तीनों संस्करण इंग्लैंड में आयोजित किए गए हैं। पहले दो फाइनल क्रमशः साउथेम्प्टन के द रोज बाउल (न्यूजीलैंड ने भारत को हराया) और लंदन के द ओवल (ऑस्ट्रेलिया ने भारत को हराया) में आयोजित किए गए थे। 2025 में साउथ अफ्रीका ने लॉर्ड्स में ऑस्ट्रेलिया को हराया।

मई में पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार बीसीसीआई 2025-2027 साइकल के डब्ल्यूटीसी फाइनल की मेजबानी भारत में कराने पर विचार कर रहा था। इस साल की शुरुआत में जिम्बाब्वे में आईसीसी की मुख्य कार्यकारी समिति की बैठक में इस बारे में चर्चा हुई थी। इस साल साउथ अफ्रीका बनाम ऑस्ट्रेलिया के बीच तीसरा डब्ल्यूटीसी फाइनल लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंड पर खचाखच भरे स्टैंड्स में खेला गया, जहां प्रोटियाज टीम ने आईसीसी ट्रॉफी जीतने के अपने सूखे को खत्म किया। पहली बार डब्ल्यूटीसी फाइनल भारत के बगैर हुआ था।

आईसीसी ने यह भी कहा कि बोर्ड को अफगान मूल की विस्थापित महिला क्रिकेटरों के समर्थन से संबंधित प्रगति पर एक जानकारी प्राप्त हुई है। आईसीसी परिवार में दो नए सदस्य शामिल हुए हैं, जिससे कुल सदस्यों की संख्या 110 हो गई है। तिमोर-लेस्ते क्रिकेट महासंघ और जाम्बिया क्रिकेट संघ औपचारिक रूप से आईसीसी एसोसिएट सदस्य बन गए हैं।

PAK vs BAN: पाकिस्तान को पहले T20 में बांग्लादेश ने पीटा, बुरी तरह से हराकर सीरीज में बनाई बढ़त; परवेज हुसैन ने खेली अर्धशतकीय पारी

PAK vs BAN 1st T20I: बांग्लादेश ने पाकिस्तान को 3 मैचों की टी20 सीरीज के पहले ही मुकाबले में 7 विकेट से हरा दिया और सीरीज में 1-0 की बढ़त बना ली। इस मुकाबले में बांग्लादेश की टीम बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों मोर्चे पर पाकिस्तान के मुकाबले बीस साबित हुई और उसे नतीजा जीत के रूप में मिला। बांग्लादेश ने पाकिस्तान को टी20 प्रारूप में किसी मैच में 2 साल के बाद हराया।

इस मैच में बांग्लादेश की टीम ने टॉस जीता था और फिर पाकिस्तान को पहली पारी में 19.3 ओवर में 110 रन पर ही समेट दिया। बांग्लादेश को जीत के लिए 111 रन का आसान लक्ष्य मिला था जिसे इस टीम ने 15.3 ओवर में 3 विकेट पर 112 रन बनाकर हासिल कर लिया। बांग्लादेश के लिए परवेज हुसैन इमोन ने नाबाद अर्धशतकीय (56 रन) पारी खेली।

इस मैच में बांग्लादेश के खिलाफ पाकिस्तानी ओपनर बल्लेबाज फखर जमान ने अच्छी पारी खेली और 34 गेंदों पर एक छक्का और 6 चौकों की मदद से 44 रन बनाए। खुशदिल शाह ने 18 रन जबकि अब्बास अफरीदी ने 22 रन की पारी खेली। इनके अलावा सईम अयूब 6 रन तो मोहम्मद हासिल 4 रन जबकि कप्तान सलमान आगा 3 रन बनाकर आउट हो गए। मोहम्मद नवाज ने 3 रन जबकि फहीम अशरफ ने 5 रन बनाए। बांग्लादेश के लिए तास्कीन अहमद ने 3 जबकि मुस्ताफिजुर रहमान ने 2 विकेट लिए तो वहीं मेंहदी हसन और तंजीम हसन को एक-एक सफलता मिली।

बांग्लादेश को 111 रन का आसान टारगेट मिला था, लेकिन इस टीम के ओपनर बल्लेबाज तंजीद हसन सिर्फ एक रन के स्कोर पर आउट हो गए। बांग्लादेश का पहला विकेट सिर्फ 2 रन पर ही गिर गया। कप्तान लिटन दास भी कुछ खास नहीं कर पाए और वो भी 1 रन बनाकर पवेलियन लौट गए। बांग्लादेश ने 7 रन पर ही दो विकेट गंवा दिए, लेकिन टीम के ओपनर परवेज हुसैन एक छोर पर टिके रहे और उन्होंने 39 गेंदों पर नाबाद 56 रन बनाते हुए टीम को जीत दिला दी। अपनी पारी में उन्होंने 5 छक्के 3 चौके भी जड़े। तौहीन ने भी 36 रन की अहम पारी खेली जबकि जाकेर अली 15 रन पर नाबाद रहे। पाकिस्तान के लिए सलमान मिर्जा ने 2 जबकि अब्बास अफरीदी ने एक विकेट लिया।

IND vs ENG: भारत का मिशन मैनचेस्टर, गिल-पंत और बुमराह समेत 6 खिलाड़ी प्रैक्टिस सेशन से रहे नदारद

मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड में इंग्लैंड के खिलाफ महत्वपूर्ण चौथे टेस्ट के लिए भारत की तैयारी रविवार (20 जुलाई) को बादलों से घिरे आसमान और बंद दरवाजों के पीछे शुरू हुई। बारिश के कारण टीम को इंडोर प्रैक्टिस करना पड़ा। इंग्लैंड के खिलाफ चौथे टेस्ट से पहले नेट सेशन वैकल्पिक था। ऐसे में कप्तान शुभमन गिल और केएल राहुल सहित कई प्रमुख खिलाड़ियों ने इसमें हिस्सा नहीं लिया।

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत के छह खिलाड़ी कप्तान शुभमन गिल, केएल राहुल, जसप्रीत बुमराह, ऋषभ पंत, वाशिंगटन सुंदर और नितीश कुमार रेड्डी इनडोर सेशन में शामिल नहीं हुए। लगातार बारिश के बावजूद, टीम के बाकी सदस्य स्थानीय समयानुसार दोपहर लगभग 1 बजे ओल्ड ट्रैफर्ड क्रिकेट ग्राउंड पहुंच गए। मीडिया को मैदान के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी।

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वैकल्पिक प्रैक्टिस सेशन होने के बाद भी भारत के कुछ शीर्ष खिलाड़ियों की अनुपस्थिति चौंकाने वाला है। खासकर जब भारत सीरीज में 1-2 से पीछे है और ओल्ड ट्रैफर्ड टेस्ट गिल और उनकी टीम के लिए बेहद अहम है। इस बीच भारत का तेज गेंदबाजी विभाग नई चिंताओं से घिर गया है।

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अर्शदीप सिंह को बेकहेनम में साई सुदर्शन का शॉट फॉलो-थ्रू में रोकते वक्त चोट लग गई। उनके बाएं हाथ में टांके लगे हैं। ऐसे में वह इस मैच के लिए उपलब्ध नहीं हैं। इस बीच आकाशदीप ग्रोइन की समस्या से जूझ रहे हैं। भारतीय टीम ने अंशुल कंबोज को स्क्वाड में जोड़ा है। प्रसिद्ध कृष्णा एक अन्य तेज गेंदबाज के विकल्प हैं। वह पहले 2 टेस्ट खेले थे।

World Championship of Legends: इंडिया-पाकिस्तान मैच रद्द, दोनों टीमों को मिले इतने अंक; अंकतालिका का ऐसा है हाल

World Championship of Legends 2025: वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ लीजेंड्स 2025 में इंडिया चैंपियंस और पाकिस्तान चैंपियंस के बीच रविवार को होने वाला मैच रद्द कर दिया गया। भारत में इस मैच को लेकर काफी विरोध जाहिर किया गया और इसके बाद इंडिया चैंपियंस के कई खिलाड़ी जैसे की शिखर धवन, हरभजन सिंह, सुरेश रैना, इरफान पठान और यूसुफ पठान ने पाकिस्तान के खिलाफ मैच खेलने से मना कर दिया था।

इंडिया चैंपियंस के खिलाड़ियों के इस ऐलान के बाद आयोजकों ने इंडिया-पाकिस्तान मैच रद्द कर दिया और माफी भी मांगी। इस मैच के रद्द होने के बाद इंडिया और पाकिस्तान दोनों टीमों को एक-एक अंक दिए गए। इस एक अंक के साथ अब मोहम्मद हफीज की कप्तानी वाली पाकिस्तान की टीम अब अंकतालिका में टॉप पर आ गई।

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पाकिस्तान ने इस लीग में अब तक 2 मैच खेले हैं जिसमें से उसे पहले मैच में इंग्लैंड के खिलाफ जीत मिली थी और इस टीम को 2 अंक मिले थे तो वहीं इंडिया के खिलाफ मैच रद्द होने के बाद उसे एक अंक मिले। पाकिस्तान के कुल 3 अंक हैं और ये टीम पहले स्थान पर है। वहीं इंडिया की बात करें तो इंडिया का पहला मैच ही पाकिस्तान के खिलाफ होना था, लेकिन मैच रद्द होने के बाद उसे एक अंक मिला और इंडिया अंकतालिका मे्ं खबर लिखे जाने तक चौथे स्थान पर है।

भारत-पाकिस्तान मैच रद्द होने के बाद WCL 2025 की अंकतालिका

भारत को बड़ा झटका, आकाशदीप और अर्शदीप के बाद यह ऑलराउंडर चोटिल; इंग्लैंड दौरे से बाहर

इंग्लैंड के खिलाफ 23 जून से मैनचेस्टर टेस्ट से पहले भारतीय टीम खिलाड़ियों के चोटिल होने से परेशान है। आकाशदीप और अर्शदीप सिंह के चोटिल होने के बाद रविवार (20 जुलाई) को खबर आई कि ऑलराउंडर नितीश कुमार रेड्डी को चोट लग गई है। वह लिगामेंट इंजरी के कारण इंग्लैंड दौरे से बाहर हो गए हैं।

4 खिलाड़ियों के घायल होने के बाद यह है भारत की अपडेटेड टीम, चोट के बावजूद टीम में हैं ऋषभ पंत और आकाशदीप

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अजीत अगरकर की अगुआई वाली चयन समिति नितीश रेड्डी की जगह किसी और खिलाड़ी को इंग्लैंड भेजेगी या नहीं। भारतीय टीम ने आकाशदीप और अर्शदीप के बैकअप के तौर पर तेज गेंदबाज अंशुल कंबोज को अपने साथ जोड़ा है।

नितीश कुमार रेड्डी ने रविवार (20 जुलाई) सुबह टीम प्रबंधन को सूचित किया कि स्ट्रेचिंग करते समय उन्हें दिक्कत महसूस हो रही है। इसके बाग स्कैन में चोट का पता चला। यह खिलाड़ी कुछ हफ्तों तक मैदान से बाहर रह सकता है। आकाशदीप के बाद नितीश रेड्डी के चोटिल होने से मैनचेस्टर टेस्ट में भारतीय टीम को कम से कम 2 बदलाव करना पड़ेगा।

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लीड्स में सीरीज के पहले मैच में बाहर बैठने के बाद नितीश कुमार रेड्डी दूसरे और तीसरे टेस्ट में खेले। बर्मिंघम में उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। उन्होंने उस मैच में सिर्फ दो रन बनाए और छह ओवर में कोई विकेट नहीं लिया। हालांकि, लॉर्ड्स में उन्होंने शीर्ष क्रम के अहम विकेट लिए। पहली पारी में एक ही ओवर में इंग्लैंड के ओपनर बल्लेबाज बेन डकेट और जैक क्रॉली को आउट किया। दूसरी पारी में भी क्रॉली को आउट किया। उन्होंने बल्ले से 30 और 13 रन बनाए।

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नितीश कुमार रेड्डी को चौथे टेस्ट में खेलने का मौका मिल सकता था। हालांकि, ध्रुव जुरेल से उनकी प्रतिस्पर्धा होती, जो ओल्ड ट्रैफर्ड में विकेटकीपर के रूप में खेल सकते हैं। ऐसा तभी होगा जब उंगली की चोट से उबर रहे ऋषभ पंत को विशेषज्ञ बल्लेबाज के रूप में खेलना पड़े। भारत ने अब तक तीनों टेस्ट मैचों में एक तेज गेंदबाज ऑलराउंडर को उतारा है। शार्दुल ठाकुर पहले टेस्ट में खेले थे। रेड्डी ने बर्मिंघम में उनकी जगह ली थी। अगर भारत यही संयोजन जारी रखता है तो रेड्डी की जगह ठाकुर को ओल्ड ट्रैफर्ड में मौका मिल सकता है। चौथे टेस्ट से पहले इंग्लैंड सीरीज में 2-1 से आगे है।