Blog: दुनिया भर में विधवा महिलाओं की दशा कमोबेश एक जैसी ही, पूर्वाग्रहों और उपेक्षा से उपजा संकट

दुनिया भर में विधवा महिलाओं की दशा कमोबेश एक जैसी है। उनके प्रति हिंसा, निंदा, नफरत, उपेक्षा का भाव भारत के अलावा दुनिया के तमाम देशों में परंपरागत रूप से है। भारत में लंबे समय से ऐसी महिलाओं की उपेक्षा हो रही है। यही वजह है कि समाज सुधारकों ने विधवाओं की दशा सुधारने के लिए संघर्ष किया और कई आंदोलन चलाए। भारत में नवजागरण काल में राजा राम मोहन राय, आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद, केशवचंद्र सेन, महात्मा फुले, सावित्री बाई फुले और कुछ विदेशी समाज सुधारकों ने भी विधवाओं की दयनीय दशा सुधारने के लिए भरसक कोशिशें कीं। अंग्रेजी हुकूमत में सती प्रथा के खिलाफ कानून बनाया गया, जिसका समाज पर अनुकूल असर पड़ा।

भारत जब आजाद हुआ, तो विकास और प्रगति के साथ देश की दयनीय स्थिति में काफी सुधार आया, लेकिन विधवाओं की दशा में कोई खास बदलाव नहीं आया। इतना जरूर हुआ कि सती प्रथा को गैरकानूनी और संगीन अपराध के दायरे में ला दिया गया। विकास और सामाजिक जागरूकता के तमाम प्रयासों के बावजूद आज विधवा महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक दशा में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ। पारिवारिक और दूसरे तमाम कारणों से आज भी इनकी दशा समाज के दूसरे वर्गों के मुकाबले चिंताजनक है। अध्ययन इस बात के गवाह हैं कि विकासशील देशों में विधवाओं की दशा विकसित देशों की अपेक्षा कहीं ज्यादा खराब है।

एक अध्ययन के मुताबिक, दुनियाभर में 26 करोड़ से ज्यादा विधवा महिलाएं हैं। इनमें भारत और चीन में सबसे ज्यादा हैं। भारत में इनकी संख्या चार करोड़ से अधिक है। इनमें से ज्यादातर महिलाएं कमजोर तबके से ताल्लुक रखती हैं। पूर्व सैनिकों की विधवाओं की संख्या सात लाख से अधिक है और सरकार इनके लिए तमाम योजनाओं के माध्यम से मदद करती है। इनमें पुनर्विवाह अनुदान, पेंशन, वित्तीय सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, चिकित्सा सहायता और रोजगार के अवसर शामिल हैं। आंकड़ों के मुताबिक, पंजाब में सबसे अधिक पूर्व सैनिकों की विधवाएं रहती हैं, जिनकी संख्या 75 हजार से अधिक है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश में करीब 72 हजार, केरल में 71 हजार से ज्यादा, महाराष्ट्र में 67 हजार से अधिक, राजस्थान में करीब 61 हजार और हरियाणा में 58 हजार से ज्यादा विधवाएं हैं। केंद्र सरकार विधवाओं को हर तरह से मदद देती है, जिनमें पारिवारिक पेंशन, महंगाई राहत, बेटी की शादी के लिए अनुदान, विधवा पुनर्विवाह अनुदान, गंभीर रोग अनुदान, व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना शामिल हैं। इसके अलावा राज्य सरकारें भी कई योजनाएं चला रही हैं।

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किसी महिला के विधवा होने पर उसके सामने सबसे बड़ी समस्या आर्थिक होती है। उनकी संतानों को भी स्वास्थ्य और शिक्षा के मामले में उपेक्षा का दंश झेलना पड़ता है। ऐसे में उस महिला के सामने खुद को संभालते हुए बच्चों की परवरिश और उनकी शिक्षा के लिए उपयुक्त प्रबंध करना बड़ी चुनौती होती है। सवाल यह है कि बड़े स्तर पर सरकारी और गैरसरकारी राहत मुहैया कराने के बावजूद भारत में विधवाओं की दशा असंतोषजनक क्यों है? आजादी के अठहत्तर वर्ष बाद भी समाज में इनकी दशा में सुधार क्यों नहीं हुआ? भारत में विधवाओं की दशा दुनिया के दूसरे देशों की विधवाओं से खराब क्यों है? पारिवारिक और सामाजिक नजरिए में सकारात्मक बदलाव क्यों नहीं आया, खासकर गांवों में। इनके प्रति उपेक्षा का भाव आज तक नहीं बदला। अशुभ मानने की सोच, अनादर और निंदा करने की लोगों की आदत में व्यापक बदलाव देखने को नहीं मिला है। सवाल ज्यादा हैं, लेकिन इनके जवाब बहुत कम या न के बराबर हैं।

आज भी उत्सव, संस्कार और काज-प्रयोजनों में विधवा महिलाओं को निमंत्रित नहीं किया जाता है। यदि किया भी जाता है, तो उनको वैसा सम्मान नहीं मिलता, जिसकी वे हकदार हैं। यहां तक कि पारिवारिक आयोजनों में उनकी भूमिका भी खत्म कर दी जाती है। सवाल यह है कि अपशगुन विधवा की वजह से ही क्यों होता है? विधुर की मौजूदगी अपशगुन की वजह क्यों नहीं बनती? पति की मृत्यु को महिला के अपशगुन से क्यों जोड़ कर देखा जाता है? असल में अपशुगन तो उपेक्षा और रूढ़िवादी सोच है, जो विधवा महिलाओं की इस दशा के लिए जिम्मेदार है।

किसी पुरुष के विधुर होने पर उसका फिर से विवाह आसानी से हो जाना और महिला का विवाह सहजता से न होना या बाकी जिंदगी अकेले गुजारने के लिए उसे सलाह देना या इसके लिए विवश करने जैसे हालात पैदा करने के पीछे कौन-सी मानसिकता है, जिसकी वजह से विधवाओं की दशा में सुधार नहीं हो पा रहा है।

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विधवा महिलाओं की समस्याओं और सामाजिक पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए जागरूकता कार्यक्रमों का उद्देश्य इन्हीं सब सवालों के समाधान के लिए समाज को तैयार करना है। विधवाओं के प्रति पुरुष या स्त्री की मानसिकता के अध्ययन का निष्कर्ष हैरान करने वाला है। पुरुष विधवाओं को जितना अपशगुन मानते हैं, कई सुहागिन महिलाएं उससे कहीं ज्यादा मानती हैं। ऐसे उदाहरण आम हैं, जिनमें शादीशुदा महिला किसी विधवा को अपने साथ उत्सव या दूसरे किसी खास मौकों पर ले जाना या उसके साथ बैठना अच्छा नहीं मानती है। यहां तक कि कई उच्च शिक्षित महिलाओं में भी इस तरह का बर्ताव देखा जा सकता है।

इस मसले पर सामाजिक जागरूकता फैलाने का उद्देश्य यह भी है कि जिन वजहों से कोई महिला विधवा होती है, उन कारणों पर बारीकी से गौर किया जाए और फिर उसके समाधान के लिए ठोस प्रयास किए जाएं। इसके अलावा, किसी महिला के विधवा हो जाने के बाद परिवार और समाज में उसे वैसा ही सम्मान और प्यार मिलना चाहिए जैसे पहले मिलता था। इसके लिए लोगों को जागरूक करना ही काफी नहीं है, बल्कि उन सभी तरह की मानसिकता, मान्यताओं, धारणाओं, हालात और नकारात्मक बर्ताव के प्रति सावधान भी करना है। क्योंकि, विधवा महिलाओं से नफरत, निंदा या उसे प्रताड़ित करना कानून की नजर में तो अपराध है ही, सामाजिक तौर पर भी यह अमानवीय कृत्य है।

एक अध्ययन के मुताबिक, विधवा होने की एक मुख्य वजह पति की गंभीर बीमारी या किसी हादसे में मौत होना भी है। यह प्राकृतिक मौतों से अलग प्रश्न है। कारण कोई भी हो, लेकिन इसके बाद ऐसी महिलाओं के जीवन में उपजी मुश्किलों को दूर करने की कोशिशें बहुत कम होती हैं। खासकर गरीब परिवारों में जहां हालात ऐसे नहीं होते कि बीमारियों से बचाव के लिए समय रहते उचित उपचार की व्यवस्था की जा सके। चीन में भी भारत जैसी स्थिति है। वहां भी कोई महिला विधवा होने पर परिवार व समाज दोनों से उपेक्षित होती है। ऐसी महिलाओं के प्रति बहिष्कार वाली मानसिकता चीन व भारत सहित दुनिया के कई विकासशील देशों में है। विधवा होते ही किसी महिला को अशुभ मानना और उसके साये से भी दूर रहने की मानसिकता आज भी बदली नहीं है। भारत, चीन और दूसरे देशों में कुछ समुदायों में विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं दी जाती है, इस रूढ़िवादी सोच को बदलने की जरूरत है।

Bihar News: आधार, वोटर ID और राशन कार्ड को शामिल करने से चुनाव आयोग का इनकार; एफिडेविट में क्या वजह बताई?

Bihar Voter List Revision: बिहार में जैसे-जैसे 25 जुलाई की तारीख नजदीक आ रही है, वोटर लिस्ट के रिवीजन Special Intensive Revision (SIR) का काम भी रफ्तार पकड़ गया है। इसे लेकर अफरा-तफरी जैसा माहौल भी है। इस बीच, चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के रिवीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जवाबी हलफनामा (Counter-Affidavit) दाखिल किया है।

बताना होगा कि चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट के रिवीजन के तहत कहा है कि राज्य के 7.8 करोड़ मतदाताओं को एक फॉर्म भरना होगा और जरूरी दस्तावेज भी जमा करने होंगे। तभी वे बिहार के विधानसभा चुनाव में वोट डाल पाएंगे।

विपक्ष ने इसका जबरदस्त विरोध किया और कहा कि चुनाव आयोग के इस कदम से बिहार में बड़ी संख्या में मतदाता वोट नहीं डाल पाएंगे और यह गरीब लोगों के वोट काटने की एक बड़ी साजिश है। चुनाव आयोग ने कहा है कि वोट डालने के लिए 11 में किसी एक डॉक्यूमेंट का होना जरूरी है।

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इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई और 10 जुलाई को जब सुनवाई हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से कहा था कि वह इस बात पर विचार करे कि क्या आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड को भी डॉक्यूमेंट के रूप में स्वीकार किया जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि वह इस मामले में 21 जुलाई तक अपना जवाब दाखिल करे।

चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा है कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता और कई हाईकोर्ट भी ऐसा कह चुकी हैं। इसलिए इसे चुनाव आयोग के द्वारा जारी किए गए 11 डॉक्यूमेंट की सूची में नहीं रखा गया है।

चुनाव आयोग ने हलफनामे में यह भी कहा है कि बड़ी संख्या में फर्जी राशन कार्ड जारी किए जाते हैं। आयोग ने कहा है कि केंद्र सरकार ने 7 मार्च को 5 करोड़ से ज्यादा फर्जी राशन कार्ड रद्द कर दिए थे। वोटर आईडी कार्ड को लेकर चुनाव आयोग ने कहा कि वोटर आईडी कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।

चुनाव आयोग ने अपने हफनामे में दोहराया है कि मतदाता जो भी दस्तावेज देंगे उसे लेकर Electoral Registration Officers (ERO) ही फैसला करेंगे। बिहार में इससे पहले वोटर लिस्ट का रिवीजन जनवरी 2003 में किया गया था।

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बताना होगा कि चुनाव आयोग के इस कदम के विरोध में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी खुलकर विरोध में उतर आई। ममता ने कहा कि यह बैकडोर से नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस लागू करने (NRC) की तैयारी है लेकिन चुनाव आयोग ने साफ तौर पर कहा कि वोटर लिस्ट के रिवीजन का काम पूरे देश भर में होगा और बिहार से इसकी शुरुआत हुई है।

चुनाव आयोग ने हलफनामे में कहा है कि वोटर लिस्ट के रिवीजन के किसी भी शख्स की नागरिकता खत्म नहीं होगी लेकिन उसे चुनाव में वोट डालने के लिए अयोग्य ठहराया जा सकता है। आयोग ने कहा कि भारत के संविधान के आर्टिकल 324 और 326 के मुताबिक, उसे यह अधिकार है कि वह वोटर लिस्ट की सूची और मतदाताओं की योग्यता को लेकर फैसला कर सकता है।

कुल मिलाकर चुनाव आयोग ने साफ कहा है कि आधार, राशन कार्ड और वोटर ID कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता। 28 जुलाई को इस मामले में अगली सुनवाई होनी है और इस पर बिहार के राजनीतिक दलों की नजरें लगी हुई हैं। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं।

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ना विपक्ष को बख्शा, सरकार को भी आईना… सबसे मुखर उपराष्ट्रपति बनने में सफल रहे धनखड़

Jagdeep Dhankar Resigns: जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया, अचानक लिया गया यह फैसला कई को हैरान कर गया। जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी, जिसकी चर्चा राजनीतिक गलियारों तक में नहीं चल रही थी, वो फैसला धनखड़ ने सोमवार देर रात लिया। कारण उन्होंने स्वास्थ्य बताया, लेकिन नेताओं के बयान बता रहे हैं कि वजह से सियासी भी हो सकती है। अब असल कारण या सियासी कारण तो आने वाले दिनों में साफ होगा, इस समय हर कोई जगदीप धनखड़ के कार्यकाल को याद कर रहा है।

देश में जब भी उपराष्ट्रपति की बात होती है, उनके पास संवैधानिक अधिकार तो होते हैं, लेकिन कभी ज्यादा चर्चा नहीं की जाती। कितने उपराष्ट्रपति आए कितने उपराष्ट्रपति गए, लेकिन ऐसा नहीं देखने को मिलता कि उनके कार्यकाल को उस तरह से याद रखा जाए। इसका बड़ा कारण यह होता है कि उपराष्ट्रपति ज्यादा सक्रिय दिखाई नहीं देते, वे खुलकर अपने विचार नहीं रखते। लेकिन इसी मामले में जगदीप धनखड़ दूसरे कई उपराष्ट्रपतियों से एकदम अलग दिखाई दिए।

जगदीप धनखड़ जब पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बनाए गए थे, उनके तेवर साफ दिख चुके थे। उन्होंने उस समय भी साबित कर दिया था कि राज्यपाल भी मायने रखता है, उनकी सक्रियता के बिना भी कुछ नहीं हो सकता। अब विवाद हुए, तकरार हुई, लेकिन जगदीप धनखड़ जबरदस्त लोकप्रियता और सुर्खियां बंटोरते रहे। इसी वजह से जब बाद में जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपति पद के लिए आगे किया गया, साफ समझ आ चुका था कि अब यह पद भी खूब सुर्खियां बंटोरने वाला है।

ऐसा हुआ भी और जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति की कुर्सी संभालते अलग ही तेवर दिखाएं, उन्होंने राह ऐसी पकड़ी जो किसी दूसरे वाइस प्रेसिडेंट तो नहीं पकड़ी थी। उन्होंने खुलकर अपने विचार रखें, उन्होंने बिना हिचके किसी एक पक्ष का समर्थन किया, जरूरत पड़ने पर सरकार तक को आईना दिखाया। शायद ही कोई दिन रहा जब जगदीप धनखड़ का बयान ना आया हो, उनकी खबर ना बी हो। यह बताने के लिए काफी रहा कि जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई है।

यहां जानते हैं जगदीप धनखड़ कुछ ऐसे बयान जो उन्हें तुरंत सुर्खियों और विवादों में लाए-

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India America Trade Deal: क्या साकार नहीं हो पाएगी डोनाल्ड ट्रंप की प्लानिंग? दो कदम आगे बढ़ते हैं और एक कदम पीछे हट जाते हैं

भारत के साथ संभावित व्यापार समझौते की खबरों के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से टैरिफ (सीमा शुल्क) बढ़ाने की धमकी दी है। स्टील और एल्युमीनियम के बाद उन्होंने तांबे पर 50%, साथ ही अगले साल से आयातित दवाओं पर 200% तक शुल्क-वृद्धि की चेतावनी दी है। बेशक, ऐसे बयानों पर अभी स्पष्टता आनी शेष है, लेकिन सीमा शुल्क में यदि इस तरह की बढ़ोतरी होती है, तो भारत पर भी इसका कुछ हद तक असर पड़ सकता है, खासकर दवा उद्योग पर।

दरअसल, भारत का सबसे बड़ा दवा बाजार अमेरिका ही है। वित्त वर्ष 2025 में उसने 9.8 अरब डालर की दवाइयां मंगवाई थी, जो पिछले साल के मुकाबले 21 फीसद ज्यादा थी। भारत जितनी दवाइयां दूसरे देशों को बेचता है, उसका 40 फीसदी हिस्सा अमेरिकी बाजार को जाता है। इनमें भी जेनेरिक दवाइयों की मात्रा काफी ज्यादा 45 फीसद तक होती है। ऐसे में, सीमा शुल्क बढ़ाने से अमेरिकी बाजार में भारतीय दवाइयां महंगी हो सकती हैं, जिससे उनकी मांग भी प्रभावित होगी।

रही बात तांबे की, तो साल 2024-25 में भारत ने वैश्विक स्तर पर दो अरब डालर मूल्य का तांबा और तांबे से बने उत्पादों का निर्यात किया था, जिनमें से 36 करोड़ डालर मूल्य का, यानी 17 फीसदी निर्यात अमेरिकी बाजारों को किया गया था।

आंकड़ों की मानें, तो तांबा निर्यात के लिहाज से अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। हमसे ज्यादा तांबा सऊदी अरब (26 फीसद) और चीन (18 फीसद) अमेरिका भेजते हैं। मगर अच्छी बात यह है कि तांबे की गिनती काफी महत्त्वपूर्ण खनिजों में होती है और इसका ऊर्जा, विनिर्माण व बुनियादी ढांचे सहित तमाम क्षेत्रों में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है। नए शुल्क के बाद यदि अमेरिकी बाजार में इसकी मांग घटती भी है, तो घरेलू उद्योग से उसकी भरपाई की जा सकेगी।

लिहाजा, ट्रंप यदि अपनी धमकी को अमल में लाते हैं, तब भी हमें कुछ हद तक ही परेशानी होगी। मगर मूल सवाल तो यह है कि क्या वह ऐसा करेंगे?

दरअसल, ट्रंप अब तक शुल्क को लेकर अपने बयान बार-बार बदलते रहे हैं। वह कभी नए शुल्क का एलान करते हैं, तो अगले ही दिन उसे टाल देने की बात भी कहने लगते हैं। इससे लगता है कि वह दो कदम आगे बढ़ते हैं और एक कदम पीछे हट जाते हैं। उनकी उलझन वाजिब भी दिखती है।

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असल में, उन्होंने पद संभालने के साथ ही सख्त शुल्क नीति लाने का एलान किया था। उनका मानना था कि ऐसा कहने से तमाम देश अमेरिका के साथ नया समझौता करने को बाध्य होंगे और वाशिंगटन को अपने व्यापार-घाटा से पार पाने में मदद मिलेगी। उस वक्त उन्होंने 90 दिनों में 90 समझौते करने की उम्मीद जताई थी। मगर ऐसा हो नहीं सका।

अब तक बमुश्किल दो-तीन समझौते ही वह कर सके हैं, वे भी पूरी तरह से लागू नहीं हो सके हैं। मसलन, ब्रिटेन व वियतनाम के साथ उन्होंने संधि का एलान किया, जबकि चीन के साथ सीमित प्रावधानों पर सहमति बन सकी है। जाहिर है, ट्रंप अपनी नीतियों पर मनमर्जी आगे नहीं बढ़ सके हैं। उनकी यह सोच साकार होती नजर नहीं आ रही कि सख्त शुल्क नीति के जवाब में अन्य देश अमेरिका के आगे झुकने को मजबूर होंगे।

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जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद ये 5 सवाल सभी के मन में आ रहे हैं

Jagdeep Dhankar Resignation: जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया है, सोशल मीडिया पर तो अभी से ही अटकलों का बाजार गर्म हो चुका है। कोई कारण सियासी मान रहा है तो कोई इसे सीधे किसी और चीज से जोड़कर देख रहा है। लेकिन क्योंकि सरकार ने इस पर कुछ स्पष्ट नहीं बताया है, धनखड़ ने भी सिर्फ स्वास्थ्य कारणों पर फोकस किया है, ऐसे में अभी तक पुख्ता रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता।

अब इस बीच हर किसी के मन में 5 सवाल जरूर आ रहे हैं, हर कोई गूगल पर इन्हें लेकर सर्च कर रहा है। ऐसे में एक ही जगह पर उन सभी पांच सवालों के जवाब दे देते हैं।

जगदीप धनखड़ ने जो एक चिट्ठी जारी की है, उसमें उन्होंने स्वास्थ्य कारणों को ही अपने इस्तीफे का कारण बताया है। उन्होंने अपनी तरफ से किसी भी तरह के सियासी प्रेशर का जिक्र नहीं किया है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में अभी से चर्चा है कि किसी और वजह से अचानक से इस्तीफा हुआ है।

अभी तक किसी का भी नाम सामने नहीं आया है, लेकिन बीजेपी के अंदरखाने ऐसी बात चल रही है कि किसी अनुभवी नेता को ही इतना जरूरी पद मिलना चाहिए। चर्चा हरिवंश नारायण सिंह की भी हो रही है, इस समय वे उपसभापति की भूमिका निभा रहे हैं।

जैसे हर चीज का बैकअप होता है, राज्यसभा भी ऐसी अप्रत्याशित घटनाओं के लिए तैयार रहता है। अगर कभी उपराष्ट्रपति अपने पद से इस्तीफा दे दें तो उस स्थिति में संसद की कार्यवाही उपसभापति के पास चली जाती है। जब तक नए उपराष्ट्रपति नहीं चुन लिए जाते, उपसभापति ही उस पद को संभालते हैं।

इसका सीधा जवाब है नहीं। हमारा संविधान कोई भी ऐसा पद नहीं देता है, ऐसे में अगर उपराष्ट्रपति इस्तीफा देंगे तो जल्द से जल्द फिर चुनाव ही करवाना होगा।

संविधान के आर्टिकल 68 के मुताबिक, उपराष्ट्रपति के पद पर उनकी मृत्यु, इस्तीफा या पद से हटाए जाने या अन्य किसी कारण से होने वाली रिक्ति को भरने के लिए चुनाव, पद खाली होने के बाद जल्द से जल्द कराया जाएगा। संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार, उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बने निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधि पद्धति यानी प्रपोर्शनल रिप्रेजेंटेशन सिस्टम से होता है।

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Jagdeep Dhankhar Resigns: ‘सितंबर में बहुत कुछ होगा…’, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर संजय राउत बोले – दिल्ली में पर्दे के पीछे कुछ हो रहा

Jagdeep Dhankhar Resign: देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई की रात अचानक अपने पद से इस्तीफा देकर ना केवल विपक्ष बल्कि सत्ता पक्ष को भी चौंका दिया। उन्होंने स्वास्थ्य कारणों को इसकी वजह बताया। 74 साल के धनखड़ का कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक का था। इसी बीच, शिवसेना यूबीटी सांसद संजय राउत ने एक बड़ा दावा किया है और कहा कि सितंबर में बहुत कुछ होने वाला है।

मीडिया से बातचीत में शिवसेना यूबीटी के सांसद संजय राउत ने कहा, ‘देखिए मैं इस बारे में अभी कोई बात नहीं कर सकता हूं। लेकिन पर्दे के पीछे कुछ हो रहा है। बड़ी राजनीति हो रही है। दिल्ली में राष्ट्रीय राजनीति में पर्दे के पीछे कुछ ऐसी बात हो रही है जो जल्दी ही सामने आ जाएगी। उपराष्ट्रपति का जो इस्तीफा है वो कोई साधारण घटना नहीं है। जो कारण दिया गया है उनकी हेल्थ का मैं वो मानने को बिल्कुल तैयार नहीं हूं। वो बहुत ही स्वस्थ आदमी हैं और खुश मिजाज आदमी हैं। वैसे मैदान छोड़ने वाले आदमी में से तो नहीं है। हमारे उनसे मतभेद तो हो सकते हैं और दूसरा मैं मानता हूं कि वो सहजता से मैदान छोड़ने वाले व्यक्ति नहीं है। वो लड़ने वाले आदमी है।’

संजय राउत ने आगे दावा करते हुए कहा, ‘नहीं उनकी हेल्थ ठीक है और वो एकदम स्वस्थ हैं। कल दिनभर मैं जब उनको देख रहा था तो वो एकदम परफैक्ट थे। कुछ ना कुछ तो हो रहा है। इस बात का जल्द से जल्द पता चलेगा। बहुत कुछ हो सकता है सितंबर के महीने में। आपको जल्दी ही देखने को मिलेगा। बीजेपी को तो विपक्ष से प्रॉब्लम होती ही है। वो तो विपक्ष को देश में रखना ही नहीं चाहती है।

ना विपक्ष को बख्शा, सरकार को भी आईना… सबसे मुखर उपराष्ट्रपति बनने में सफल रहे धनखड़

VIDEO | Delhi: While addressing a press conference, Shiv Sena (UBT) leader Sanjay Raut says, “Something is happening behind the curtains in Delhi which will be revealed soon. It’s not an ordinary event. Jagdeep Dhankar’s health was totally fine. I have been observing him. He is… pic.twitter.com/GO9rlUZkBY

कांग्रेस पार्टी के सांसद जयराम रमेश ने भी धनखड़ के इस्तीफे को लेकर सवाल खड़े किए। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट कर लिखा, ‘कल दोपहर 12:30 बजे जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा की कार्य मंत्रणा समिति (BAC) की अध्यक्षता की। इस बैठक में सदन के नेता जेपी नड्डा और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू समेत ज़्यादातर सदस्य मौजूद थे। थोड़ी देर की चर्चा के बाद तय हुआ कि समिति की अगली बैठक शाम 4:30 बजे फिर से होगी।’

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कांग्रेस नेता ने आगे कहा, ‘शाम 4:30 बजे जगदीप धनखड़ की अध्यक्षता में समिति के सदस्य दोबारा बैठक के लिए इकट्ठा हुए। सभी नड्डा और रिजिजू का इंतजार करते रहे, लेकिन वे नहीं आए। सबसे हैरानी की बात यह थी कि जगदीप धनखड़ को व्यक्तिगत रूप से यह नहीं बताया गया कि दोनों मंत्री बैठक में नहीं आएंगे। स्वाभाविक रूप से उन्हें इस बात का बुरा लगा और उन्होंने BAC की अगली बैठक आज दोपहर 1 बजे के लिए टाल दी। इससे साफ है कि कल दोपहर 1 बजे से लेकर शाम 4:30 बजे के बीच जरूर कुछ गंभीर बात हुई है, जिसकी वजह से जेपी नड्डा और किरेन रिजिजू ने जानबूझकर शाम की बैठक में हिस्सा नहीं लिया।’

जयराम रमेश ने कहा, ‘अब एक बेहद चौंकाने वाला कदम उठाते हुए, जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने इसकी वजह अपनी सेहत को बताया है। हमें इसका मान रखना चाहिए। लेकिन सच्चाई यह भी है कि इसके पीछे कुछ और गहरे कारण हैं। जगदीप धनखड़ ने हमेशा 2014 के बाद के भारत की तारीफ की, लेकिन साथ ही किसानों के हितों के लिए खुलकर आवाज उठाई। उन्होंने सार्वजनिक जीवन में बढ़ते ‘अहंकार’ की आलोचना की और न्यायपालिका की जवाबदेही व संयम की जरूरत पर जोर दिया। मौजूदा ‘G2’ सरकार के दौर में भी उन्होंने जहां तक संभव हो सका, विपक्ष को जगह देने की कोशिश की।’ पल-पल की अपडेट्स के लिए पढ़ें लाइव ब्लॉग

Dharmasthala Case: कर्नाटक के धर्मस्थल में 100 से ज्यादा महिलाओं-लड़कियों से रेप, हत्या और दफनाने का पूरा मामला क्या है? पढ़िए टाइमलाइन

Dharmasthala Mass Burial Case: कर्नाटक के धर्मस्थल इलाके में महिलाओं और नाबालिग लड़कियों से बलात्कार, हत्या और उन्हें दफनाने के दावे के बाद हड़कंप मचा हुआ है। मामले में जांच के लिए कर्नाटक सरकार ने स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) का गठन किया गया है। यह मामला तब सामने आया जब धर्मस्थल में काम कर चुके एक सफाईकर्मी ने दावा किया कि उसे 1998 से 2014 के बीच महिलाओं और नाबालिगों के शवों को दफनाने और उनका अंतिम संस्कार करने के लिए मजबूर किया गया था।

सफाई कर्मचारी ने दावा किया था कि इन महिलाओं और नाबालिग लड़कियों के शवों पर हमले के निशान भी थे। धर्मस्थल कर्नाटक का एक बड़ा तीर्थस्थल है, जहां बहुत सारे मंदिर हैं और यहां राज्य से बाहर के भी भक्त आते हैं।

पूर्व सफाई कर्मी ने बताया है कि पीड़िताओं के साथ किस तरह की खौफनाक घटनाएं हुई और इनमें एक स्कूली छात्रा भी शामिल है जिसे स्कूल यूनिफॉर्म में ही दफनाया गया था और एक 20 साल की महिला भी थी जिसका चेहरा तेजाब से जला दिया गया था।

‘मैंने कई साल तक बलात्कार पीड़िताओं के शव जलाए’

पूर्व सफाई कर्मी के दावे के बाद मामले में एफआईआर दर्ज की गई, मामले से जुड़े गवाहों को सुरक्षा दी गई और कंकाल के हिस्सों को अदालत में पेश किया गया। सफाई कर्मी के दावे के बाद कर्नाटक में बड़े पैमाने पर लोगों की नाराजगी सामने आई और अब राज्य सरकार ने जांच को आगे बढ़ाया है।

रूठों को मनाना, बागियों को चेताना… हाईकमान के हस्तक्षेप से दूर होगा कर्नाटक सरकार पर आया संकट

मंदिर के प्राधिकरण ने कहा कि वह इस मामले में निष्पक्ष और पारदर्शी जांच का समर्थन करता है और SIT को इस मामले में सच सामने लाना चाहिए। आइए, इससे इससे जुड़ी टाइमलाइन पर नजर डालते हैं।

एडवोकेट ओजस्वी गौड़ा और सचिन देशपांडे पूर्व सफाई कर्मचारी से मिले। सफाई कर्मचारी ने दावा किया कि वह धर्मस्थल में कब्रों को पहचान सकता है और वह इस अपराध को लोगों के सामने लाना चाहता है।

बेंगलुरु के वकीलों का एक प्रतिनिधिमंडल दक्षिण कन्नड़ पुलिस अधीक्षक से मिला और दावों की जांच करने की अपील की।

पति की हत्या कर घर में दफन की लाश, ऊपर से लगवा दिए नए टाइल्स, पालघर में ‘दृश्यम’ स्टाइल में हत्या

पूर्व सफाई कर्मचारी ने पुलिस अधीक्षक को लिखित शिकायत दी। उसने फोटोग्राफिक सबूत भी दिए और आरोप लगाया कि उसे 16 साल तक महिलाओं और नाबालिगों के शवों को दफनाने के लिए मजबूर किया गया।

धर्मस्थल पुलिस ने सफाई कर्मचारी की शिकायत के आधार पर Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita (BNSS)की धारा 211 (ए) के तहत FIR दर्ज की।

पूर्व सफाई कर्मचारी बेल्थांगडी कोर्ट के सामने पेश हुआ और उसने कंकाल के अवशेष अदालत के सामने रखे। उसने दावा किया कि इसने उसे एक कब्रगाह से निकाला है। शिकायतकर्ता के वकील पवन देशपांडे ने मीडिया से कहा कि इस मामले में स्वतंत्र जांच होनी चाहिए।

राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष नागलक्ष्मी चौधरी ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखकर मौतों की जांच के लिए एक SIT के गठन की मांग की।

बेंगलुरु की एक महिला ने धर्मस्थल पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई कि एमबीबीएस में पढ़ने वाली उसकी बेटी अनन्या भट्ट 2003 में धर्मस्थल जाने के बाद लापता हो गई थी। उसकी मां सुजाता ने इस बार फिर से शिकायत दर्ज कराई। मां का कहना है कि पीड़िताओं में उनकी बेटी भी शामिल हो सकती है। इसके बाद SIT के गठन को बल मिला।

एडवोकेट्स के एक समूह ने अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता द्वारा दिए गए गोपनीय बयानों को एक यूट्यूबर को लीक कर दिया गया है और इससे गवाहों की सुरक्षा और जांच को लेकर चिंता खड़ी हो गई है।

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि सरकार किसी दबाव में नहीं है और तथ्यों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने आश्वासन दिया कि जांच सही ढंग से आगे बढ़ेगी। दक्षिण कन्नड़ के जिला प्रभारी मंत्री दिनेश गुंडू राव ने कहा कि मामले की जांच पारदर्शी तरीके से की जाएगी और किसी भी व्यक्ति को बचाया नहीं जाएगा।

कर्नाटक सरकार ने डीजीपी (आंतरिक सुरक्षा) प्रणब मोहंती की अध्यक्षता में एक SIT का गठन किया। SIT में वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी एमएन अनुचेथ, सौम्यलता और जेके दयामा को शामिल किया गया। SIT धर्मस्थल में हुई सभी संदिग्ध मौतों, गुमशुदगी और यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच करेगी।

मां का बदला लेने लिए बेटे ने पार की सारी हदें, 10 साल तक ‘दुश्मन’ को रहा ढूंढता, मिलने पर की हत्या

श्री क्षेत्र धर्मस्थल ने एक बयान जारी कर SIT के गठन का स्वागत किया और निष्पक्ष और उच्च स्तरीय जांच की मांग की। SIT ने जांच शुरू कर दी है।

पूर्व सफाई कर्मचारी की शिकायत के मुताबिक, उसे धमकी दी जाती थी कि अगर उसने शवों को दफनाने से इनकार किया तो उसे जान से मार दिया जाएगा और काटकर बाकी लोगों की तरह दफना दिया जाएगा।

‘…मैं कर्नाटक का CM हूं, मैं यहां बैठा हूंं’, सिद्धारमैया बोले- मुख्यमंत्री पद पर कोई वैकेंसी नही ंहै

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर पीएम नरेंद्र मोदी का पहला रिएक्शन

PM Narendra Modi On Dhankar Resignation: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर पीएम मोदी का पहला रिएक्शन आ गया है। उन्होंने कहा है कि वे उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं। असल में सोमवार रात को जगदीप धनखड़ ने अचानक से उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था, उन्होंने खुद एक चिट्ठी में स्वास्थ्य का हवाला दिया था। उस एक फैसले के बाद से ही सियासत गरमा गई थी और तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं।

अब इस बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर कहा है कि श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके उत्तम स्वास्थ्य की कामना करता हूं। वैसे पीएम मोदी ने जरूर सामने से आकर रिएक्शन दिया है, लेकिन बीजेपी के बड़े और दिग्गज नेताओं ने इस पर अभी तक खुलकर कोई टिप्पणी नहीं की है। इसके ऊपर विपक्षी खेमे में तो इस समय बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा को निशाने पर लिया जा रहा है।

Shri Jagdeep Dhankhar Ji has got many opportunities to serve our country in various capacities, including as the Vice President of India. Wishing him good health.श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित कई भूमिकाओं में देश की सेवा करने का अवसर मिला है। मैं उनके उत्तम…

जब से जगदीप धनखड़ का इस्तीफा हुआ है, एक वर्ग जेपी नड्डा पर भी सवाल खड़े कर रहा है। असल में सोमवार को जब मानसून सत्र शुरू हुआ था, तब कार्यवाही के दौरान नड्डा ने कह दिया था सिर्फ मेरी बात ऑन रिकॉर्ड जाएगी, बाकी किसी का कुछ नहीं जाएगा। विपक्ष का आरोप रहा कि नड्डा का ऐसा बयान चेयर का सबसे बड़ा अपमान है। दावा यहां तक किया गया कि इसी वजह से जगदीप धनखड़ नाराज हुए।

वैसे अब जब जगदीप धनखड़ इस्तीफा दे चुके हैं, सभी के मन में कई सवाल उठ रहे हैं। सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा चर्चा पांच सवालों की हो रही है।

जगदीप धनखड़ ने जो एक चिट्ठी जारी की है, उसमें उन्होंने स्वास्थ्य कारणों को ही अपने इस्तीफे का कारण बताया है। उन्होंने अपनी तरफ से किसी भी तरह के सियासी प्रेशर का जिक्र नहीं किया है। लेकिन राजनीतिक गलियारों में अभी से चर्चा है कि किसी और वजह से अचानक से इस्तीफा हुआ है।

अभी तक किसी का भी नाम सामने नहीं आया है, लेकिन बीजेपी के अंदरखाने ऐसी बात चल रही है कि किसी अनुभवी नेता को ही इतना जरूरी पद मिलना चाहिए। चर्चा हरिवंश नारायण सिंह की भी हो रही है, इस समय वे उपसभापति की भूमिका निभा रहे हैं।

जैसे हर चीज का बैकअप होता है, राज्यसभा भी ऐसी अप्रत्याशित घटनाओं के लिए तैयार रहता है। अगर कभी उपराष्ट्रपति अपने पद से इस्तीफा दे दें तो उस स्थिति में संसद की कार्यवाही उपसभापति के पास चली जाती है। जब तक नए उपराष्ट्रपति नहीं चुन लिए जाते, उपसभापति ही उस पद को संभालते हैं।

इसका सीधा जवाब है नहीं। हमारा संविधान कोई भी ऐसा पद नहीं देता है, ऐसे में अगर उपराष्ट्रपति इस्तीफा देंगे तो जल्द से जल्द फिर चुनाव ही करवाना होगा।

संविधान के आर्टिकल 68 के मुताबिक, उपराष्ट्रपति के पद पर उनकी मृत्यु, इस्तीफा या पद से हटाए जाने या अन्य किसी कारण से होने वाली रिक्ति को भरने के लिए चुनाव, पद खाली होने के बाद जल्द से जल्द कराया जाएगा। संविधान के अनुच्छेद 66 के अनुसार, उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बने निर्वाचक मंडल 

 

‘हेल्दी इंसान को गिरके तुरंत मरते भी देखे हैं…’, रवि किशन बोले- उनको डॉक्टर ने कहा है U Need to Rest

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर जमकर चर्चा हो हो रही है, विपक्षी दल यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि उनके इस्तीफे की वजह उनका स्वास्थ्य ही है। विपक्षी दलों से संबंध रखने वाले कई सांसद उनके इस्तीफे को लेकर पर्दे के पीछे कुछ और खेल बता रहे हैं।

विपक्षी दलों द्वारा उठाए जा रहे सवालों को बीजेपी के गोरखपुर से सांसद रवि किशन ने राजनीति से प्रेरित बताया है। उन्होंने संसद परिसर में न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में कहा कि विपक्ष का काम है बोलना, किसी भी बात पर, किसी के स्वास्थ्य का भी मजाक उड़ा सकते है, उसपर भी राजनीति कर सकते हैं। मनुष्य के जीवन में आप हेल्दी इंसान को गिरके तुरंत मृत्यु होते भी देखे हैं। कब कौन से पल आदमी बीमार होता है, सुबह क्या है, शाम को क्या है…

उन्होंने आगे कहा, “उनको डॉक्टर ने कहा है कि भई यू नीड टू रेस्ट, अगर कोई रेस्ट करना चाहता है तो उसपर भी राजनीति? किसी का शरीर गवाह न कर रहा है, डॉक्टर ने कहा होगा, कोई रिपोर्ट आई होगी, कोई मेडिकल जांच हुई होगी, डॉक्टर ने कहा होगा… जस्ट टेक केयर, यू नीड टू रेस्ट, सम बडी इज रेस्टिंग, आप उसपर भी राजनीति कर रहे हैं, मतलब हद हो गई राजनीति का लेवल दिन प्रति दिन नीचे गिरता जा रहा है।”

शिवसेना यूबीटी के सांसद अरविंद सावंत ने कहा कि जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की खबर शॉकिंग है। उन्होंने कहा कि उपराष्ट्रपति की हेल्थ इतनी भी खराब नहीं थी कि उन्हेंं इस्तीफा देना पड़े। किसी ने उनकी तबीयत खराब की है। सत्ताधारी पार्टी चुप है, इसका मतलब है कि कुछ गलत है।

#WATCH | Delhi | On the resignation of Vice President Jagdeep Dhankhar, BJP MP Ravi Kishan says, “…The opposition is making fun of someone’s health condition and doing politics on it…The level of politics is falling…” pic.twitter.com/BuK2ruA0LH

प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी ने जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे पर क्या कहा?

लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को ‘चौंकाने वाला’ घटनाक्रम करार देते हुए मंगलवार को केंद्र से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या उसे इस बारे में पहले से कोई जानकारी थी। गोगोई ने उपराष्ट्रपति पद के लिए नयी नियुक्ति के संबंध में भी सरकार से स्पष्टीकरण मांगा।

उन्होंने X पर लिखा किया, “माननीय उपराष्ट्रपति का इस्तीफा चौंकाने वाला है। मैं आदरणीय धनखड़ जी के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं।” उन्होंने कहा, “लेकिन केंद्र सरकार यह स्पष्ट करे कि क्या उसे पहले से इसकी सूचना थी और क्या उसने नया उपराष्ट्रपति चुनने के लिए योजना बनाई थी। कल माननीय उपराष्ट्रपति की अध्यक्षता में हुई बैठक में वरिष्ठ मंत्रियों की अनुपस्थिति अब और भी महत्वपूर्ण हो गई है।”

‘सितंबर में बहुत कुछ होगा…’, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर संजय राउत बोले – दिल्ली में पर्दे के पीछे कुछ हो रहा

‘वो लंबे – जंबे जाट हैं, हट्टे – कट्टे’, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर रेणुका चौधरी बोलीं- BJP में अजीब वायरस घूम रहा

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के कारणों पर विपक्षी दल लगातार सवार कर रहे हैं। अब कांग्रेस पार्टी की राज्यसभा सांसद रेणुका चौधरी ने भी उनके इस्तीफे के पीछे अन्य वजह बताई है। उन्होंने न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में कहा कि अगर स्वास्थ्य खराब होता तो AIIMS जैसे बहुत ही बढ़िया अस्पताल हैं। उपराष्ट्रपति का स्वास्थ्य बड़ा मुद्दा नहीं है। उन्होंने कहा, “वो लंबे – जंबे जाट हैं, हट्टे – कट्टे… सब ठीक – ठाक है लेकिन ये सरकारी बीमारी है। अजीब वायरस बीजेपी में धूमती रहती है। इनको भी लग गई है।”

#WATCH | Delhi | On the resignation of Vice President Jagdeep Dhankhar, Congress Rajya Sabha MP Renuka Chowdhury says, “…If his health has deteriorated, he could have been admitted to AIIMS…Vice President Jagdeep Dhankhar is a Jaat. Everything is fine, but there is a strange… pic.twitter.com/na9spTXoS7

जगदीप धनखड़ के गांव के लोगों में उनके इस्तीफे से निराशा का माहौल है। न्यूज एजेंसी ANI से बातचीत में उनके गांव के व्यक्ति हरेंद्र धनखड़ ने कहा कि उनके इस्तीफे की खबर सुनकर हमें गहरा सदमा लगा। यह भी सच है कि मार्च में उनकी एंजियोप्लास्टी हुई थी। पिछले महीने जब वे उत्तराखंड गए थे, तो वहां भी उनकी तबीयत बिगड़ गई थी। 2022 में जब वे उपराष्ट्रपति बने, तो गांव में खुशी का माहौल था कि किठाना के एक किसान का बेटा देश का उपराष्ट्रपति बना। उन्होंने स्कूल और गौशाला को भी काफ़ी आर्थिक सहयोग दिया है। गांंव और आसपास के इलाके में हर कोई दुआ कर रहा है कि उनका स्वास्थ्य अच्छा रहे। वे जल्द स्वस्थ भी हों…

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे पर पीएम नरेंद्र मोदी का पहला रिएक्शन

अशोक गहलोत ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को चौंकाने वाला बताते हुए कहा कि “दबाव में काम करने वाला व्यक्ति ही इस प्रकार से चौंकाने वाला इस्तीफा दे सकता है।” गहलोत ने यह भी कहा कि धनखड़ के इस्तीफे से राजस्थान वासियों को गहरा धक्का लगा है। उन्होंने कहा, “ये घटना पूरे देश को चौंकाने वाली है इसमें कोई दोराय नहीं है। क्योंकि आजादी के बाद उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा पहली बार हुआ है।”

उन्होंने कहा, “घटना इस प्रकार मोड़ ले रही है, प्रधानमंत्री (नरेन्द्र मोदी) आजकल विदेश दौरे पर जा रहे हैं… अचानक उपराष्ट्रपति का इस्तीफा होता है जो पूरे देश दुनिया में चर्चा का विषय बन जाता है।” उन्होंने कहा, “धनखड़ साहब राजस्थान के हैं तो (उनके इस्तीफे से) राजस्थान वासियों को बहुत धक्का लगा। क्योंकि वह किसानों की बात संसद के अंदर व बाहर लगातार उठाते रहे हैं। थोड़े दिन पहले ही उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री को खरी खोटी भी सुनाई। दस जुलाई को ही उन्होंने कहा कि मैं 2027 तक सेवानिवृत्त हो जाऊंगा।”

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