‘जांच समिति के सामने पेश क्यों नहीं हुए? जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल

Justice Yashwant Varma News: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर ही सवाल उठाए। आंतरिक जांच समिति ने नकदी बरामदगी विवाद में जस्टिस यशवंत वर्मा को दोषी पाया था।

जब जस्टिस यशवंत वर्मा मार्च में दिल्ली हाई कोर्ट के जज थे तो उनके सरकारी आवास से कथित तौर पर बड़ी मात्रा में जली हुई नकदी मिली थी। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने वर्मा की पैरवी करने वाले वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि जस्टिस जांच समिति के सामने क्यों नहीं पेश हुए? क्या आप अदालत इसलिए आए थे कि वीडियो हटा दिया जाए?

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सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा पर सवाल खड़े किए और कहा कि आपने जांच पूरी होने और रिपोर्ट जारी होने का इंतज़ार क्यों किया? क्या आप समिति के पास यह सोचकर नहीं गए, कि शायद आपके पक्ष में फैसला आ जाए?’ न्यायालय ने न्यायमूर्ति वर्मा से उनकी याचिका में बनाए गए पक्षकारों को लेकर सवाल किए और कहा कि उन्हें उनकी याचिका के साथ आंतरिक जांच रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए थी।

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जस्टिस वर्मा की तरफ से पेश वकील कपिल सिब्बल ने पीठ के समक्ष कहा कि अनुच्छेद 124 (सुप्रीम कोर्ट की स्थापना और गठन) के तहत एक प्रक्रिया है और किसी न्यायाधीश के बारे में सार्वजनिक तौर पर बहस नहीं की जा सकती है। सिब्बल ने कहा कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट पर वीडियो जारी करना, सार्वजनिक टीका टिप्पणी और मीडिया द्वारा न्यायाधीशों पर आरोप लगाना प्रतिबंधित है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह एक पन्ने पर ‘बुलेट प्वाइंट’ में लिख कर लाएं और वर्मा की याचिका में पक्षकार बनाए गए लोगों के ज्ञापन को सही करें। न्यायालय अब इस मामले पर 30 जुलाई को सुनवाई करेगी। जस्टिस यशवंत वर्मा ने भारत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा आठ मई को की गई उस सिफारिश को भी रद्द किए जाने का अनुरोध किया था, जिसमें उन्होंने (खन्ना) संसद से उनके (वर्मा) खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने का आग्रह किया था।

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अपनी याचिका में जस्टिस वर्मा ने कहा कि जांच ने साक्ष्य पेश करने की जिम्मेदारी बचाव पक्ष पर डाल दी, जिसके तहत उनके विरुद्ध लगाए गए आरोपों की जांच करने और उन्हें गलत साबित करने का भार उन पर डाल दिया गया है। जस्टिस वर्मा ने आरोप लगाया कि समिति की रिपोर्ट पहले से तय धारणा पर आधारित थी। उन्होंने कहा कि जांच की समय-सीमा केवल कार्यवाही को जल्द से जल्द समाप्त करने की इच्छा से प्रेरित थी, चाहे इसके लिए “प्रक्रियात्मक निष्पक्षता” से ही क्यों न समझौता करना पड़े।

जस्टिस वर्मा की याचिका में तर्क दिया गया कि जांच समिति ने वर्मा को पूर्ण और निष्पक्ष सुनवाई का अवसर दिए बिना ही उनके खिलाफ निष्कर्ष निकाल दिया। घटना की जांच कर रही जांच समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का स्टोर रूम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था, जहां आग लगने की घटना के बाद बड़ी मात्रा में आधी जली हुई नकदी मिली थी, जिससे उनका कदाचार साबित होता है, जो इतना गंभीर है कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।

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‘देश ये जानना चाहता है, वो पांच आतंकी कैसे घुसे?’, कांग्रेस के गौरव गोगोई ने सरकार से पूछे कई चुभने वाले सवाल

संसद का मानसून सत्र चल रहा है। लोकसभा में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा चल रही है। ऑपरेशन सिंदूर पर विशेष चर्चा की शुरुआत रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने की। वहीं इसके बाद लोकसभा में कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए कुछ चुभते हुए सवाल पूछे। कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने कहा कि राजनाथ सिंह जी ने बहुत सारी जानकारी दी, लेकिन रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने कभी उल्लेख नहीं किया कि कैसे पाकिस्तान से आतंकवादी पहलगाम पहुंचे और 26 लोगों को मार डाला। उन्होंने कहा कि राष्ट्र के हित में सवाल पूछना हमारा कर्तव्य है।

गौरव गोगोई ने कहा, “पूरा देश और विपक्ष पीएम मोदी का समर्थन कर रहा था। अचानक 10 मई को हमें पता चला कि युद्ध विराम हो गया है। क्यों? हम पीएम मोदी से जानना चाहते थे कि अगर पाकिस्तान घुटने टेकने को तैयार था, तो आप रुके क्यों, और किसके सामने आत्मसमर्पण किया? अमेरिकी राष्ट्रपति 26 बार कह चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को युद्ध विराम के लिए मजबूर किया।”

गौरव गोगोई ने कहा कि हम आज राजनाथ सिंह जी से जानना चाहते हैं कि हमारे कितने लड़ाकू विमान गिराए गए। उन्होंने कहा कि हमें यह न केवल जनता को, बल्कि अपने जवानों को भी बताना होगा, क्योंकि उनसे भी झूठ बोला जा रहा है। गौरव गोगोई ने कहा कि 35 राफेल विमान थे और कितने अभी फंक्शनल हैं? उन्होंने कहा कि अगर एक भी नुकसान हुआ है तो ये बहुत बड़ा नुकसान है।

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गौरव गोगोई ने चीन को लेकर भी मोदी सरकार को घेरा। उन्होंने कहा कि जब युद्ध चल रहा था तब चीन पूरी तरह से पाकिस्तान की मदद कर रहा था, कहां गए लाल आंख दिखाने वाले? उन्होंने कहा कि हमारी विदेश नीति का क्या, जो एकदम फ्लॉप साबित हुई है। गौरव गोगोई ने कहा कि IMF पाक को लोन देता है, आप क्या करते हैं?

गौरव गोगोई ने कहा कि आतंकवादियों का मकसद जम्मू कश्मीर की अर्थव्यवस्था को तबाह करना और देश के सांप्रदायिक ताने-बाने को ध्वस्त करना था। उन्होंने कहा कि सच्चाई बताई जानी चाहिए। गौरव गोगोई ने कहा कि पहलगाम हमले को 100 दिन बीत चुके हैं लेकिन सरकार आतंकवादियों को न्याय के कटघरे में नहीं ला पाई है। गौरव गोगोई ने पूछा कि सेना ने PoK पर कब्जा क्यों नहीं किया? गौरव गोगोई ने कहा की रक्षा मंत्री ने बताया कि युद्ध हमारा मकसद नहीं था, तो मैं पूछना चाहता हूं क्यों नहीं था, होना चाहिए था। गौरव गोगोई ने कहा कि PoK आज नहीं लेंगे तो कब लेंगे।

‘आधार और वोटर ID को माना जाए वैलिड डॉक्यूमेंट’, SIR पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से किया इनकार, EC को दी सलाह

Bihar Special Intensive Revision: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार में चल रहे वोटर लिस्ट रिवीजन में आधार और वोटर आईडी कार्ड को वैलिड डॉक्यूमेंट के तौर पर स्वीकार करने में इलेक्शन कमीशन की अनिच्छा पर सवाल उठाया और कहा कि कोई भी दस्तावेज जाली हो सकता है। हालांकि, कोर्ट ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा, ‘धरती पर किसी भी डॉक्यूमेंट को जाली बनाया जा सकता है।’ कोर्ट ने कहा, ‘इन दो डॉक्यूमेंट्स को शामिल करें। कल आप न केवल आधार देखेंगे, बल्कि 11 में से 11 जाली भी हो सकते हैं। यह एक अलग मुद्दा है। इसे बड़े पैमाने पर शामिल किया जाना चाहिए। कृपया आधार को शामिल करें।’

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चुनाव आयोग की तरफ से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी पेश हुए। उन्होंने दलील दी कि राशन कार्डों से जुड़ी बड़ी समस्याएं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ईपीआईसी भी निर्णायक नहीं हो सकता। हालांकि, अदालत ने उनके रुख पर सवाल उठाया। जस्टिस बागची ने टिप्पणी की, ‘आप कहते हैं कि एसआईआर अधिसूचना के अनुसार कोई भी दस्तावेज निर्णायक नहीं है। मान लीजिए कि कोई व्यक्ति आधार के साथ फॉर्म अपलोड करता है, तो आप उसे ड्राफ्ट में शामिल क्यों नहीं करेंगे।’ जस्टिस कांत ने कहा, ‘केवल ईपीआईसी आदि ही क्यों, किसी भी दस्तावेज के साथ जालसाजी की जा सकती है। आइए हम आधार और ईपीआईसी कार्ड के साथ आगे बढ़ें।’

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने अपनी याचिका में कहा, ‘याचिका में कहा गया है कि 24 जून 2025 के एसआईआर आदेश को यदि रद्द नहीं किया गया तो मनमाने ढंग से और उचित प्रक्रिया के बिना लाखों नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है, जिससे देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव और लोकतंत्र बाधित हो सकता है, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा हैं।’ वोटर लिस्ट रिवीजन के खिलाफ ADR ने सुप्रीम कोर्ट में खोला चुनाव आयोग के खिलाफ मोर्चा

Jagdeep Dhankhar Resignation: उप राष्ट्रपति रहते हुए न्यायपालिका के साथ किन मुद्दों पर हुआ धनखड़ का टकराव?

Jagdeep Dhankhar Controversy: जगदीप धनखड़ को एक ऐसे उप राष्ट्रपति के रूप में जाना जाएगा जिनका अपने कार्यकाल में न्यायपालिका से टकराव होता रहा। वह विपक्ष के निशाने पर तो रहे ही न्यायपालिका को लेकर की गई टिप्पणियों को लेकर भी सुर्खियों में रहे। इससे पहले जब वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे तब भी ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी की सरकार के साथ उनका आमना-सामना होता रहा।

आइए, जानते-समझते हैं कि न्यायपालिका के साथ धनखड़ के रिश्ते कब-कब खराब हुए।

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साल 2022 में धनखड़ की टिप्पणी को लेकर सबसे पहले विवाद तब हुआ जब उन्होंने दिसंबर में राज्यसभा में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा National Judicial Appointments Commission (NJAC) कानून को रद्द करने के फैसले पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश संसद की संप्रभुता से समझौता है और जनादेश का अपमान है।

धनखड़ ने कहा था कि संसद “जनता के आदेश” की कस्टोडियन है और वह इस मुद्दे को हल करेगी। यह वह वक्त था जब विपक्ष राज्यसभा में संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज में सरकार की कथित दखलअंदाजी और न्यायपालिका के साथ टकराव को लेकर चर्चा करने की योजना बना रहा था।

उस दौरान केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि न्यायाधीशों को नियुक्त करने की कॉलेजियम प्रणाली जवाबदेह नहीं है और संविधान के खिलाफ है। उनकी इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी।

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जनवरी, 2023 में धनखड़ की टिप्पणी को लेकर एक बार फिर विवाद हुआ जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 1973 के केशवानंद भारती मामले का हवाला दिया। इस फैसले में कहा गया था कि संसद को संविधान में संशोधन करने का तो अधिकार है लेकिन इसके बेसिक स्ट्रक्चर में नहीं। ऑल इंडिया प्रीसाइडिंग ऑफिसर्स कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था, ‘क्या हम एक लोकतांत्रिक मुल्क हैं?’

धनखड़ ने कहा था, ‘लोकतांत्रिक समाज का आधार जनता की सर्वोच्चता, जनता और संसद की संप्रभुता होती है। कार्यपालिका संसद की संप्रभुता पर निर्भर करती है। विधायिका और संसद तय करती है कि मुख्यमंत्री कौन होगा, प्रधानमंत्री कौन होगा। विधायिका के पास ही अंतिम शक्ति होती है। विधायिका ही तय करती है कि संस्थानों में कौन होगा।’

धनखड़ ने कहा था कि सभी संवैधानिक संस्थाओं- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अपनी सीमाओं के अंदर रहकर काम करना जरूरी है।

मार्च, 2025 में जब दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में जली हुई नकदी मिली तो धनखड़ के बयान से एक बार फिर NJAC को लेकर बहस छिड़ गई। धनखड़ ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द नहीं किया होता तो हालात काफी अलग होते। बताना होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए NJAC एक्ट को खारिज कर दिया था।

‘मैं सही टाइम पर रिटायर होऊंगा’, धनखड़ ने कुछ दिन पहले कहा था

इस साल 22 अप्रैल को जब सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को 3 महीने के भीतर किसी बिल को मंजूरी देनी होगी तब भी धनखड़ ने बिना लाग-लपेट के इसके खिलाफ अपनी बात रखी। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में संविधान के 75 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था, ‘संविधान में संसद से ऊपर किसी की कोई कल्पना नहीं है और चुने हुए जनप्रतिनिधि ही इस बात को तय करते हैं कि संविधान की विषय वस्तु क्या होगी?’

धनखड़ ने एक कार्यक्रम में राज्यसभा इंटर्न्स को संबोधित करते हुए कहा था, ‘भारत में हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां न्यायपालिका राष्ट्रपति को निर्देश दे। हमारे पास ऐसे जज हैं, जो कानून बनाएंगे (विधायिका का काम करेंगे), कार्यपालिका का काम करेंगे और एक सुपर संसद के रूप में काम करेंगे लेकिन उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।’

‘BJP ने जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ अन्याय किया है…’, पूर्ण राज्य की मांग को लेकर दिग्विजय सिंह और तारिक हमीद ने लगाए गंभीर आरोप

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य को लेकर आए दिन राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला मांग करते रहते हैं। अब उनकी हां में हां मिलाते हुए कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा है कि पीएम मोदी हर चुनाव में वादा करते हैं कि वो जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देंगे लेकिन वो कभी वादा पूरा नहीं करते। उन्होंने बीजेपी पर राज्य के साथ भेदभाव का भी आरोप लगाया है।

जम्मू-कश्मीर कांग्रेस प्रमुख तारिक हमीद कर्रा ने कहा है ‘राज्य की मांग अब एक जन आंदोलन में बदल गई है। पहले हमने जम्मू-कश्मीर में घर-घर पहुंचाया है। अब हम लोग दिल्ली में पूर्ण राज्य की मांग करने पहुंचे हैं। हम सरकार पर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के मजबूर करेंगे और दबाव डालेंगे।’

वहीं आंदोलन का हिस्सा बनने पहुंचे कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ अन्याय किया है और प्रधानमंत्री मोदी हर चुनाव में वादा करते हैं कि वे जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देंगे। लेकिन वे कभी वादा पूरा नहीं करते।’

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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि बीते दिनों लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने भी जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य के लिए चिट्ठी लिखी थी। साल 2019 में केंद्र की मोदी सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करते हुए उसे केंद्र शासित राज्य बना दिया गया था साथ ही लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था।

#WATCH | Delhi | Congress MP Digvijay Singh says, “The BJP has done injustice to the people of J&K and PM Modi promises in every election that they will grant statehood to J&K…But they never fulfil the promise…” pic.twitter.com/yjRKkGZW9M

जिसके बाद बीते साल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव हुए, जिसमें उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस को जीत मिली और वो राज्य के मुख्यमंत्री बनें। हालांकि अब्दुल्ला और राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बीच आए दिन मतभेद की खबरें आती रहती हैं।

Explained: रूस से तेल आयात पर भारत की दुविधा क्यों बढ़ी? जानिए अब क्या करना होगा

भारत पर रूस से तेल आयात बंद करने का दबाव बढ़ता जा रहा है। नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन यानी नाटो के महासचिव मार्क रुट ने चीन, ब्राजील और भारत से कहा है कि वे रूस पर यूक्रेन में युद्ध बंद करने का दबाव डालें, नहीं तो अमेरिकी प्रतिबंध के लिए तैयार रहें। दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी कहा है कि यूक्रेन में युद्ध पर अगले 50 दिनों में कोई समझौता नहीं होता है, तो रूस को भारी शुल्क का सामना करना पड़ेगा।

तेल मंत्रालय के अनुसार, भारत अपनी जरूरत का करीब 88 फीसद तेल आयात करता है। रूस के कुल तेल निर्यात का 38 फीसद तेल भारत खरीद रहा है। दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र में असोसिएट प्रोफेसर राजन कुमार कहते हैं कि भारत पर दबाव तो बढ़ गया है और इस दबाव की यूं ही उपेक्षा नहीं की जा सकती है।

उन्होंने कहा कि भारत के सामने दो चुनौतियां होंगी। रूस से तेल आयात बंद हुआ तो भारत को सस्ता तेल नहीं मिलेगा। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ेंगी। यानी भारत को महंगा तेल खरीदना होगा, लेकिन मामला केवल तेल का नहीं है। अमेरिका तो कह रहा है कि भारत रूस से व्यापार ही बंद कर दे। ऐसे में भारत की रक्षा आपूर्ति का क्या होगा? मुझे नहीं लगता है कि भारत अमेरिका के इस दबाव को पूरी तरह से मानेगा।

राजन कुमार कहते हैं, ट्रंप की धमकी अगर सच्चाई में बदलती है तो भारत के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी। जहां तक रूस की बात है तो मुझे लगता है कि वह भारत की मजबूरी को समझता है, लेकिन भारत के सामने चीन भी है और चीन अमेरिकी धमकियों के सामने झुकेगा नहीं। चीन ने ट्रंप की हर धमकी का जवाब दिया है और ट्रंप खुद व्यापार समझौता करने के लिए मजबूर हुए। यानी ट्रंप अपने दोस्तों के साथ बहुत सख्ती से पेश आ रहे हैं, लेकिन जो उन्हें उसी भाषा में जवाब दे रहा है, उससे समझौते कर रहे हैं। लेकिन भारत चीन नहीं है। चीन ने रेयर अर्थ मिनरल और सेमीकंडक्टर की सप्लाई रोक दी थी।

राजन कुमार कहते हैं, जाहिर कि रूस की निर्भरता चीन पर और बढ़ेगी और यह भारत के लिए किसी भी लिहाज से ठीक नहीं है। रूस के पास अब चीन का कोई विकल्प नहीं है। रूस के कुल तेल निर्यात का 47 फीसद चीन में हो रहा है। इसके बावजूद चीन पूरी तरह से पश्चिम विरोधी नहीं हो सकता है क्योंकि पश्चिम के साथ चीन का व्यापार बहुत बड़ा है। रूस से तमाम करीबी के बावजूद चीन ने रूस को रक्षा समाग्री नहीं दी।

भारत के सामने दो चुनौतियां होंगी। रूस से तेल आयात बंद हुआ तो भारत को सस्ता तेल नहीं मिलेगा। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ेंगी। यानी भारत को महंगा तेल खरीदना होगा, लेकिन मामला केवल तेल का नहीं है। अमेरिका तो कह रहा है कि भारत रूस से व्यापार ही बंद कर दे। ऐसे में भारत की रक्षा आपूर्ति का क्या होगा?

रूस में भारत के राजदूत रहे और भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा कि नाटो अब भारत को धमकी दे रहा है। यहाँ तक कि नाटो प्रमुख ने चीन से पहले भारत का जिक्र किया है। नाटो प्रमुख भारत, चीन और ब्राजील को धमकी देकर जियोपालिटिकल गहराई की अज्ञानता ही जाहिर कर रहे हैं। सिब्बल ने कहा, क्या इन तीनों देशों को भी नाटो निर्देशित करेगा? तुर्की रूस से बड़ी मात्रा में तेल आयात करता है। तुर्की नाटो का सदस्य है। क्या नाटो महासचिव तुर्की पर भी प्रतिबंध लगाएंगे?

उन्होंने कहा कि ईयू अब भी अपनी जरूरत का सात फीसद तेल रूस से आयात करता है। क्या हंगरी और स्लोवाकिया पर भी प्रतिबंध लगाए जाएंगे? ये दोनों देश भी नाटो के सदस्य हैं। मार्क रूट इस पर भी चुप हैं। नाटो को हमें आधिकारिक रूप से जवाब देना चाहिए ताकि ट्रंप को भी एक संदेश जाए। ट्रंप यूक्रेन में युद्ध बंद कराना चाहते हैं लेकिन पुतिन तैयार नहीं हैं। अब ट्रंप रूस को सीधे बोलने के बजाय उन देशों को निशाना बना रहे हैं, जो रूस से तेल खरीद रहे हैं। रूस प्रति दिन 70 लाख बैरल से ज्यादा तेल निर्यात कर रहा है और अगर यह बाधित होता है तो कच्चे तेल की कीमत बढ़ेगी।

नाटो अब भारत को धमकी दे रहा है। यहां तक कि नाटो प्रमुख ने चीन से पहले भारत का जिक्र किया है। नाटो प्रमुख भारत, चीन और ब्राजील को धमकी देकर जियोपालिटिकल गहराई की अज्ञानता ही जाहिर कर रहे हैं। क्या इन तीनों देशों को भी नाटो निर्देशित करेगा? नाटो महासचिव को अहसास नहीं है कि ऐसी चेतावनियों का क्या असर होगा।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के मुताबिक, भारत को ये दबाव नहीं मानना चाहिए क्योंकि अमेरिका का यह आखिरी दबाव नहीं होगा। इनकी मांगें बढ़ती जाएंगी। रूस से सस्ता तेल मिल रहा है और हमें खरीदना चाहिए। अगर रूस से तेल नहीं लेंगे तो तेल महंगा होगा और इसका असर सीधे भारत की जनता पर पड़ेगा।

पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी ने एक बयान में कहा था कि हम किसी भी तरह के दबाव में नहीं हैं। भारत का तेल आयात किसी देश पर निर्भर नहीं है। हम पूरे मामले में किसी तरह से परेशान नहीं हैं। अगर कुछ होता है, तो हम उसे संभाल लेंगे। तेल आपूर्ति को लेकर कोई समस्या नहीं है। भारत और चीन रूस के कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातक देश हैं।

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धनखड़ के इस्तीफे के बाद कौन चलाएगा राज्यसभा? यहां जानें जवाब

Jagdeep Dhankar Vice President Resigns: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, उनकी तरफ से स्वास्थ्य कारणों का हवाल देकर इतना बड़ा कदम उठाया गया है। अब उनके अचानक दिए गए इस्तीफे ने सभी को हैरान कर दिया है। इस फैसले ने कई सवालों को भी जन्म दिया है, सबसे जरूरी और स्वभाविक तो यही है- आखिर अब राज्यसभा कौन चलाने वाला है? मानसून सत्र तो अभी चल रहा है, धनखड़ वाली कुर्सी पर कौन बैठेगा?

अब इस सवाल जवाब एकदम स्पष्ट है। जो भी देश के उपराष्ट्रपति होते हैं, उनका सबसे बेसिक काम राज्यसभा को संभालना ही होता है, संवैधानिक भाषा में इसे हम सभापति का पद कहते हैं। जिस तरह लोकसभा की कार्यवाही स्पीकर देखते हैं, राज्यसभा में यही जिम्मेदारी सभापति की होती है। अब इस केस में अभी तक तो सभापति की जिम्मेदारी जगदीप धनखड़ ने संभाल रखी थी, लेकिन उन्होंने क्योंकि इस्तीफा दे दिया है तो इस जिम्मेदारी को कोई और लेने वाला है।

अब जैसे हर चीज का बैकअप होता है, राज्यसभा भी ऐसी अप्रत्याशित घटनाओं के लिए तैयार रहता है। अगर कभी उपराष्ट्रपति अपने पद से इस्तीफा दे दें तो उस स्थिति में संसद की कार्यवाही उपसभापति के पास चली जाती है। जब तक नए उपराष्ट्रपति नहीं चुन लिए जाते, उपसभापति ही उस पद को संभालते हैं। इस समय राज्यसभा के उपसभापति की जिम्मेदारी हरिवंश नारायण सिंह के पास है। ऐसे में जब मानसून सत्र फिर शुरू होगा, उस कुर्सी पर धनखड़ की जगह हरिवंश बैठे होंगे।

वैसे कुछ सवाल पूछ रहे हैं क्या हमारा संविधान कार्यवाहक उपराष्ट्रपति की बात करता है? अब यह सवाल भी इसलिए क्योंकि हमने कार्यवाहक पीएम, कार्यवाहक सीएम देखे हैं, ऐसे में क्या कार्यवाही उपराष्ट्रपति भी होते हैं? इसका सीधा जवाब है नहीं। हमारा संविधान कोई भी ऐसा पद नहीं देता है, ऐसे में अगर उपराष्ट्रपति इस्तीफा देंगे तो जल्द से जल्द फिर चुनाव ही करवाना होगा।

धनखड़ के इस्तीफे के बाद नीतीश कुमार को लेकर जोरदार चर्चा

उपराष्ट्रपति ने अपने पत्र में लिखा, “मैं संविधान के अनुच्छेद 67A के अनुसार अपने पद से इस्तीफा देता हूं। मैं भारत के राष्ट्रपति में गहरी कृतज्ञता प्रकट करता हूं। आपका समर्थन अडिग रहा और मेरा कार्यकाल शांतिपूर्ण और बेहतरीन रहा। मैं माननीय प्रधानमंत्री और मंत्रीपरिषद के प्रति भी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। प्रधानमंत्री का सहयोग और समर्थन अमूल्य रहा है और मैंने अपने कार्यकाल के दौरान उनसे बहुत कुछ सीखा है। माननीय सांसदों से जो मुझे स्नेह, विश्वास और अपनापन मिला, वह मेरी स्मृति में हमेशा रहेगा। मैं इस महान लोकतंत्र के लिए आभारी हूं कि मुझे इस महान लोकतंत्र में उपराष्ट्रपति के रूप में जो अनुभव और ज्ञान मिला, वह अत्यंत मूल्यवान रहा। यह मेरे लिए सौभाग्य और संतोष की बात रही है कि मैंने भारत की अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति और परिवर्तनकारी युग में तेज विकास को देखा और उसमें अपनी भागीदारी निभाई। इस महत्वपूर्ण दौर में सेवा करना मेरे लिए सच्चे सम्मान की बात रही है। आज जब मैं इस पद को छोड़ रहा हूं तो मेरे दिल में भारत की उपलब्धियां और शानदार भविष्य के लिए गर्व और अटूट विश्वास है।

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आज की ताजा खबर, हिंदी न्यूज 22 जुलाई 2025 LIVE: बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, 24 जुलाई को होगी सुनवाई

आज की ताजा खबर (Aaj Ki Taaja Khabar), Hindi News (हिंदी न्यूज़) LIVE: सरकार ने सोमवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर दी है। लोकसभा के 145 और राज्यसभा के 63 सांसदों ने वर्मा को हटाने के लिए लोकसभा और राज्यसभा के पीठासीन अधिकारियों को ज्ञापन दिए हैं। नोटिस पर साइन करने वालों में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद और अनुराग ठाकुर और सुप्रिया सुले सहित अन्य शामिल हैं। यह नोटिस संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंपा गया। सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जज, एक हाई कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद वाली समिति जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच करेगी और उसे तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा जाएगा। जांच रिपोर्ट संसद में पेश की जाएगी। इसके बाद दोनों सदनों में चर्चा होगी और उसके बाद जस्टिस वर्मा को हटाने के प्रस्ताव पर मतदान होगा।

धनखड़ के इस्तीफे के बाद कौन चलाएगा राज्यसभा?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने दिया इस्तीफा: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार शाम अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया और स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र भेजकर कहा है कि वह तत्काल प्रभाव से पद छोड़ रहे हैं। उनके पत्र में लिखा था, ‘स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सीय सलाह का पालन करने के लिए, मैं भारत के उपराष्ट्रपति पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं।’ पल-पल की अपडेट्स के लिए जुड़े रहिये जनसत्ता के साथ

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मराठी भाषा विवाद पर महाराष्ट्र के मंत्री गिरीश महाजन ने कहा, “निश्चित रूप से मराठी हमारी मातृभाषा है और यह हमारी प्राथमिकता है, लेकिन अगर हम किसी और को मराठी बोलने के लिए मजबूर करते हैं या उन्हें पीटते हैं, तो यह भी हमारे राज्य के लिए सही नहीं है। हम भी बाहर जाते हैं और अगर कोई हमें तमिल या बंगाली में बोलने के लिए कहे तो हम क्या करेंगे। हम ऐसे देश में रहते हैं जहां कई भाषाएं बोली जाती हैं। हमें अपनी भाषाओं से प्यार है, लेकिन मुझे भी इस तरह का रवैया पसंद नहीं है।”

मराठी भाषा विवाद पर महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने कहा, “जब मैं तमिलनाडु में सांसद था, तो एक दिन मैंने कुछ लोगों को किसी को पीटते देखा। जब मैंने उनसे समस्या पूछी, तो वे हिंदी में बात कर रहे थे। फिर, होटल मालिक ने मुझे बताया कि वे तमिल नहीं बोलते हैं, और लोग उन्हें तमिल बोलने के लिए पीट रहे थे। अगर हम इस तरह की नफरत फैलाएंगे, तो कौन आएगा और निवेश करेगा। लंबे समय में, हम महाराष्ट्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं। मैं हिंदी समझने में असमर्थ हूं और यह मेरे लिए एक बाधा है। हमें अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिए, और हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए।”

एयर इंडिया का कहना है कि बोइंग बेड़े में फ्यूल स्विच लॉकिंग सिस्टम का निरीक्षण पूरा हो गया है, कोई समस्या नहीं पाई गई।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “मैं उनकी कुशलता और लंबी आयु की कामना करता हूं। यह पहली बार है जब किसी उपराष्ट्रपति ने इस तरह से इस्तीफा दिया है। दुर्भाग्य से, उनके स्वास्थ्य ने उन्हें आगे काम करने की अनुमति नहीं दी। उम्मीद है कि अगले उपराष्ट्रपति अपने पद और कार्यालय के साथ न्याय करेंगे।”

लोकसभा 23 जुलाई को 11:00 बजे शुरू होगी, इस पर केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “वे (विपक्ष) चर्चा की मांग कर रहे हैं और हम इसके लिए तैयार हैं। फिर वे सदन को चलने क्यों नहीं दे रहे हैं? यह दोहरा मापदंड गलत है। अगर आप चर्चा चाहते हैं, तो हंगामा न करें। सरकार ने कहा है कि हम चर्चा के लिए तैयार हैं। आप जनता का पैसा बर्बाद कर रहे हैं।”

जम्मू-कश्मीर कांग्रेस प्रमुख तारिक हमीद कर्रा ने कहा, “राज्य की मांग अब एक जन आंदोलन में बदल गई है। हम सरकार पर जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने के लिए दबाव डाल रहे हैं।”

कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस नेता और छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल की गिरफ्तारी के विरोध में सड़क जाम कर विरोध प्रदर्शन और आर्थिक नाकेबंदी की।

जगदीप धनखड़ के भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने पर, आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण कहते हैं, “जब वे अस्पताल में भर्ती थे, तब मैंने उन्हें अपने संदेश दिए थे। मेरी उनसे हमेशा अच्छी बातचीत रही है। वे अत्यंत संतुलित, बुद्धिमान और राजनीतिक रूप से अनुभवी व्यक्ति हैं, जिस तरह से वे सदन चलाते हैं, वह एक बड़ी क्षति है। हालांकि उन्होंने इस्तीफा दे दिया है, मैं हमेशा चाहता हूं कि वे आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करें। मुझे उम्मीद है कि वे एक भूमिका निभाएं, मेरे जैसे लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं।”

बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद ने कहा, “सिर्फ देश के निवासियों को ही वोट देने का अधिकार है। अगर इसकी जांच हो रही है तो उन्हें दिक्कत क्यों है? अररिया, पूर्णिया और किशनगंज में 125 प्रतिशत लोगों को आधार कार्ड जारी किए गए हैं। चुनाव आयोग ने कहा है कि ज्यादातर लोग बाहर से आए हैं। भारत कोई धर्मशाला नहीं है। बांग्लादेशियों और घुसपैठियों के नाम पर राजनीति करने वाले नेता घबराए हुए हैं।”

जगदीप धनखड़ के भारत के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने को लेकर सामूहिक चिंता के बीच, उनके बहनोई प्रवीण बलवदा कहते हैं, “लंबे समय से स्वास्थ्य समस्या थी, मार्च में एक प्रक्रिया हुई, स्टेंट डाले गए, उन्हें भाषण देने में कठिनाई होती थी, स्वास्थ्य अधिक महत्वपूर्ण है, वह काम के प्रति बहुत समर्पित हैं, उन्हें लगता था कि वह काम के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। उन्होंने आखिरकार वही स्वीकार किया जो परिवार चाहता था।”

बांग्लादेश वायुसेना के विमान हादसे पर माइलस्टोन स्कूल एंड कॉलेज की 11वीं कक्षा की छात्रा संजीदा अख्तर स्मृति कहती हैं, “मैंने 10-12 लोगों के क्षत-विक्षत शव देखे। वे कैसे कह सकते हैं कि सिर्फ़ 21 लोग ही मरे? विमान इस इमारत से सिर्फ 5 फीट ऊपर था। अगर यह यहां गिरता, तो हज़ारों छात्र मारे जाते। इतनी घनी आबादी वाले इलाके में प्रशिक्षण विमान क्यों उड़ेगा? 1966 में चीन से ख़रीदे गए इतने पुराने विमान से प्रशिक्षण क्यों दिया जा रहा है?”

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर भाजपा सांसद कंगना रनौत ने कहा, “देश और संसद को अपना समय और सेवा देने के लिए हम उनके आभारी हैं। इसके लिए हम हमेशा उनके आभारी रहेंगे।”

बीजेपी सांसद अशोक चव्हाण ने कहा, ‘विपक्ष का सदन में हंगामा करना ठीक नहीं है। विपक्ष को एक जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभानी चाहिए।”

गृह मंत्रालय ने संविधान के अनुच्छेद 67ए के तहत उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देने की सूचना दी है।

अपने पार्टी सहयोगी के मुरलीधरन की ‘अब हम में से नहीं’ टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए, कांग्रेस सांसद शशि थरूर कहते हैं, “जो लोग ऐसा कह रहे हैं, उनके पास कहने का कोई आधार भी होना चाहिए। वे कौन हैं? उनकी पार्टी की स्थिति क्या है। मैं जानना चाहता हूं। मुझसे दूसरों के व्यवहार के बारे में बताने के लिए मत कहिए। आप उनसे उनके व्यवहार के बारे में बात कीजिए। मैं सिर्फ अपने व्यवहार के बारे में ही बात कर सकता हूं।”

पंजाब के सीएम भगवंत मान लैंड पूलिंग योजना पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहते हैं, विपक्षी दलों द्वारा यह अफवाह फैलाई जा रही है कि जहाँ भी सरकार अधिसूचना जारी करेगी, उन सभी ज़मीनों की रजिस्ट्री रोक दी जाएगी। यह एक निराधार आरोप है। अगर सरकार को शहरी बसावट बनानी है, लेकिन कोई कहता है कि वह अपनी ज़मीन नहीं देना चाहता। तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह व्यक्ति उस ज़मीन पर लोन नहीं ले सकता या रजिस्ट्री नहीं करा सकता। वे उस जमीन पर आजादी से खेती कर सकते हैं। वह मुफ्त जमीन है। सरकार उस शहरी बसावट को दूसरी मुफ्त जमीन पर भी बना सकती है। अगर वे एक-दो साल बाद ज़मीन की कीमत देखकर उसे देना चाहें, तो दे सकते हैं।’

बिहार विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन पर राजद नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी ने कहा, “सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार के 3 करोड़ लोग मज़दूरी करने राज्य से बाहर जाते हैं और अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए बिहार आते हैं। चुनाव आयोग ने अनपढ़ और गरीबों के लिए क्या तैयारी की है? चुनाव आयोग अब तक क्यों सोया हुआ था? यह प्रक्षेपण पिछड़े वर्गों, दलितों, अल्पसंख्यकों को मतदाता सूची से बाहर करने का एक बहाना है। एक विशेष पार्टी का दावा है कि बांग्लादेशी पलायन कर गए हैं, और यदि ऐसा है, तो यह केंद्र सरकार की विफलता है। बीएसएफ कहां थी? हम इसका सड़क पर और विधानसभा में भी विरोध करेंगे।”

बिहार में SIR (विशेष गहन समीक्षा) अभ्यास के मुद्दे पर विपक्ष के विरोध पर कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा, “वे लोकतंत्र की हत्या कर रहे हैं। हम इसका विरोध कर रहे हैं और यह गलत है।”

बिहार विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन पर बिहार AIMIM अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने कहा, “राज्य सरकार के काम कालिख पोतने लायक हैं। मैंने AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के साथ SIR के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। बिहार में हर कोई परेशान है और यह कानून नीतीश कुमार सरकार के ताबूत में कील साबित होगा।” वीपी जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर उन्होंने कहा, “अगर वह बीमार होते, तो उनका इलाज हो सकता था। इस्तीफा कोई समाधान नहीं है। पार्टी (भाजपा) ही बीमार हो रही है।”

बिहार में SIR (विशेष गहन समीक्षा) अभ्यास के मुद्दे पर विपक्ष के विरोध पर समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव ने कहा, “सरकार का जनता की शिकायतों को सुनने का कोई इरादा नहीं है और SIR (विशेष गहन समीक्षा) अभ्यास विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आखिरी समय में किया जा रहा है। इससे सरकार की मंशा पर सवालिया निशान लग रहे हैं।”

धनखड़ के इस्तीफे के बाद वाइस प्रेसिडेंट पद की दौड़ में सीएम नीतीश कुमार के शामिल होने की अटकलों के बारे में पूछे जाने पर बिहार के मंत्री नीरज कुमार सिंह बबलू कहते हैं, “यह अच्छी बात है। अगर वह बन जाते हैं, तो इसमें क्या दिक्कत है?…”

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने कहा, “यह अचानक नहीं हो सकता। कल वह सदन की अध्यक्षता कर रहे थे और आज उन्होंने इस्तीफा दे दिया। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें लंबी और स्वस्थ आयु प्रदान करें। उनके इस्तीफे का कोई और कारण है।”

केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा, “वह बहुत गंभीर और अनुशासित व्यक्ति हैं; देश के लिए उनका योगदान अतुलनीय रहा है। वह सबकी बात सुनते थे, लेकिन कुछ दिनों से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए उन्होंने इस्तीफा दे दिया।”

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर कांग्रेस नेता सुबोधकांत सहाय कहते हैं, “जगदीप धनखड़ मेरे पुराने मित्र रहे हैं। कांग्रेस की चंद्रशेखर सरकार में मंत्री रहे। मंत्री बनने का मौका मिलने पर उन्होंने सोनिया गांधी का आभार व्यक्त किया था। वह खुशमिजाज़ इंसान रहे हैं, उपराष्ट्रपति भी बने। एक बार मैं अपनी पत्नी के साथ बंगाल गया था, तो उन्होंने मेरा बहुत अच्छे से स्वागत किया। मुझे नहीं लगता कि उनकी तबीयत खराब है, वह हरियाणा से हैं, बहुत मजबूत इंसान हैं। जहां तक मोदी जी की समझ का सवाल है, लगता है वह हमेशा शतरंज की बिसात पर ही रहते हैं। लगता है वह उनके लिए अप्रासंगिक हो गए।”

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर भाजपा सांसद अशोक चव्हाण ने कहा, “विपक्ष को जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के पीछे के कारण पर भरोसा करना चाहिए।”

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा कि यह बहुत दुखद है और जो कुछ भी हुआ वह सामान्य नहीं है।

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर समाजवादी पार्टी के सांसद अखिलेश यादव ने कहा, “हमें जानकारी मिली है कि जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया है। यह उनका निजी फैसला है।”

बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल ने कहा, “विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर चर्चा होगी। विपक्ष को सदन चलने देना चाहिए। आज, किसानों के मुद्दों पर सभी प्रश्न सूचीबद्ध हैं। लोकसभा के विपक्ष के नेता राहुल गांधी को सदन की परंपराओं का ज्ञान होना चाहिए। राहुल गांधी चर्चा नहीं करना चाहते; कांग्रेस पार्टी के नेता वेल में आकर हंगामा करना चाहते हैं।”

राज्य विधानसभा चुनाव 2025 से पहले बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ विपक्षी नेताओं ने बिहार विधानसभा के बाहर विरोध प्रदर्शन किया।

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा, ‘उनका इस्तीफा दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन यह देखते हुए कि उन्होंने पूरे दिन राज्यसभा की कार्यवाही संचालित की और 23 जुलाई को जयपुर में उनका कार्यक्रम है और महीने में 20 दिन दौरे भी करते थे, यह संकेत है कि पिछले कुछ दिनों में उनके द्वारा दिए गए बयान भाजपा को स्वीकार्य नहीं थे। भाजपा किसानों को नहीं, बल्कि सभी को अपने नजरिए से काम करते देखना चाहती है, जो जगदीप धनखड़ नहीं कर पाए और हम देख सकते हैं कि उन्होंने अब इस्तीफा दे दिया।’

Blog: दुनिया भर में विधवा महिलाओं की दशा कमोबेश एक जैसी ही, पूर्वाग्रहों और उपेक्षा से उपजा संकट

दुनिया भर में विधवा महिलाओं की दशा कमोबेश एक जैसी है। उनके प्रति हिंसा, निंदा, नफरत, उपेक्षा का भाव भारत के अलावा दुनिया के तमाम देशों में परंपरागत रूप से है। भारत में लंबे समय से ऐसी महिलाओं की उपेक्षा हो रही है। यही वजह है कि समाज सुधारकों ने विधवाओं की दशा सुधारने के लिए संघर्ष किया और कई आंदोलन चलाए। भारत में नवजागरण काल में राजा राम मोहन राय, आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद, केशवचंद्र सेन, महात्मा फुले, सावित्री बाई फुले और कुछ विदेशी समाज सुधारकों ने भी विधवाओं की दयनीय दशा सुधारने के लिए भरसक कोशिशें कीं। अंग्रेजी हुकूमत में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाया गया, जिसका समाज पर अनुकूल असर पड़ा।

भारत जब आजाद हुआ, तो विकास और प्रगति के साथ देश की दयनीय स्थिति में काफी सुधार आया, लेकिन विधवाओं की दशा में कोई खास बदलाव नहीं आया। इतना जरूर हुआ कि सती प्रथा को गैरकानूनी और संगीन अपराध के दायरे में ला दिया गया। विकास और सामाजिक जागरूकता के तमाम प्रयासों के बावजूद आज विधवा महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक दशा में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ। पारिवारिक और दूसरे तमाम कारणों से आज भी इनकी दशा समाज के दूसरे वर्गों के मुकाबले चिंताजनक है। अध्ययन इस बात के गवाह हैं कि विकासशील देशों में विधवाओं की दशा विकसित देशों की अपेक्षा कहीं ज्यादा खराब है।

एक अध्ययन के मुताबिक, दुनियाभर में 26 करोड़ से ज्यादा विधवा महिलाएं हैं। इनमें भारत और चीन में सबसे ज्यादा हैं। भारत में इनकी संख्या चार करोड़ से अधिक है। इनमें से ज्यादातर महिलाएं कमजोर तबके से ताल्लुक रखती हैं। पूर्व सैनिकों की विधवाओं की संख्या सात लाख से अधिक है और सरकार इनके लिए तमाम योजनाओं के माध्यम से मदद करती है। इनमें पुनर्विवाह अनुदान, पेंशन, वित्तीय सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, चिकित्सा सहायता और रोजगार के अवसर शामिल हैं। आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब में सबसे अधिक पूर्व सैनिकों की विधवाएं रहती हैं, जिनकी संख्या 75 हजार से अधिक है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में करीब 72 हजार, केरल में 71 हजार से ज्यादा, महाराष्ट्र में 67 हजार से अधिक, राजस्थान में करीब 61 हजार और हरियाणा में 58 हजार से ज्यादा विधवाएं हैं। केंद्र सरकार विधवाओं को हर तरह से मदद देती है, जिनमें पारिवारिक पेंशन, महंगाई राहत, बेटी की शादी के लिए अनुदान, विधवा पुनर्विवाह अनुदान, गंभीर रोग अनुदान, व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना शामिल हैं। इसके अलावा राज्य सरकारें भी कई योजनाएं चला रही हैं।

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किसी महिला के विधवा होने पर उसके सामने सबसे बड़ी समस्या आर्थिक होती है। उनकी संतानों को भी स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में उपेक्षा का दंश झेलना पड़ता है। ऐसे में उस महिला के सामने खुद को संभालते हुए बच्चों की परवरिश और उनकी शिक्षा के लिए उपयुक्त प्रबंध करना बड़ी चुनौती होती है। सवाल यह है कि बड़े स्तर पर सरकारी और गैरसरकारी राहत मुहैया कराने के बावजूद भारत में विधवाओं की दशा असंतोषजनक क्यों है? आजादी के अठहत्तर वर्ष बाद भी समाज में इनकी दशा में सुधार क्यों नहीं हुआ? भारत में विधवाओं की दशा दुनिया के दूसरे देशों की विधवाओं से खराब क्यों है? पारिवारिक और सामाजिक नजरिए में सकारात्मक बदलाव क्यों नहीं आया, खासकर गांवों में। इनके प्रति उपेक्षा का भाव आज तक नहीं बदला। अशुभ मानने की सोच, अनादर और निंदा करने की लोगों की आदत में व्यापक बदलाव देखने को नहीं मिला है। सवाल ज्यादा हैं, लेकिन इनके जवाब बहुत कम या न के बराबर हैं।

आज भी उत्सव, संस्कार और काज-प्रयोजनों में विधवा महिलाओं को निमंत्रित नहीं किया जाता है। यदि किया भी जाता है, तो उनको वैसा सम्मान नहीं मिलता, जिसकी वे हकदार हैं। यहां तक कि पारिवारिक आयोजनों में उनकी भूमिका भी खत्म कर दी जाती है। सवाल यह है कि अपशगुन विधवा की वजह से ही क्यों होता है? विधुर की मौजूदगी अपशगुन की वजह क्यों नहीं बनती? पति की मृत्यु को महिला के अपशगुन से क्यों जोड़ कर देखा जाता है? असल में अपशुगन तो उपेक्षा और रूढ़िवादी सोच है, जो विधवा महिलाओं की इस दशा के लिए जिम्मेदार है।

किसी पुरुष के विधुर होने पर उसका फिर से विवाह आसानी से हो जाना और महिला का विवाह सहजता से न होना या बाकी जिंदगी अकेले गुजारने के लिए उसे सलाह देना या इसके लिए विवश करने जैसे हालात पैदा करने के पीछे कौन-सी मानसिकता है, जिसकी वजह से विधवाओं की दशा में सुधार नहीं हो पा रहा है।

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विधवा महिलाओं की समस्याओं और सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों का उद्देश्य इन्हीं सब सवालों के समाधान के लिए समाज को तैयार करना है। विधवाओं के प्रति पुरुष या स्त्री की मानसिकता के अध्ययन का निष्कर्ष हैरान करने वाला है। पुरुष विधवाओं को जितना अपशगुन मानते हैं, कई सुहागिन महिलाएं उससे कहीं ज्यादा मानती हैं। ऐसे उदाहरण आम हैं, जिनमें शादीशुदा महिला किसी विधवा को अपने साथ उत्सव या दूसरे किसी खास मौकों पर ले जाना या उसके साथ बैठना अच्छा नहीं मानती है। यहां तक कि कई उच्च शिक्षित महिलाओं में भी इस तरह का बर्ताव देखा जा सकता है।

इस मसले पर सामाजिक जागरूकता फैलाने का उद्देश्य यह भी है कि जिन वजहों से कोई महिला विधवा होती है, उन कारणों पर बारीकी से गौर किया जाए और फिर उसके समाधान के लिए ठोस प्रयास किए जाएं। इसके अलावा, किसी महिला के विधवा हो जाने के बाद परिवार और समाज में उसे वैसा ही सम्मान और प्यार मिलना चाहिए जैसे पहले मिलता था। इसके लिए लोगों को जागरूक करना ही काफी नहीं है, बल्कि उन सभी तरह की मानसिकता, मान्यताओं, धारणाओं, हालात और नकारात्मक बर्ताव के प्रति सावधान भी करना है। क्योंकि, विधवा महिलाओं से नफरत, निंदा या उसे प्रताड़ित करना कानून की नजर में तो अपराध है ही, सामाजिक तौर पर भी यह अमानवीय कृत्य है।

एक अध्ययन के मुताबिक, विधवा होने की एक मुख्य वजह पति की गंभीर बीमारी या किसी हादसे में मौत होना भी है। यह प्राकृतिक मौतों से अलग प्रश्न है। कारण कोई भी हो, लेकिन इसके बाद ऐसी महिलाओं के जीवन में उपजी मुश्किलों को दूर करने की कोशिशें बहुत कम होती हैं। खासकर गरीब परिवारों में जहां हालात ऐसे नहीं होते कि बीमारियों से बचाव के लिए समय रहते उचित उपचार की व्यवस्था की जा सके। चीन में भी भारत जैसी स्थिति है। वहां भी कोई महिला विधवा होने पर परिवार व समाज दोनों से उपेक्षित होती है। ऐसी महिलाओं के प्रति बहिष्कार वाली मानसिकता चीन व भारत सहित दुनिया के कई विकासशील देशों में है। विधवा होते ही किसी महिला को अशुभ मानना और उसके साये से भी दूर रहने की मानसिकता आज भी बदली नहीं है। भारत, चीन और दूसरे देशों में कुछ समुदायों में विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं दी जाती है, इस रूढ़िवादी सोच को बदलने की जरूरत है।

Bihar News: आधार, वोटर ID और राशन कार्ड को शामिल करने से चुनाव आयोग का इनकार; एफिडेविट में क्या वजह बताई?

Bihar Voter List Revision: बिहार में जैसे-जैसे 25 जुलाई की तारीख नजदीक आ रही है, वोटर लिस्ट के रिवीजन Special Intensive Revision (SIR) का काम भी रफ्तार पकड़ गया है। इसे लेकर अफरा-तफरी जैसा माहौल भी है। इस बीच, चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के रिवीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा (Counter-Affidavit) दाखिल किया है।

बताना होगा कि चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के रिवीजन के तहत कहा है कि राज्य के 7.8 करोड़ मतदाताओं को एक फॉर्म भरना होगा और जरूरी दस्तावेज भी जमा करने होंगे। तभी वे बिहार के विधानसभा चुनाव में वोट डाल पाएंगे।

विपक्ष ने इसका जबरदस्त विरोध किया और कहा कि चुनाव आयोग के इस कदम से बिहार में बड़ी संख्या में मतदाता वोट नहीं डाल पाएंगे और यह गरीब लोगों के वोट काटने की एक बड़ी साजिश है। चुनाव आयोग ने कहा है कि वोट डालने के लिए 11 में किसी एक डॉक्यूमेंट का होना जरूरी है।

विपक्ष के हमलों के बीच वोटर लिस्ट के रिवीजन का काम तेज, चुनाव आयोग को मिले 90% फार्म

इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई और 10 जुलाई को जब सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा था कि वह इस बात पर विचार करे कि क्या आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को भी डॉक्यूमेंट के रूप में स्वीकार किया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि वह इस मामले में 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करे।

चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा है कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता और कई हाईकोर्ट भी ऐसा कह चुकी हैं। इसलिए इसे चुनाव आयोग के द्वारा जारी किए गए 11 डॉक्यूमेंट की सूची में नहीं रखा गया है।

चुनाव आयोग ने हलफनामे में यह भी कहा है कि बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्ड जारी किए जाते हैं। आयोग ने कहा है कि केंद्र सरकार ने 7 मार्च को 5 करोड़ से ज्यादा फर्जी राशन कार्ड रद्द कर दिए थे। वोटर आईडी कार्ड को लेकर चुनाव आयोग ने कहा कि वोटर आईडी कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।

चुनाव आयोग ने अपने हफनामे में दोहराया है कि मतदाता जो भी दस्तावेज देंगे उसे लेकर Electoral Registration Officers (ERO) ही फैसला करेंगे। बिहार में इससे पहले वोटर लिस्ट का रिवीजन जनवरी 2003 में किया गया था।

‘हमारे पास केवल आधार कार्ड है…’, बिहार के गांवों में परेशान हैं लोग

बताना होगा कि चुनाव आयोग के इस कदम के विरोध में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी खुलकर विरोध में उतर आई। ममता ने कहा कि यह बैकडोर से नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस लागू करने (NRC) की तैयारी है लेकिन चुनाव आयोग ने साफ तौर पर कहा कि वोटर लिस्ट के रिवीजन का काम पूरे देश भर में होगा और बिहार से इसकी शुरुआत हुई है।

चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा है कि वोटर लिस्ट के रिवीजन के किसी भी शख्स की नागरिकता खत्म नहीं होगी लेकिन उसे चुनाव में वोट डालने के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है। आयोग ने कहा कि भारत के संविधान के आर्टिकल 324 और 326 के मुताबिक, उसे यह अधिकार है कि वह वोटर लिस्ट की सूची और मतदाताओं की योग्यता को लेकर फैसला कर सकता है।

कुल मिलाकर चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि आधार, राशन कार्ड और वोटर ID कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता। 28 जुलाई को इस मामले में अगली सुनवाई होनी है और इस पर बिहार के राजनीतिक दलों की नजरें लगी हुई हैं। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं।

बिहार से बाहर रह रहे लोगों को वोट डालने में नहीं होगी परेशानी