‘न्यायाधीशों को रिटायरमेंट के बाद भी कम बोलना चाहिए’, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने क्यों कही ये बात?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने इस बात पर जोर दिया कि जजों को फैसला देने के बाद गायब हो जाना चाहिए और फैसले को खुद बोलने देना चाहिए। पीएस नरसिम्हा ने कहा कि रिटायरमेंट के बाद जजों को बोलने में संयम बरतना चाहिए, विशेषकर सोशल मीडिया के इस युग में, जहां हर शब्द की रिपोर्ट की जाती है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस नरसिम्हा न्यायमूर्ति चंदुरकर के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की नागपुर बेंच की तरफ से आयोजित किए गए कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया और ज्यादा बोलने की जरूरत के कारण हम (भाषण पर संयम से) दूर हो गए हैं। हर शब्द समाचारों में छपता है और वर्तमान न्यायाधीश भी इसकी चपेट में आ सकते हैं और इससे भी बुरी बात यह है कि रिटायरमेंट के बाद न्यायाधीश सोचते हैं कि ‘अब समय आ गया है कि मुझे बोलना चाहिए’, मुझे लगता है कि व्यवस्था को इस तरह से काम नहीं करना चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “मेरा मानना ​​है कि न्याय देने के लिए न्यायाधीश का गायब होना आवश्यक है। न्यायाधीश को दिखाई नहीं देना चाहिए, न्यायाधीश का इस प्रक्रिया में मौजूद रहने का कोई काम नहीं है, सिवाय इसके कि वह निर्णय ले। एक व्यक्ति के रूप में उसका व्यक्तित्व… यह सब अनावश्यक है। न्यायाधीश निर्णय लेने के अलावा और कुछ नहीं करता और वह गायब हो जाता है। वह (जस्टिस चंदुरकर) एक ऐसे न्यायाधीश हैं जो गायब हो गए हैं, लेकिन उनके निर्णय केवल बोलते हैं और वे बहुत कुछ कहते हैं।”

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अपने संबोधन में जस्टिस नरसिम्हा ने वकीलों को अपनी दलीलों में सटीकता बरतने और जजों को अपने फैसले में संक्षिप्तता अपनाने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “अगर सत्य को खोजना है, तो सिद्धांत यह है कि आपको कम बोलना होगा। एक न्यायाधीश के लिए यह अनिवार्य आवश्यकता है कि वह सत्य को व्यक्त करने के लिए बहुत कम बोले और यथासंभव कम लिखे। यह एक साधना है जिसे हमें अवश्य अपनाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि जस्टिस चंदुरकर ऐसे जज थे जिनके फैसले ही बोलते हैं और वे बहुत कुछ कहते हैं। जस्टिस चंदुरकर के स्वभाव की तारीफ करते हुए जस्टिस नरसिम्हा ने कहा, “वे केवल तभी बोलेंगे जब आवश्यक हो। अगर आप इस पर विचार करें, तो आपको एहसास होगा कि वे एक बहुत शक्तिशाली व्यक्ति हैं।”

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‘रात 3.30 बजे आए दिल्ली पुलिस के जवान’, स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती को जिस होटल से गिरफ्तार किया उसके रिसेप्शनिस्ट ने क्या बताया?

Swami Chaitanyanand Arrest News: स्वामी चैतन्यानंद सरस्वती को दिल्ली पुलिस ने रविवार तड़के गिरफ्तार कर लिया। उस पर एक शैक्षणिक संस्थान की कम से कम 17 छात्राओं के यौन उत्पीड़न का आरोप है। दिल्ली पुलिस अधिकारियों की एक टीम उसे आगरा के एक होटल से उठाकर दिल्ली ले आई। आगरा के होटल के रिसेप्शनिस्ट भरत ने बताया कि बाबा ने हमें अपना नाम पार्थ सारथी बताया था।

भरत ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में बताया, “बाबा कल शाम को चार बजे आए थे। हमारा एक लेडी स्टाफ है, वो यहां पर रुकती हैं। उन्होंने बाबा की एंट्री करवाई थी और रजिस्ट्रेशन भी करवाया था। बाबा से उस समय तो कोई भी मिलने नहीं आया था। रात में लगभग 3.30 बजे दो पुलिसकर्मी आए थे, जिन्होंने खुद को क्राइम ब्रांच का इंस्पेक्टर बताया था। उसके बाद उन पुलिसवालों ने बाबा से 10 मिनट तक कमरे में बातचीत की और फिर उन्हें लेकर चले गए। बाबा से मिलने कोई भी नहीं आया था। डॉक्यूमेंट में बाबा ने अपना नाम पार्थ सारथी बताया था।

#WATCH | Uttar Pradesh | Bharat, receptionist of the hotel in Agra from where Swami Chaityananda Saraswati @ Partha Sarthy was arrested last night by Delhi Police, says, “… Baba came here at 4 pm yesterday. Our female staff member who stays here at night, got his entry and… https://t.co/sZNbwzKNpK pic.twitter.com/r2mFCHNI0B

दिल्ली पुलिस छात्राओं से कथित छेड़छाड़ के आरोपी चैतन्यानंद सरस्वती को गिरफ्तार कर वसंत कुंज पुलिस स्टेशन लाई है। साउथ-वेस्ट दिल्ली के डीसीपी अमित गोयल ने बताया, “हमने हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे विभिन्न राज्यों में टीमें तैनात की थीं। कल हमें एक सूचना मिली और हमने उसे आगरा से गिरफ्तार कर लिया। हमने उसके पास से तीन फोन और एक आईपैड के साथ-साथ कुछ फर्जी विजिटिंग कार्ड भी जब्त किए हैं। वह पुलिस को धोखा देने के लिए लगातार ठिकाने बदल रहा था। आगे की जांच जारी है। उसे छेड़छाड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।”

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दिल्ली पुलिस ने बाबा चैतन्यानंद सरस्वती के पास से दो फर्जी विजिटिंग कार्ड बरामद किए हैं। पहला विजिटिंग कार्ड संयुक्त राष्ट्र का है, जिसके अनुसार, बाबा ने खुद को संयुक्त राष्ट्र में स्थायी राजदूत बताया है। दूसरे विजिटिंग कार्ड के अनुसार, बाबा ने खुद को ब्रिक्स देशों के संयुक्त आयोग का सदस्य और भारत का विशेष दूत बताया है।

चैतन्यानंद पर पर ईडब्ल्यूएस छात्रवृत्ति के तहत पीजीडीएम पाठ्यक्रम कर रही छात्राओं से यौन शोषण और जालसाजी का आरोप है। चैतन्यानंद की तरफ से स्थापित एक ट्रस्ट के नाम पर 18 से ज्यादा अकाउंट और 28 एफडी हैं। इनमें लगभग 8 करोड़ रुपये थे। इनको भी पुलिस ने जब्त कर लिया है। इस मामले के अलावा, चैतन्यानंद के खिलाफ छेड़छाड़ के दो और मामले भी दर्ज हैं। पुलिस सूत्रों ने बताया कि 2016 में इसी संस्थान की एक महिला के साथ छेड़छाड़ के आरोप में उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। 2009 में भी ऐसा ही एक मामला दर्ज किया गया था। 2016 के मामले में, शुरुआती जांच के बाद आरोपी को गिरफ्तार तो किया गया था, लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं किया गया था और मामले की सुनवाई अभी लंबित है।

क्या असम को ‘नेपाल’ बनाना चाहते हैं? जुबीन के नाम पर सरकार विरोधी राजनीति पर सीएम हिमंता की चेतावनी

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने शनिवार को लोगों से अपील की कि वे “जुबीन के नाम पर असम को नेपाल न बनाएं।” यह अपील सुपरस्टार जुबीन गर्ग के 19 सितंबर को हुए असामयिक निधन के सिलसिले में राज्य सरकार से कार्रवाई की मांग को लेकर बढ़ते जन आक्रोश के बीच की गई।गर्ग के निधन से असम में शोक के साथ-साथ आक्रोश भी फैल गया है। यह आक्रोश मुख्यतः श्यामकानु महंत और गर्ग के प्रबंधक सिद्धार्थ शर्मा के खिलाफ है, जहां प्रशंसकों ने गर्ग की स्वास्थ्य समस्याओं के मद्देनजर उन पर लापरवाही और कुप्रबंधन के आरोप लगाए हैं।

कथित तौर पर सिंगापुर में एक नौका पर सैर के दौरान तैराकी करते समय उन्हें सांस लेने में तकलीफ हुई थी, और सिंगापुर के अधिकारियों द्वारा जारी मृत्यु प्रमाण पत्र में मृत्यु का कारण ‘डूबना’ बताया गया था। इस आक्रोश के बाद, श्यामकानु महंत, सिद्धार्थ शर्मा और अन्य के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र, गैर इरादतन हत्या और लापरवाही से मौत से संबंधित बीएनएस की धाराओं के तहत सीआईडी में दर्ज एक मामले की जांच के लिए एक एसआईटी का गठन किया गया है।

यह आक्रोश गुरुवार को हिंसक हो गया, जब एक भीड़ ने शर्मा के गुवाहाटी स्थित आवास में घुसने की कोशिश की, जबकि एसआईटी की एक टीम वहां तलाशी ले रही थी। बाद में भीड़ ने शाम को वहां से निकल रहे पुलिस वाहनों पर पथराव किया, जिसके कारण पुलिस को उन्हें तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज करना पड़ा। पुलिस ने इस घटना के सिलसिले में नौ लोगों को गिरफ्तार किया।

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शनिवार को एक फेसबुक लाइव सत्र में बोलते हुए, सरमा ने कहा: “यह जुबीन का असम है। किसी भी कारण से हम असम को नेपाल नहीं बनने दे सकते। कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर नेपाल का उदाहरण दिया जा रहा है। असम में हम लचित बरफुकन का उदाहरण देंगे, महाराज पृथु का उदाहरण देंगे, भूपेन हजारिका और जुबीन का… नेपाल का उदाहरण नहीं।”

उन्होंने आगे कहा: “अगर असम की एक भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, तो सबसे ज्यादा नुकसान जुबीन गर्ग का होगा क्योंकि यह जुबीन का असम है। आज जुबीन के लिए न्याय की मांग करते हुए कुछ लोग सड़कों पर आंदोलन कर रहे हैं। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया, लेकिन लोग पूछ रहे हैं कि उन्हें क्यों गिरफ्तार किया गया… जुबीन के नाम पर सरकार विरोधी राजनीति नहीं हो सकती। हम जुबीन के नाम पर असम को नेपाल नहीं बना सकते।”

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महंत और शर्मा को सीआईडी द्वारा जारी समन का हवाला देते हुए, जिन्होंने सोशल मीडिया पर जारी बयानों में कहा कि वे अपनी सुरक्षा के डर से असम लौटने से बच रहे हैं, सरमा ने दोनों को 6 अक्टूबर तक सीआईडी के सामने पेश होने को कहा।

उन्होंने कहा, “मैं इस फेसबुक लाइव के माध्यम से श्यामकानु महंत और सिद्धार्थ शर्मा से कहना चाहता हूं कि वे लोगों के धैर्य की परीक्षा न लें। हमने आपसे 6 अक्टूबर को असम में उपस्थित रहने का अनुरोध किया है। पूजा के कारण हमने आपको उससे पहले नहीं बुलाया। दशमी के बाद 6 अक्टूबर को हम आपको सीआईडी कार्यालय में देखना चाहते हैं। आप फेसबुक लाइव और पत्रों के जरिए कानून से बच नहीं सकते। अगर आप वास्तव में निर्दोष हैं, तो हिम्मत के साथ सीआईडी कार्यालय आएं और अपना बयान दें।” वीडियो में सरमा ने यह भी कहा कि महंत के सभी बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए हैं।

Tamil Nadu Rally Stampede: अस्पताल में बच्चों के शव देखकर रो पड़े शिक्षा मंत्री, देखें VIDEO

Tamil Nadu Rally Stampede: तमिलनाडु के करूर जिले में एक्टर विजय की रैली में भगदड़ से 39 लोगों की मौत हो गई। वहीं, 51 लोग अब भी आईसीयू में भर्ती हैं। इसी बीच, तमिलनाडु के शिक्षा मंत्री अंबिल महेश पोय्यामोझी जब करूर के अस्पताल पहुंचे, तो भगदड़ में मारे गए बच्चों और कुछ लोगों के शव देखकर फूट-फूटकर रोने लगे। इसका एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है।

शिक्षा मंत्री अंबिल महेश पोय्यामोझी ने कहा, “इन लोगों (थलपति विजय) से बार-बार शर्तों का पालन करने को कहा गया था। लेकिन, शर्तों का पालन नहीं किया गया। ऐसा दोबारा नहीं होना चाहिए।” वहीं, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने घटना पर दुख जाहिर किया है। उन्होंने घटना की समीक्षा के लिए सचिवालय में अधिकारियों की मीटिंग बुलाई है। साथ ही उन्होंने घटना में मारे गए लोगों के परिजनों को 10-10 लाख रुपये और घायलों को 1-1 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने की भी घोषणा की है।

VIDEO | Tamil Nadu School Education Minister Anbil Mahesh Poyyamozhi broke down after seeing the bodies of children at the Karur Government Hospital mortuary. (Full video available on PTI Videos – https://t.co/n147TvrpG7)(Source: Third party) pic.twitter.com/iRQzclkjBR

तमिलनाडु के डीजीपी जी. वेंकटरमन ने कहा है कि विजय के रैली में पहुंचने में सात घंटे की देरी के कारण लोगों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई। वेंकटरमन ने कहा कि आयोजकों ने 10000 लोगों के आने की उम्मीद जताई थी, लेकिन लगभग 27,000 लोग ही आए। उन्होंने बताया कि रैली के लिए 500 सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे। वेंकटरमन ने कहा, “टीवीके की पिछली रैलियों में भीड़ कम होती थी, लेकिन इस बार अपेक्षा से कहीं ज्यादा भीड़ थी।”

उन्होंने कहा, “दोपहर 3 बजे से रात 10 बजे के बीच इजाजत मांगी गई थी। टीवीके के ट्विटर अकाउंट पर कहा गया था कि वह 12 बजे आएंगे और भीड़ सुबह 11 बजे से ही आनी शुरू हो गई थी। वह शाम 7.40 बजे आए। तपती धूप में लोगों के पास खाना और पानी नहीं था।” उन्होंने आगे कहा, “यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि भगदड़ की असली वजह क्या थी।”

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विजय ने करूर में अपनी रैली में हुई भगदड़ में मारे गए 39 लोगों के परिवारों को 20-20 लाख रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की। टीवीके प्रमुख ने कहा कि उनकी पार्टी इस त्रासदी में घायल हुए लगभग 100 लोगों को भी 2-2 लाख रुपये देगी। अपनी पार्टी के आधिकारिक एक्स हैंडल पर एक सोशल मीडिया पोस्ट में, उन्होंने कहा, “मेरे दिल में जो दर्द है उसे बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। मेरी आंखें और मन दुख से घिरे हुए हैं। आप सभी के चेहरे, जिनसे मैं मिला हूं, मेरे जेहन में बार-बार घूम रहे हैं। जितना ज्यादा मैं अपने प्रियजनों के बारे में सोचता हूं, जो स्नेह और परवाह दिखाते हैं, उतना ही मेरा दिल अपनी जगह से और दूर होता जाता है।”

टीवीके प्रमुख ने कहा, “जबकि मैं अवर्णनीय पीड़ा के साथ आप लोगों के प्रति अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं, जो हमारे प्रियजनों के नुकसान से दुखी हैं, मैं आपके दिल के करीब खड़ा हूं और इस अपार दुख को साझा करता हूं। यह वास्तव में हमारे लिए एक अपूरणीय क्षति है। चाहे कोई भी सांत्वना के शब्द कहे, हमारे प्रियजनों का नुकसान असहनीय है। फिर भी, आपके परिवार के सदस्य के रूप में, मैं प्रत्येक परिवार को 20 लाख रुपये प्रदान करने का इरादा रखता हूं, जिन्होंने अपने प्रियजन को खो दिया है और उन लोगों को 2 लाख रुपये प्रदान करना चाहता हूं जो घायल हैं और इलाज करा रहे हैं।”

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निस्वार्थ सेवा की भावना और अनुशासन RSS की असली ताकत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के 100 वर्ष पूरे होने से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को कहा कि निस्वार्थ सेवा की भावना और अनुशासन का पाठ ही संघ की असली ताकत है और इसके असंख्य स्वयंसेवकों के हर कार्य में ‘राष्ट्र प्रथम’ को प्राथमिकता दी जाती है।

प्रधानमंत्री ने रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 125वें संस्करण में स्वदेशी अपनाने पर एक बार फिर जोर दिया और लोगों से दो अक्टूबर को गांधी जयंती पर खादी की कोई वस्तु खरीदने का आग्रह किया।

पीएम नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि सरकार ‘छठ महापर्व’ को यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल कराने के लिए प्रयास कर रही है। उन्होंने आरएसएस की सराहना करते हुए कहा, “अब से कुछ ही दिन बाद हम विजयादशमी मनाएंगे। इस बार विजयादशमी एक और कारण से और भी खास है। इस दिन, आरएसएस अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करेगा।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सौ साल पुरानी यात्रा न केवल उल्लेखनीय बल्कि प्रेरणादायक भी है। उन्होंने कहा, “सौ साल पहले, जब आरएसएस की स्थापना हुई थी, तब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। इस सदियों पुरानी गुलामी ने हमारे आत्मविश्वास और स्वाभिमान पर गहरा घाव किया था।”

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प्रधानमंत्री ने कहा कि देश के लोगों में हीन भावना पनपने लगी थी। उन्होंने कहा, “इसलिए, देश की आज़ादी के साथ-साथ, यह भी जरूरी था कि देश वैचारिक गुलामी से मुक्त हो।”

उन्होंने कहा कि हेडगेवार ने इसी उद्देश्य से 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघका गठन किया था।पीएम  मोदी ने कहा, “उनके बाद, गुरु गोलवलकर जी ने राष्ट्र सेवा के इस महायज्ञ को आगे बढ़ाया।”

पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, “निःस्वार्थ सेवा की भावना और अनुशासन का पाठ, यही संघ की असली ताकत है।”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आरएसएस पिछले 100 वर्षों से बिना रुके, बिना थके, राष्ट्र की सेवा में अथक परिश्रम कर रहा है। पीएम मोदी ने कहा, “यही कारण है कि जब कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो आरएसएस के स्वयंसेवक सबसे पहले वहां पहुंचते हैं। आरएसएस के असंख्य स्वयंसेवकों के हर कार्य में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना हमेशा सर्वोपरि होती है।”

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‘अमित शाह के बेटे का इंटरेस्ट है और रुपया कमाने…’, भारत-पाकिस्तान मैच से पहले कांग्रेस नेता उदित राज का आरोप

India vs Pakistan Asia Cup 2025 Final: एशिया कप 2025 का फाइनल रविवार (28 सितंबर) को भारत और पाकिस्तान के बीच दुबई के दुबई इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में खेला जाएगा। इस मैच को लेकर कांग्रेस पार्टी के नेता उदित राज ने प्रतिक्रिया दी है। उदित राज ने कहा कि अगर पाकिस्तान आतंकवाद का गढ़ है तो उसके साथ क्रिकेट क्यों खेला जा रहा है।

समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कांग्रेस नेता उदित राज ने आरोप लगाते हुए कहा, “अगर पाकिस्तान आतंकवाद का एपिसेंटर है तो सरकार भी तो उसकी सहयोगी है। जब वो आतंक का केंद्र है तो आप उसके साथ क्रिकेट कैसे खेल रहे हैं। आप एक तरफ तो जनरल असेंबली में पाकिस्तान को आतंकवादी कहते हैं और बुरा-भला कहते हैं और दूसरी तरफ क्रिकेट खेलते हैं, क्योंकि अमित शाह के बेटे का इंटरेस्ट है, अमित शाह का इंटरेस्ट है और रुपया कमाने का इंटरेस्ट है। तो जयशंकर का यह दोहरा चरित्र नहीं है।”

VIDEO | Congress leader Udit Raj, reacting to EAM Jaishankar’s statement on Pakistan says, “If it is a hub for terrorism, why play cricket with it? Is it because of Amit Shah’s son’s interests or money-making motives?”In his address to the General Debate of the 80th session of… pic.twitter.com/xMeojV0JFe

उदित राज ने कहा, “देखिए आम जो दर्शक होता है वो सोचता है कि जो वो देख रहा है सब वही है। क्रिकेट की दुनिया के पीछे बहुत सारी चीजें होती हैं और बड़े राज होते हैं। कई बार तो ये होता है कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा, उसके लिए भी पहले से ही तय किया जाता है। हजारों-करोड़ों रुपये का ट्रांजेक्शन भी होता है। मैं फिर से वही बात कहूंगा कि जब ऑपरेशन सिंदूर चालू है तो पाकिस्तान के साथ आप एशिया कप खेल रहे हैं। एक आतंकवादी देश के साथ में क्रिकेट खेल रहे हैं। इसका जवाब भारत सरकार को देना चाहिए।”

शिवसेना यूबीटी चीफ उद्धव ठाकरे ने भी भारत-पाकिस्तान मैच पर प्रतिक्रिया दी थी। उन्होंने बीते दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है। सोनम वांगचुक ने भारतीय सेना के लिए कुछ सबसे कठिन इलाकों में सोलर टेंट तकनीक विकसित की। जिसने हमारी सेना के लिए काम किया, उसे अब राष्ट्र-विरोधी करार देकर एनएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया है, जबकि सरकार पाकिस्तान के साथ क्रिकेट मैच की अनुमति दे रही है, एक ऐसा देश जो भारत में आतंक फैलाता है। यह कैसी देशभक्ति है।”

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लेह में अब कैसे हैं हालात? सीआरपीएफ मुस्तैद, आईटीबीपी ने निकाला फ्लैग मार्च

हिंसा प्रभावित लेह शहर में रविवार को लगातार पांचवें दिन भी कर्फ्यू जारी रहा। उपराज्यपाल कविंद्र गुप्ता प्रतिबंधों में ढील देने के बारे में फैसला लेने के लिए समीक्षा बैठक करने वाले हैं। लेह एपेक्स बॉडी (एलएबी) द्वारा आहूत बंद के दौरान व्यापक विरोध के बाद बुधवार शाम को कर्फ्यू लगा दिया गया था।

लेह शहर में शनिवार को कर्फ्यू में पहली बार चरणबद्ध तरीके से चार घंटे की ढील दी गई और जो शांतिपूर्ण रही। बुधवार को हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए जबकि दंगों में संलिप्तता के आरोप में 50 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया गया।

जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को भी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत हिरासत में लिया गया और उन्हें राजस्थान की जोधपुर जेल में रखा गया। एक अधिकारी ने कहा, “स्थिति सामान्य रही और कहीं से भी किसी अप्रिय घटना की सूचना नहीं है। उपराज्यपाल जल्द राजभवन में एक सुरक्षा समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करेंगे और दिन के दौरान प्रतिबंधों में ढील देने पर निर्णय लिया जाएगा।”

उन्होंने बताया कि लेह में मोबाइल इंटरनेट सेवाएं निलंबित रहीं, जबकि करगिल सहित केंद्र शासित प्रदेश के अन्य प्रमुख हिस्सों में पांच या अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने पर प्रतिबंधात्मक आदेश भी लागू रहे।

कर्फ्यूग्रस्त इलाकों में पुलिस और दंगा-रोधी उपकरणों से लैस केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के जवान भारी संख्या में तैनात देखे गए जबकि भारत तिब्बत सीमा पुलिस बल (आईटीबीपी) के जवान भी आज सुबह फ्लैग मार्च करते दिखाई दिए।

हिंसा में मारे गए दो लोगों का अंतिम संस्कार आज किया जाएगा। लेह हिंसा के बाद पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में नामजद कई लोगों में दो कांग्रेस पार्षदों के नाम भी शामिल हैं, जिन्होंने शनिवार को एक स्थानीय अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया।

लद्दाख बार एसोसिएशन, लेह के अध्यक्ष मोहम्मद शफी लस्सू ने बताया कि दोनों पार्षदों – स्मानला दोरजे नूरबो और फुत्सोग स्टैनजिन त्सेपाक के साथ लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के उपाध्यक्ष सविन रिगजिन और गांव के नंबरदार रिगजिन दोरजे को पुलिस हिरासत में भेज दिया गया है। उन्होंने कहा कि पुलिस ने केवल इन चार लोगों की हिरासत मांगी थी, जबकि बाकी लोगों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। इनमें लेह एपेक्स बॉडी और लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के युवा नेता और छात्र भी शामिल हैं।

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नूंह में पुलिस टीम पर हमला, अवैध राइफल्स से अंधाधुंध फायरिंग

Nuh Police Team Attack News: हरियाणा के नूंह में पुलिस टीम पर आरोपियों की समर्थक भीड़ द्वारा हमले की खबर है। पुलिस टीम यहां चोरों को पकड़ने गई थी लेकिन पुलिस टीम पर ही अवैध हथियारों से हमला कर दिया गया। इसके चलते कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। हालांकि बाद में पुलिस टीम ने जवाबी फायरिंग की और मामले पर काबू पाया।

पुलिस टीम पर पथराव का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसके चलते पुलिस ने जांच भी शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार, आरोपियों और उनके समर्थकों ने पहले पत्थरबाजी की और फिर अवैध हथियारों से जमकर फायरिंग की। इसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। पुलिस टीम द्वारा सेल्फ डिफेंस में फायरिंग की गई।

आज की बड़ी खबरें

दरअसल ये माममला पंजाब से चोरी हुई गाड़ियों और साइबर फ्रॉड का है, जिसके तहत शनिवार को पुन्हाना और तावडू क्राइम ब्रांच की टीमें इंदाना गांव में कार चोरी के आरोपियों को दबोचने गईं थी। आरोप यह है कि पुलिस पर फायरिंग के बाद आरोपी आज़ाद मौके से फरार हो गया, लेकिन उसकी पिस्टल वहीं गिर गई, जिसे पुलिस ने जब्त कर लिया।

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आरोप यह भी है कि आज़ाद ने शोर मचाकर ग्रामीण लोगों को उकसाया। इसके बाद जमा हुई भारी भीड़ ने वालों को उकसाया। देखते ही देखते दर्जनों महिलाएं और पुरुष इकट्ठा हो गए और पुलिस टीम पर पथराव शुरू कर दिया।

पुलिस के मुताबिक, घटना के दौरान फायरिंग भी हुई, जिसके बाद पुन्हाना, बिछौर, पिनगवां व अन्य थानों से भारी फोर्स पहुंची और इस मामले में 3 महिलाओं समेत 14 आरोपियों को गिरफ्तार किया है। बिछौर थाना प्रभारी जसवीर ने बताया कि पुलिस पूरी घटना पर एक्शन ले रही है और केस दर्ज करके कार्रवाई शुरू कर दी है।

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‘अनुच्छेद 370 ने हमें बचाया… हमारी रोजी-रोटी छीनी जा रही है’, बौद्ध नेता ने लेह हिंसा को लेकर क्या कहा? 

लेह में पिछले दिनों हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए। इनमें चार लोगों की मौत हो गई और 80 लोग घायल हो गए। हिंसक प्रदर्शनों के बाद केंद्र सरकार ने पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को गिरफ्तार कर लिया। लेह में विरोध प्रदर्शन अचानक हिंसक कैसे हो गए, वहां के लोगों की परेशानियां क्या हैं, वहां रोजगार के क्या हालात हैं, ऐसे ही कई अहम सवालों के जवाब लेह की एपेक्स बॉडी के को-चेयरमैन और लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के प्रमुख छेरिंग दोरजे लकरुक ने द इंडियन एक्सप्रेस को इंटरव्यू में दिए हैं।

यह सवाल पूछे जाने पर कि आखिर विरोध प्रदर्शन हिंसक कैसे हो गया, दोरजे कहते हैं, “ऐसा अचानक हुआ। जब चार-पांच हजार लोग सड़क पर उतरते हैं तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसमें कुछ शरारती तत्व भी होंगे।” दोरजे ने कहा कि प्रदर्शन में शामिल लोग बेरोजगार युवा थे, इन दिनों ऐसे लोगों को Gen Z कहा जाता है।

क्या सोनम वांगचुक के हैं पाकिस्तान से संबंध?

दोरजे कहते हैं, “सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है, युवा बड़ी मुश्किल से पढ़ाई पूरी करते हैं लेकिन उन्हें भी नौकरी नहीं मिल रही है। ठेके पर नौकरियां करने वाले लोगों को अपमानित किया जाता है।” बौद्ध नेता दोरजे कांट्रेक्ट सिस्टम पर सवाल उठाते हैं। वह कहते हैं कि इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। विरोध-प्रदर्शनों के दौरान जो दिखा, वह लोगों के अंदर भरा हुआ गुस्सा है।

जम्मू-कश्मीर सरकार में मंत्री रहे दोरजे ने कहा, “पहले हम अनुच्छेद 370 की आलोचना करते थे क्योंकि लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के रास्ते में यह सबसे बड़ा रोड़ा था लेकिन इसने हमें 70 साल तक बचाया, तब हमारी जमीन सुरक्षित थी। यहां तक कि जम्मू-कश्मीर के लोग भी यहां नहीं आते थे लेकिन अब लद्दाख पूरे भारत के लिए खुल चुका है। हमारी कोई सुरक्षा नहीं है। बाहरी लोगों ने यहां जमीन खरीद ली हैं, होटल खुल गए हैं और यहां के स्थानीय लोगों की रोजी-रोटी छीनी जा रही है।”

नेपाल के Gen-Z आंदोलन का जिक्र कर सोनम वांगचुक ने लोगों को भड़काया

दोरजे से जब यह पूछा गया कि सोनम वांगचुक आखिर सोलर प्रोजेक्ट का विरोध क्यों कर रहे हैं, इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, “यह उस वक्त का प्रस्ताव है जब मैं जम्मू-कश्मीर की सरकार में मंत्री था। तब यह परियोजना 5000 मेगावाट की थी और अब जो नया प्रोजेक्ट है, वह 15000 गीगावॉट का है। हजारों एकड़ में इसे बनाया जाएगा। यह 45 किलोमीटर लंबा है और हमारी पश्मीना बकरियों की चारागाह की जमीन पर बन रहा है।” दोरजे सवाल उठाते हैं कि ऐसे में चरवाहे कहां जाएंगे?

बौद्ध नेता दोरजे ने कहा, “इस प्रोजेक्ट के लिए 45000 कर्मचारियों की जरूरत है जबकि इस पूरे इलाके की कुल आबादी 15000 है। इतने सारे लोग बाहर से आएंगे, वे यहां रहेंगे यहां के लोग प्रकृति के साथ और सीमित संसाधनों में रहते हैं, आप हमारी संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं।”

दोरजे ने कहा, “हम 6 साल से सरकार से बातचीत कर रहे हैं, हमें क्या मिला, इतने सालों में हमें सिर्फ मूल निवासी का ही आरक्षण मिला, वह भी 100% नहीं है। हमारे मुख्य मुद्दे पर तो अभी तक कोई चर्चा तक नहीं हुई है।” दोरजे कहते हैं कि क्या इसमें 6 साल और लगेंगे, तब तक तो हम मर चुके होंगे।

जब दोरजे से सवाल पूछा गया कि सरकार आपकी मांगों को क्यों नहीं मान रही है, तो वह कहते हैं कि यह मामला भाजपा की विचारधारा से जुड़ा हुआ है, वे सब कुछ एक जैसा चाहते हैं। दोरजे ने कहा, “छठी अनुसूची से स्थानीय लोगों को अधिकार मिलते हैं और गांव और स्थानीय स्तर के कानूनों और पुराने रीति-रिवाजों की भी रक्षा होती है।”

दोरजे ने कहा, “जब हम जम्मू-कश्मीर का हिस्सा थे, तब भी हमारे पास छठी अनुसूची नहीं थी लेकिन कश्मीर प्रशासन ने कभी भी हमारी स्थानीय परंपराओं में दखल नहीं दिया। हमारे गांवों के प्रमुखों को को नौकरी से हटा दिया गया है। सरकार कहती है उनकी उम्र 60 साल से ज्यादा हो गई है। जम्मू-कश्मीर की सरकार कभी ऐसा नहीं करती थी, गांव के पुराने और बुजुर्ग लोग ही परंपराओं को जानते हैं।”

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फिलीस्तीन के मामले में सोनिया ने क्यों की मोदी सरकार की आलोचना? इजरायल की कार्रवाई को बताया नरसंहार

कांग्रेस पार्टी ने हमेशा फ़िलिस्तीन का समर्थन किया है। कांग्रेस संसदीय दल (CPP) की अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनकी बेटी और पार्टी सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा, गाज़ा में इजरायल-हमास के बीच चल रहे युद्ध के बीच फ़िलिस्तीनी मुद्दे की मजबूत आवाज़ बनकर उभरी हैं। फ़्रांस द्वारा यूनाइटेड किंगडम, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ फ़िलिस्तीनी स्टेट को मान्यता देने के कुछ दिनों बाद सोनिया गांधी ने गुरुवार को द हिंदू के लिए एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने गाज़ा में इजरायल के विनाशकारी हमले के बीच फ़िलिस्तीन के संबंध में नरेंद्र मोदी सरकार के रुख की आलोचना की।

‘भारत की दबी हुई आवाज़, फ़िलिस्तीन से उसका अलगाव’ नाम के टाइटल से अपने लेख मे सोनिया गांधी ने तर्क दिया कि भारत को फ़िलिस्तीन के मुद्दे पर नेतृत्व दिखाने की ज़रूरत है, जो अब न्याय, पहचान, सम्मान और मानवाधिकारों की लड़ाई है। सोनिया ने कहा कि पिछले दो वर्षों में अक्टूबर 2023 में इजरायल और फ़िलिस्तीन के बीच शत्रुता शुरू होने के बाद से भारत ने अपनी भूमिका लगभग त्याग दी है। उन्होंने कहा कि 7 अक्टूबर 2023 को इजरायली नागरिकों पर हमास के क्रूर और अमानवीय हमलों के बाद इजरायल की प्रतिक्रिया नरसंहार से कम नहीं रही। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है, 55,000 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी नागरिक मारे गए हैं, जिनमें 17,000 बच्चे भी शामिल हैं।

सोनिया ने कहा कि मोदी सरकार की प्रतिक्रिया गहरी चुप्पी और मानवता व नैतिकता दोनों का त्याग रही है। उन्होंने आरोप लगाया, “ऐसा लगता है कि उसकी कार्रवाई मुख्य रूप से इजरायली प्रधानमंत्री और मोदी के बीच व्यक्तिगत मित्रता से प्रेरित है, न कि भारत के संवैधानिक मूल्यों या उसके रणनीतिक हितों से। व्यक्तिगत कूटनीति की यह शैली कभी भी स्वीकार्य नहीं है और यह भारत की विदेश नीति का मार्गदर्शक नहीं हो सकती।”

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कांग्रेस शुरू से ही फ़िलिस्तीनी आकांक्षाओं का समर्थन करती रही है, और नेहरू-गांधी परिवार दिवंगत फ़िलिस्तीनी नेता यासर अराफात के साथ घनिष्ठ संबंधों के लिए जाना जाता है। अराफ़ात ने इंदिरा गांधी को अपनी बहन माना था और उनके अंतिम संस्कार में सार्वजनिक रूप से रोए थे। वह राजीव गांधी के अंतिम संस्कार में भी शामिल हुए थे, जबकि सोनिया गांधी राजनीति में आने के बाद कई बार अराफात से मिलीं।

अक्टूबर 2023 में इजरायल और हमास के बीच शत्रुता भड़कने के बाद से कांग्रेस ने फ़िलिस्तीनियों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करते हुए इस संघर्ष पर सतर्क रुख अपनाया है। हालांकि प्रियंका इजरायली सरकार की आक्रामकता की निंदा करने और मोदी सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता के लिए लगातार मुखर रही हैं।

कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि सोनिया-प्रियंका की जोड़ी का फ़िलिस्तीन पर कड़ा रुख अपनाना उनके लिए ज़्यादा नैतिक विकल्प है। पार्टी के विदेश मामलों के विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, “हर कोई जानता है कि मौजूदा मोड़ पर फ़िलिस्तीन समर्थक रुख़ अपनाने से चुनावी फायदा नहीं होगा और भाजपा के हमले भी हो सकते हैं। लेकिन गांधी परिवार के पास एक नैतिक दिशा-निर्देश है जो चुनावी जीत और लाभ से कहीं आगे जाता है, और फ़िलिस्तीन मुद्दे पर यह बिल्कुल स्पष्ट है।”

7 अक्टूबर 2023 को इजरायल में हमास के हमलों से शुरू हुए इजराइल-हमास युद्ध ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है, जो ऐतिहासिक रूप से फ़िलिस्तीन के पक्ष में खड़ी रही है। कांग्रेस ने शुरुआत में हमास का नाम लेने और इज़राइल में उसके हमलों के लिए ‘आतंक’ शब्द का इस्तेमाल करने से परहेज किया। इसके बाद शशि थरूर जैसे कुछ पार्टी नेताओं ने 9 अक्टूबर, 2023 को हुई कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की बैठक में कहा कि सीडब्ल्यूसी के प्रस्ताव में इजराइल पर हमास के हमले की निंदा की जानी चाहिए, संगठन का नाम लिया जाना चाहिए और आतंक शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

कांग्रेस कार्यसमिति के प्रस्ताव में थरूर के सुझाव पर ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि इसके तुरंत बाद संतुलन बनाने की कोशिश करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इजरायल के लोगों पर हमास द्वारा किए गए क्रूर हमलों की निंदा की और कहा कि इजरायली सैन्य बलों द्वारा नागरिक क्षेत्रों में की गई अंधाधुंध कार्रवाई (जिसमें गाजा पट्टी की घेराबंदी और उसमें बमबारी शामिल है) भी अस्वीकार्य है।

हमास के हमले के कुछ हफ़्ते बाद कांग्रेस ने वामपंथी दलों के साथ मिलकर मोदी सरकार की आलोचना की। जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अरब देशों द्वारा तैयार किए गए एक प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया, जिसमें इजरायल और हमास के बीच तत्काल युद्धविराम और गाजा पट्टी तक सहायता पहुंचाने की मांग की गई थी। प्रियंका ने महात्मा गांधी की प्रसिद्ध पंक्ति ‘आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देती है’ का हवाला देते हुए कहा, “मैं स्तब्ध और शर्मिंदा हूं कि हमारे देश ने गाजा में युद्धविराम के लिए मतदान से परहेज किया है।”

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अक्टूबर 2023 में द हिंदू के लिए लिखे एक लेख में सोनिया ने हमास के हमले पर इज़राइल की सैन्य प्रतिक्रिया की कड़ी आलोचना की थी। जुलाई 2024 में प्रियंका ने इस युद्ध को बर्बर बताते हुए सभी देशों से इज़राइल सरकार की नरसंहारकारी कार्रवाइयों की निंदा करने और उन्हें इसे रोकने के लिए मजबूर करने का आग्रह किया। जहां गांधी परिवार मुखर रहा है, वहीं कांग्रेस ने भी बीच-बीच में मोदी सरकार पर फिलीस्तीन मुद्दे के प्रति भारत की ऐतिहासिक प्रतिबद्धता के अनुरूप इस मुद्दे पर पर्याप्त कदम न उठाने का आरोप लगाया है।

हालांकि कांग्रेस का एक वर्ग इज़राइल-फिलीस्तीन संघर्ष पर अधिक सूक्ष्म रुख अपनाने के पक्ष में प्रतीत होता है। कांग्रेस कार्यसमिति के एक सदस्य ने कहा, “इस मुद्दे पर कोई रुख अपनाने से हमें कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला है क्योंकि हमारे लोगों का एक बड़ा वर्ग इजराइल का समर्थन करता है। फ़िलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन करने वालों में मुसलमान भी हैं, जो कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की ओर झुके हुए हैं। अतीत अलग था। राजनीति को वर्तमान और भविष्य के अनुसार ढालना होगा।”

दिसंबर 2024 में प्रियंका संसद में एक बैग लेकर गई थीं जिस पर फिलिस्तीन लिखा हुआ था। भाजपा ने तुरंत उन पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया था। इसके बाद उन्होंने संसद परिसर में ‘बांग्लादेश में अत्याचार झेल रहे हिंदुओं के लिए न्याय’ की मांग करते हुए एक विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। भाजपा सांसद और प्रवक्ता संबित पात्रा ने तब कहा था कि उनका यह कदम आश्चर्यजनक नहीं था। उन्होंने आरोप लगाया, “जहां तक गांधी परिवार के सदस्यों का सवाल है, यह कोई नई बात नहीं है। नेहरू से लेकर प्रियंका वाड्रा तक- गांधी परिवार के सदस्य तुष्टिकरण का बैग लेकर घूमते हैं। उन्होंने कभी देशभक्ति का बैग अपने कंधों पर नहीं लटकाया।”

दिसंबर 2024 में नई दिल्ली स्थित फिलीस्तीन दूतावास के प्रभारी अबेद एलराज़ेग अबू जाज़र ने केरल के वायनाड से चुनावी जीत पर बधाई देने के लिए प्रियंका से उनके आवास पर मुलाकात की थी। उस समय फिलिस्तीनी दूतावास द्वारा जारी एक बयान के अनुसार प्रियंका ने मुलाकात के दौरान कहा था कि वह बचपन से ही फिलिस्तीन के मुद्दे पर जीती रही हैं और उसके न्याय में विश्वास करती हैं।