सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई योगी सरकार को फटकार? यूपी गैंगस्टर एक्ट से जुड़ा है मामला, कार्यप्रणाली पर उठाए सवाल

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य के गैंगस्टर विरोधी कानून के तहत दर्ज एक मामले में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अपने जवाब में अप्रचलित मामलों को शामिल करने के कारण वह “प्रॉसिक्यूटर नहीं बल्कि पर्सिक्यूटर” है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की बेंच ने एक आरोपी की याचिका पर राज्य के हलफनामे का हवाला दिया और सवाल किया कि उसके खिलाफ ऐसे मामले क्यों हैं जिन्हें या तो रद्द कर दिया गया या जिनमें उसे बरी कर दिया गया।

न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के अनुसार, बेंच ने कहा, “आप अपने जवाब में उन मामलों को भी शामिल कर रहे हैं जिन्हें खारिज कर दिया गया है और जिनमें याचिकाकर्ता को बरी कर दिया गया है। अगर यह आपकी कार्यप्रणाली है, तो आप प्रॉसिक्यूटर नहीं नहीं, पर्सिक्यूटर हैं।”

इसलिए अदालत ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर्स और असामाजिक गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1986 के तहत आरोपों का सामना कर रहे चार व्यक्तियों को जमानत दे दी। बेंच ने यूपी सरकार से पूछा, “अगर वह (याचिकाकर्ता) पहले से ही कुछ मामलों में जमानत पर रिहा है, अगर कुछ कार्यवाही रद्द कर दी गई हैं, अगर कुछ कार्यवाही में उसे बरी कर दिया गया है… तो क्या आपके लिए इस कोर्ट के समक्ष फैक्चुअल स्थिति रखना जरूरी नहीं था?”

सुप्रीम कोर्ट में यह आदेश आरोपियों द्वारा दायर चार अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया गया। आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के नवंबर 2024 के आदेशों को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी जमानत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि याचिकाकर्ता भाई हैं और 2017 के बाद दर्ज मामलों में उन्हें फंसाया गया है, क्योंकि उनके पिता एक राजनीतिक दल से संबंधित MLC थे।

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उन्होंने कहा कि राज्य की कार्यप्रणाली ऐसी है कि जब याचिकाकर्ताओं को एक मामले में जमानत मिल जाती है तो उनके खिलाफ दूसरी FIR दर्ज कर दी जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें कभी राहत न मिले। लूथरा ने राज्य के हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि एक याचिकाकर्ता के खिलाफ 28 FIR दर्ज हैं, जबकि अन्य के खिलाफ 15 FIR दर्ज हैं।

उन्होंने कहा कि ज्यादातर मामलों में राज्य ने आपराधिक पृष्ठभूमि के आधार पर जमानत का विरोध किया, याचिकाकर्ताओं को या तो बरी कर दिया गया या जमानत पर रिहा कर दिया गया और कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने उनमें से कुछ के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी। लूथरा ने कहा, “मुझे यह कहते हुए दुख हो रहा है। राज्य अथॉरिटी का लगातार यही व्यवहार रहा है कि वे FIR दर्ज करते रहते हैं। मुझे नहीं पता कि मेरा मुवक्किल जेल में सुरक्षित है या बाहर।”

यूपी सरकार के वकील ने जमानत याचिकाओं का विरोध किया और कहा कि दर्ज मामलों में से एक कथित केस गैंगरेप का है। वकील ने सेक्शन 19(4) का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी आरोपी को तब तक जमानत पर रिहा नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को जमानत का विरोध करने का मौका न दिया जाए और जहां प्रॉसिक्यूटर इसका विरोध करता है। रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट संतुष्ट थी कि यह मानने के लिए उचित आधार थे कि आरोपी ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहते हुए उसके द्वारा कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।

बेंच ने उसके सामने पेश किए गए एक चार्ट से पता चलता है कि याचिकाकर्ता कई मामलों में संलिप्त थे, लेकिन अधिकतर मामलों में याचिकाकर्ता या तो जमानत पर रिहा हो गए या बरी हो गए। बेंच ने यह भी कहा कि कुछ मामलों में, इस कोर्ट  ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दी। कथित गैंगरेप केस पर कोर्ट ने कहा कि जुलाई 2022 में सहारनपुर की एक ट्रायल कोर्ट ने जमानत दे दी थी, लेकिन राज्य सरकार ने ढाई साल बाद भी इसे रद्द करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।

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हाथों में बेड़ियां, पैर तक जंजीरों में बंधकर बच्चे के साथ भारत आई पीड़िता की कहानी, 1 करोड़ गंवा कर ‘डंकी रूट’ से पहुंची थी US

Indians Deport from US: अमेरिका ने अवैध रूप से अपी सीमा में घुसे भारतीयों को भी डिपोर्ट करना शुरू कर दिया है। 5 फरवरी को अमेरिकी एयरफोर्स का एक विमान भारत के अमृतसर में भी उतरा, जिसमें अवैध रूप से अमेरिका में घुसे 104 भारतीयों को जंजीरों में बांधकर भारत लाए गए। इनमें पंजाब के कपूरथला की रहने वाली लवप्रीत नाम की महिला भी थीं, जो कि 1 करोड़ से ज्यादा रुपये खर्च करके अमेरिका पहुंची थीं और उन्हें मेक्सिको बॉर्डर पर ही गिरफ्तार कर लिया गया था।

दरअसल, इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कपूरथला जिले के भोलाथ इलाके में रहने वाली 30 साल की लवप्रीत ने बताया कि उन्होंने अपने 10 साल के बच्चे के बेहतर फ्यूचर के लिए अमेरिका जाने का निर्णय लिया था। उन्होंने इसके लिए एजेंट को 1 करोड़ रुपये भी दिए थे और एजेंट ने उनसे डायरेक्ट अमेरिका ले जाने का वादा किया था लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

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लवप्रीत ने 2 जनवरी को अपने दस साल के बेटे के साथ अमेरिका जाने के लिए निकली थी। एक महीने से भी ज़्यादा समय बाद जब वो ‘डंकी रूट’ के जरिए मेक्सिको बॉर्डर होते हुए 27 जनवरी को अमेरिका पहुंचीं थीं, तो उन्हें अमेरिकी सुरक्षाबलों ने गिरफ्तार कर लिया था। लवप्रीत ने कहा कि एजेंट ने हमारे परिवार से कहा कि वे हमें सीधे अमेरिका ले जाएंगे। लेकिन हमें जो सहना पड़ा, वह हमारी उम्मीद से कहीं ज़्यादा था।

लवप्रीत ने कहा कि उन्हें कोलंबिया के मेडेलिन ले जाया गया और वहां करीब दो सप्ताह तक रखा गया, उसके बाद उन्हें विमान से सैन साल्वाडोर ले जाया गया। वहां से हम तीन घंटे से अधिक समय तक पैदल चलकर ग्वाटेमाला पहुंचे, फिर टैक्सियों से मैक्सिकन सीमा तक पहुंचे। दो दिन मैक्सिको में रहने के बाद, वे आखिरकार 27 जनवरी को अमेरिका पहुंचे थे।

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लवप्रीत और अमेरिका पहुंचे अन्य भारतीयों की मुश्किलें तब बढ़ गईं, जब अमेरिकी अधिकारियों ने सीमा पार करने के बाद लवप्रीत और अन्य को हिरासत में ले लिया। उन्होंने बताया कि जब हम अमेरिका पहुंचे, तो उन्होंने हमसे हमारे सिम कार्ड और यहां तक ​​कि झुमके और चूड़ियां जैसे छोटे गहने भी हटाने को कहा था।

पीड़िता ने कहा कि वे पहले ही इतने लंबे सफर में अपना सामान खो चुकी थीं। उन्होंने कहा कि हमें पांच दिनों तक एक शिविर में रखा गया और 2 फरवरी को हमें कमर से लेकर पैरों तक जंजीरों से बांध दिया गया और हमारे हाथों में हथकड़ी लगा दी गई। केवल बच्चों पर ही थोड़ी नरमी बरती गई।

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लवप्रीत ने बताया कि सैन्य विमान में 40 घंटे की यात्रा के दौरान संचार की कमी से वे सभी परेशान थे। उन्होंने कि किसी ने हमें नहीं बताया कि हमें कहां ले जाया जा रहा है, और जब हम आखिरकार भारत पहुंचे, तो हमें झटका लगा। हमें अमृतसर हवाई अड्डे पर बताया गया कि हम भारत पहुंच गए हैं लेकिन ऐसा लगा जैसे हमारे सपने एक पल में ही टूट गए हों।

लवप्रीत ने कहा कि मुझे अपने बेटे के भविष्य और अमेरिका में एक नए जीवन की उम्मीद थी। मेरे परिवार ने एजेंट को भुगतान करने के लिए एक बड़ा ऋण लिया, उम्मीद है कि हमारा भविष्य बेहतर होगा। अब सब कुछ नष्ट हो गया है। हमें बताया गया था कि हम जल्द ही कैलिफ़ोर्निया में अपने रिश्तेदारों के पास होंगे, लेकिन अब मेरे पास दर्द के अलावा कुछ नहीं बचा है।

उन्होंने कहा कि लवप्रीत और उनके परिवार के पास भारत में 1.5 एकड़ ज़मीन है, जहां वह अपने पति और बुज़ुर्ग सास-ससुर के साथ रहती हैं। उनकी मांग है कि सरकार बेईमान एजेंटों के खिलाफ कार्रवाई करे, जिन्होंने उन्हें और उनके जैसे अन्य लोगों क ठगा है। अमेरिका से संबंधित अन्य सभी खबरों के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

Delhi Exit Polls Results 2025: एक और एग्जिट पोल में AAP का झटका, डिटेल में जानिए किस पार्टी को कितनी सीटें मिलने का अनुमान

Delhi Exit Polls Results 2025: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए 5 फरवरी को हुई वोटिंग के बाद आए कई एग्जिट पोल्स के नतीजों में ज्यादातर ने बीजेपी की जीत का अनुमान लगाया है। वहीं एक दिन बाद आज आए एक्सिस माइ इंडिया के एग्जिट पोल्स में भी आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका लगने का अनुमान है। इस एग्जिट पोल में बीजेपी के 45-55 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत की सरकार बनाने का अनुमान है।

दरअसल, गुरुवार को आए इंडिया टुडे-एक्सिस माइ इंडिया के एग्जिट पोल में बीजेपी को करीब 48 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान लगाया गया है। वहीं आम आदमी पार्टी को 42 फीसदी वोट मिलने का ही अनुमान है। इसके अलावा एग्जिट पोल में कांग्रेस को 7 और अन्य के खाते में 3 प्रतिशत वोट जाने का अनुमान लगाया गया है।

Delhi Election Exit Polls Results LIVE

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग के बाद हुए एक्सिस माइ इंडिया के एग्जिट पोल में सीटों के अनुमान की बात करें तो इसमें भी वोट प्रतिशत की तरह ही बीजेपी और एनडीए ही आगे है। दिल्ली में बीजेपी, जेडीयू, एलजेपी (रामविलास) के तहत चुनाव में उतरी थी।

एक्सिस माइ इंडिया के एग्जिट पोल में बीजेपी को 45-5 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। इसके अलावा सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को महज 15-25 सीटें मिलने का अनुमान है। कांग्रेस को 0-1 सीट मिलने की संभावना जताई गई है। वहीं अन्य के खाते में भी एक सीट जा सकती है।

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बता दें कि बीते दिन वोटिंग के बाद आए तमाम एग्जिट पोल्स में बीजेपी को पूर्ण बहुमत का अनुमान लगाया गया है। महज दो एग्जिट पोल्स ही आम आदमी पार्टी की तीसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनने का अनुमान जता रहे हैं, जबकि कुछ में दोनों ही मुख्य दलों के बीच कांटे का मुकाबला भी देखने को मिलने की उम्मीद लगाई गई है।

बीजेपी जहां एग्जिट पोल्स को लेकर उत्साहित नजर आ रही है, तो दूसरी ओर आम आदमी पार्टी के शीर्ष स्तर के नेताओं से लेकर कार्यकर्ता इन एग्जिट पोल्स को खारिज कर रहे हैं। ऐसे में अब सभी राजनीतिक दलों को 8 फरवरी का इंतजार है, जब सुबह 8 बजे से शुरू होने वाली काउंटिंग के साथ ही स्थिति साफ हो सकती है। दिल्ली चुनाव से संबंधित अन्य सभी खबरों के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।

Donkey Route: महीनों की यात्रा, जंगल पार करना… यूरोप से लेकर लैटिन अमेरिकी देशों के रास्ते US पहुंचना, जानें कितना खतरनाक है डंकी रूट का सफर

अमेरिका में रह रहे 104 अवैध प्रवासी भारतीय बुधवार को भारत लौटे। अमेरिकी C-147 प्लेन से अवैध प्रवासी भारतीयों का पहला जत्था भारत पहुंचा। इन निर्वासित भारतीय अप्रवासियों को लेकर एक सैन्य विमान बुधवार दोपहर अमृतसर के श्री गुरु रामदास जी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरा। विमान में निर्वासित व्यक्तियों में 25 महिलाएं, 12 नाबालिग और 79 पुरुष थे इन निर्वासितों में पंजाब के साथ ही हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के लोग शामिल थे।

निर्वासित लोगों में 33 गुजरात के हैं, 30 पंजाब के हैं जबकि दो-दो निर्वासित उत्तर प्रदेश और चंडीगढ़ से हैं और तीन महाराष्ट्र से हैं। ये सभी भारतीय अवैध तरीके से अमेरिका जाने के लिए ज्यादातर डंकी रूट (Donkey Route) का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या है डंकी रूट और कितना बड़ा है इसका नेटवर्क?

डंकी रूट का मतलब है दुनिया भर में किसी जगह तक पहुंचने के लिए लंबे-घुमावदार और अक्सर खतरनाक रास्ते अपनाना। किसी देश में प्रवास करने के लिए ये कठिन यात्राएं आवश्यक कानूनी परमिट या वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण की जाती हैं। दिल्ली पुलिस की आईजीआई इकाई के विश्लेषण के अनुसार, यात्रियों को उन देशों में भेजा जाता है, जहां वीजा-ऑन-अराइवल की सुविधा है और फिर उन्हें अवैध सीमा पार करके उनके गंतव्य देशों में भेज दिया जाता है।

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अधिकारियों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि फर्जी शेंगेन वीजा वाले यात्रियों को अजरबैजान या कजाकिस्तान जैसे अपेक्षाकृत सुलभ यूरोपीय देशों में भेजा जाता है। वहां से,उन्हें ग्वाटेमाला और कोस्टा रिका जैसे मध्य अमेरिकी या कैरेबियाई देशों के रास्ते अमेरिका भेजा जाता है।

एक अन्य डंकी रूट में पर्यटक वीजा पर तुर्की जाना या वीजा-ऑन-अराइवल पर कजाकिस्तान जाना और वहां से रूस के लिए रूट लेना शामिल है। कुछ मामलों में, यात्री मेक्सिको जाने से पहले नकली शेंगेन वीज़ा प्राप्त कर लेते हैं, जहां उन्हें अराइवल पर वीज़ा मिल जाता है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यहां से वे डंकी रूट लेते हैं जो बॉर्डर पॉइंट्स से होकर कई किलोमीटर की यात्रा करके अमेरिका पहुंचते हैं।

भारत से सबसे लोकप्रिय डंकी रूट में पहला कदम लैटिन अमेरिकी देश तक पहुंचना है। इक्वाडोर, बोलीविया और गुयाना जैसे देशों में भारतीय नागरिकों के लिए आगमन पर वीजा की सुविधा है। ब्राजील और वेनेजुएला सहित कुछ अन्य देश भारतीयों को आसानी से पर्यटक वीजा देते हैं। प्रवासी का मार्ग इस बात पर भी निर्भर करता है कि उसके एजेंट के किन देशों में मानव तस्करी नेटवर्क से संबंध हैं। लैटिन अमेरिकी देशों तक पहुंचना कठिन नहीं है। हालांकि, इसमें महीनों लग सकते हैं।

कुछ एजेंट दुबई से मेक्सिको के लिए सीधे वीज़ा की व्यवस्था करते हैं। हालांकि, मेक्सिको में सीधे उतरना ज़्यादा ख़तरनाक माना जाता है क्योंकि स्थानीय अधिकारियों द्वारा गिरफ़्तारी की आशंका रहती है। इसलिए, ज़्यादातर एजेंट अपने ग्राहकों को लैटिन अमेरिकी देश में उतारते हैं और फिर उन्हें कोलंबिया ले जाते हैं। कोई देश अमेरिकी सीमा से जितना नज़दीक होगा भारत से वीज़ा पाना उतना ही मुश्किल होगा।

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कोलंबिया से प्रवासी पनामा में प्रवेश करते हैं। इसमें दोनों देशों के बीच एक खतरनाक जंगल, डेरियन गैप को पार करना शामिल है। यहाँ जोखिम में साफ़ पानी की कमी, जंगली जानवर और आपराधिक गिरोह शामिल हैं। इस क्षेत्र में प्रवासियों को डकैती और यहां तक कि बलात्कार का भी सामना करना पड़ सकता है, यहाँ किए गए अपराध रिपोर्ट नहीं किए जाते और उन्हें सज़ा नहीं मिलती। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो यात्रा में आठ से दस दिन लगते हैं अगर किसी प्रवासी की मृत्यु हो जाती है तो शव को अंतिम संस्कार के लिए घर भेजने का कोई तरीका नहीं है।

कोलंबिया से एक और मार्ग है जो पनामा के जंगल से बचने के लिए सैन एन्ड्रेस से शुरू होता है लेकिन यह ज़्यादा सुरक्षित नहीं है। सैन एन्ड्रेस से प्रवासी मध्य अमेरिका के एक देश निकारागुआ के लिए नाव लेते हैं। अवैध प्रवासियों के साथ मछली पकड़ने वाली नावें सैन एन्ड्रेस से लगभग 150 किलोमीटर दूर फिशरमैन के के तक जाती हैं। वहां से, प्रवासियों को मैक्सिको की ओर आगे बढ़ने के लिए दूसरी नाव से भेजा जाता है।

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संयुक्त राज्य अमेरिका और मेक्सिको को अलग करने वाली 3,140 किलोमीटर लंबी सीमा पर बाड़ लगी हुई है, जिसे प्रवासियों को कूदकर पार करना पड़ता है। कई लोग खतरनाक रियो ग्रांडे नदी को पार करना पसंद करते हैं। सीमा पार करने के बाद प्रवासियों को हिरासत में लिया जाता है और फिर शिविरों में रखा जाता है। अब, उनका भाग्य इस बात पर निर्भर करता है कि अमेरिकी अधिकारी उन्हें शरण के लिए उपयुक्त पाते हैं या नहीं।

आजकल, अमेरिका जाने के लिए एक और आसान डंकी रूट है, कई प्रवासी पहले यूरोप जाते हैं और वहां से सीधे मेक्सिको जाते हैं। यह सब एजेंटों के संपर्कों पर निर्भर करता है। यूरोप से जाना आसान है।

डंकी रूट पर यात्रा करने की औसत लागत 15 लाख से 40 लाख रुपये तक हो सकती है। लेकिन कभी-कभी यह लागत 70 लाख रुपये तक भी हो सकती है। कुछ एजेंट ज़्यादा पैसे के बदले में कम परेशानी वाली यात्रा का वादा करते हैं। भारत में एजेंटों के अमेरिका तक के तस्करों से संबंध हैं। अगर किसी कारण से भारतीय एजेंट भुगतान करने में विफल रहते हैं तो यह प्रवासी के लिए जीवन और मृत्यु का मामला हो सकता है। परिवार अक्सर किश्तों में भुगतान करते हैं।

EXIT POLLS पर अरविंद केजरीवाल का पहला रिएक्शन, बोले – हमारे 16 उम्मीदवारों के पास आए फोन, 15 करोड़ का दिया ऑफर

दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर जारी हुए एग्जिट पोल्स पर अब अरविंद केजरीवाल ने भी प्रतिक्रिया दी है। अरविंद केजरीवाल ने X पर पोस्ट कर कहा कि कुछ एजेंसियां दिखा रही हैं कि ‘गाली गलौज पार्टी’ की 55 से ज़्यादा सीट आ रही हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दो घंटे में हमारे 16 उम्मीदवारों के पास फ़ोन आ गए हैं कि AAP छोड़ के उनकी पार्टी में आ जाओ, मंत्री बना देंगे और हरेक को 15-15 करोड़ देंगे।

 अरविंद केजरीवाल ने आगे कहा कि अगर इनकी पार्टी की 55 से ज़्यादा सीटें आ रहीं हैं तो हमारे उम्मीदवारों को फ़ोन करने की क्या ज़रूरत है? उन्होंने कहा कि ज़ाहिर तौर पे ये फ़र्ज़ी सर्वे करवाये ही इसलिए गए हैं ताकि ये माहौल बनाकर कुछ उम्मीदवारों को तोड़ा जा सके। उन्होंने कहा, “पर गाली गलौज वालों, हमारा एक भी आदमी नहीं टूटेगा।”

Delhi Election 2025 Exit Poll Result: किस पार्टी को कितनी सीटें?

EXIT POLLS से उत्साहित बीजेपी ने गुरुवार को दावा किया कि वह दिल्ली में “प्रचंड बहुमत” के साथ सरकार बनाने जा रही है और शहर के विकास के लिए काम करेगी। BJP ने दावा किया कि लोग सत्तारूढ़ AAP और उसके राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल से बेहद नाराज हैं।

बुधवार और गुरुवार को कई एग्जिट पोल में दिल्ली विधानसभा चुनाव में AAP के मुकाबले भाजपा की जीत की भविष्यवाणी की गई, जबकि कांग्रेस को पिछले चुनावों के मुकाबले कोई खास बढ़त नहीं मिलने का अनुमान लगाया गया है। हालांकि, दो एग्जिट पोल में AAP की जीत की भविष्यवाणी की गई है और कई ने आप और भाजपा के बीच कड़ी टक्कर दिखाई है।

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए बीजेपी के अरुण सिंह ने कहा, “हमने जमीनी स्तर पर देखा कि लोगों में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कितना गुस्सा है। उन्हें भाजपा से उम्मीद है। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दिल्ली में ‘डबल इंजन’ वाली सरकार बनाना चाहते हैं।” उन्होंने कहा, “इसलिए मुझे पूरा विश्वास है कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दिल्ली में BJP की ‘डबल इंजन’ वाली सरकार बनने जा रही है जो दिल्ली के लिए सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करेगी।”

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Union Budget 2025 Makhana Board: मखाना बोर्ड के ऐलान से क्या NDA को बिहार विधानसभा चुनाव में कोई फायदा होगा?

Nirmala Sitharaman Makhana Board: केंद्र सरकार ने बजट में बिहार के लिए कई बड़े ऐलान किए हैं। बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं इसलिए माना जा रहा है कि केंद्र की सरकार इस राज्य पर ज्यादा मेहरबान हुई है। जितने भी ऐलान बिहार के लिए किए गए हैं, उसमें से मखाना बोर्ड को लेकर कई गई घोषणा को सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सवाल यह पूछा जा रहा है कि क्या इस ऐलान से बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन को बिहार के विधानसभा चुनाव में कोई राजनीतिक फायदा होगा?

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा कि मखाने के प्रोडक्शन, प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन और इसकी मार्केटिंग करने के लिए मखाना बोर्ड की स्थापना की जाएगी। इसके बाद से ही मखाना बोर्ड को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है। बिहार और इसके बाहर रहने वाले लोग इस बात को जानना चाहते हैं कि आखिर बिहार के लिए मखाना बोर्ड का ऐलान किए जाने का क्या मतलब है?

आइए, इस बारे में कुछ जानते-समझते हैं।

पिछले कुछ सालों में मखाना या फॉक्स नट एक सुपर फूड के रूप में काफी पॉपुलर हुआ है। सोशल मीडिया पर आपने कई तरह की रील देखी होंगी जिसमें मखाने के बारे में बताया गया है कि यह कितना फायदेमंद है। इसे लेकर यूट्यूब पर भी कई वीडियो हैं। मखाने को स्नैक के रूप में भी काफी पसंद किया जाता है।

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मखाना प्रिकली वॉटर लिली या गॉर्डन प्लांट (Euryale ferox) का सूखा हुआ खाने वाला बीज है। यह पौधा दक्षिण और पूर्वी एशिया में मीठे पानी के तालाब में भी उगाया जाता है। इसमें बैंगनी और सफेद फूल होते हैं और इसकी गोल, कांटेदार पत्तियां 1 मीटर से भी ज्यादा चौड़ी होती हैं।

बिहार के मिथिलांचल में बड़े पैमाने पर मखाने का उत्पादन होता है। बिहार से मखाना देश के कई इलाकों में जाता है। मिथिलांचल के मखाने को जीआई टैग भी मिल चुका है। इसके बाद मखाने की मांग काफी बढ़ गई है। हालांकि लो प्रोडक्टिविटी, फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स का कम होना और अच्छी मार्केटिंग चेन ना होने की वजह से घरेलू और इंटरनेशनल मार्केट में मखाने की जिस पैमाने पर मांग है, बिहार उस मांग को पूरा नहीं कर पा रहा है।

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भारत में मखाने के कुल उत्पादन का लगभग 90% बिहार में होता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की 2020 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में 15 हजार हेक्टेयर जमीन पर मखाने की खेती होती है, जिससे लगभग 10,000 टन मखाना (पॉप्ड फॉर्म में) तैयार होता है।

मखाना उत्तरी और पूर्वी बिहार के नौ जिलों- दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, सुपौल, अररिया, किशनगंज और सीतामढ़ी में होता है। ये सभी जिले मिथिलांचल इलाके में आते हैं। इनमें से भी चार जिले (दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया और कटिहार) बिहार में होने वाले कुल मखाना उत्पादन का 80% पैदा करते हैं। बिहार के बाहर मखाने की खेती असम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और ओडिशा के साथ-साथ नेपाल, बांग्लादेश, चीन, जापान और कोरिया में भी की जाती है।

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मखाना लंबे वक्त से हिंदू धर्म के अनुष्ठानों का हिस्सा रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह अपने पौष्टिक गुणों के कारण लोगों की प्लेट तक पहुंच गया है। मखाने को कम वसा (low-fat) वाला, पोषक तत्वों से भरपूर और एक बेहतरीन हेल्दी स्नैक माना जाता है।

बिहार भारत में मखाने का सबसे बड़ा उत्पादक जरूर है लेकिन वह इसके बढ़ते बाजार का पूरा फायदा नहीं उठा पा रहा है। इसका बड़ा उदाहरण यह है कि भारत में मखाने के सबसे बड़े निर्यातक पंजाब और असम हैं जबकि पंजाब में तो मखाने की खेती तक नहीं होती। इसके पीछे तीन बड़ी वजहें हैं। बिहार में फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री विकसित नहीं हुई है। इसके अलावा बिहार के किसी भी हवाई अड्डे पर कार्गो की सुविधा नहीं है और इस वजह से निर्यात में मुश्किल आती है।

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बिहार के एक सीनियर ब्यूरोक्रेट ने नाम न छापने की शर्त पर द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “बिहार अपने मखाने को राज्य के बाहर एफपीयू (फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स) को सस्ते दामों पर कच्चे माल के रूप में बेच देता है। ये एफपीयू मखाने में स्वाद और पैकिंग करके इसे महंगे दामों पर बेचती हैं।” इसके अलावा बिहार में मखाने का बाजार असंगठित है और इस वजह से किसान और राज्य सरकार को इसका फायदा नहीं मिल पाता। इस वजह से ही मखाने की खेती करने वालों को बाजार में मखाने की तुलना में इसकी बहुत कम कीमत मिलती है।

मखाने की खेती बहुत मेहनत वाली होती है इससे इसकी लागत बढ़ जाती है। मखाने के बीजों को तालाबों या एक फुट गहरे पानी में बोया जाता है और इसकी कटाई करना मुश्किल होता है। मखाना सुखाने, भूनने और पॉपिंग की प्रक्रिया भी हाथ से ही की जाती है।

सीधी बात यही है कि बिहार में मखाने की बड़ी पैदावार होने के बावजूद प्रोसेसिंग और मार्केटिंग बेहतर न होने की वजह से किसान और राज्य सरकार को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है। अगर बिहार की सरकार फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स (FPUs) और एक्सपोर्ट की सुविधाओं को विकसित करे तो इससे दोनों को फायदा होगा।

पिछले साल बिहार सरकार ने केंद्र से मखाने के लिए एमएसपी की मांग की थी। मखाने की खेती और कटाई का काम मल्लाह (मछुआरे और नाविक) करते हैं और यह समुदाय काफी गरीब है। बिहार की आबादी में मल्लाहों की हिस्सेदारी सिर्फ़ 2.6% है। पिछले कुछ सालों में तमाम राजनीतिक दल उनका वोट हासिल करने की कोशिश करते रहे हैं। यह बेहद महत्वपूर्ण है कि बिहार में करीब 10 लाख परिवार मखाने की खेती और प्रोसेसिंग से जुड़े हुए हैं। इसलिए यह एक बड़ा वोट बैंक भी हैं।

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Illegal Indian Immigrants in America: डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनते ही सबसे पहले और बड़ी चिंता यही शुरू हुई थी कि वहां रह रहे अवैध अप्रवासियों का क्या होगा? क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप चुनाव अभियान के दौरान अवैध अप्रवासियों के मुद्दे पर काफी मुखर रहे थे। अब ट्रंप ने कामकाज संभालते ही अवैध अप्रवासियों को डिपोर्ट करना शुरू कर दिया है। मतलब अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे लोगों को वापस उनके मुल्क भेजने का काम शुरू हो गया है। इसे लेकर भारत में काफी चिंता और सवाल हैं।

अवैध भारतीय अप्रवासियों को लेकर वहां से एक फ्लाइट भी वहां से रवाना हो चुकी है। इसके अलावा ग्वाटेमाला, पेरू और होंडुरास के अप्रवासियों को भी उनके मुल्क भेजा जा चुका है। यह माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में ट्रंप का यह अभियान और तेज होगा। यह मुद्दा भारत के लिए ज्यादा बड़ा इसलिए है क्योंकि अमेरिका के भारत के साथ अच्छे रिश्ते हैं और बड़ी संख्या में भारतीय अप्रवासी वहां रह रहे हैं।

तो क्या आने वाले दिनों में अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर भारत और अमेरिका के रिश्तों में बदलाव देखने को मिलेंगे? हालांकि भारत की ओर से विदेश मंत्री एस. जयशंकर कह चुके हैं कि अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे भारतीयों को वापस लेने के लिए हम तैयार हैं।

ट्रंप ने अमेरिका से अवैध भारतीय अप्रवासियों को भेजा वापस, पहली फ्लाइट दिल्ली के लिए रवाना

ट्रंप के सत्ता में आते ही इमिग्रेशन एंड कस्टम एनफोर्समेंट (ICE) की टीम लगातार छापेमारी कर लोगों को पड़ककर उनके मुल्क भेज रही है।

अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे अप्रवासियों के बीच डर बहुत ज्यादा है। उन्हें हर पल इस बात का डर रहता है कि उन्हें कभी भी वहां की कानून एजेंसियां पकड़ सकती हैं और वापस उनके मुल्क भेज सकती हैं। ऐसा अनुमान है कि अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीय अप्रवासियों की संख्या 7.25 लाख हो गई है। यह मैक्सिको और अल साल्वाडोर के बाद अवैध रूप से अमेरिका में रह रहे अप्रवासियों की तीसरी सबसे बड़ी आबादी है।

माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 तक, अमेरिका में अनुमानित 11 मिलियन अवैध अप्रवासियों में से लगभग 5,53,000 (5%) भारत से थे। ट्रंप के प्रशासन ने शुरुआत में कुल 15 लाख अवैध अप्रवासियों की लिस्ट तैयार की है और इसमें से 18 हजार भारतीय हैं।

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अमेरिका में अवैध रूप से जाने वाले भारतीयों की संख्या पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है। विशेषकर हरियाणा और पंजाब से बड़ी संख्या में युवा ऐसे हैं जो डंकी रूट के जरिए अमेरिका जाते हैं। डंकी रूट का रास्ता ऐसे लोग अपनाते हैं जो अच्छी एजुकेशन ना होने, अच्छी इंग्लिश ना बोल पाने के कारण या और भी कई वजहों से अमेरिका का वीजा हासिल नहीं कर पाते। इसके लिए वह बहुत बड़ा रिस्क भी लेते हैं लेकिन फिर भी वह अमेरिका जाना चाहते हैं क्योंकि ऐसे लोगों का अमेरिका आने का मकसद ज्यादा पैसे कमाकर अपने घर भेजना होता है। ऐसे लोगों का सपना होता है कि वे किसी भी तरह अमेरिका के पक्के नागरिक बन जाएं यानी वहां की सिटीजनशिप हासिल कर लें।

पंजाब और हरियाणा में ऐसे कई युवाओं की कहानी सामने आ चुकी है जो डंकी रूट के जरिए अपने पसंदीदा देश पहुंचने के चक्कर में लाखों रुपए गंवाने के साथ ही कीमती वक्त का भी नुकसान कर चुके हैं।

भारत ने इस मामले में सहयोग करने वाला रुख दिखाया है और उसे ऐसी उम्मीद है कि अमेरिका भी भारतीय नागरिकों को अमेरिका में रहने के लिए H-1B वीजा या स्टूडेंट वीजा के मामले में बेहतर रुख अपनाएगा।

भारत इस बात को बेहतर ढंग से जानता है कि डोनाल्ड ट्रंप के एजेंडे में अवैध अप्रवासियों का मुद्दा सबसे ऊपर है और इसलिए इसे लेकर इस मामले में अमेरिका के साथ तालमेल बैठाना ही होगा क्योंकि अमेरिका में ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के नेता ऐसा मानते हैं कि उनके मुल्क में बिगड़ रही कानून-व्यवस्था की बड़ी वजह यहां अवैध रूप से रह रहे लोग ही हैं।

यहां इस बात को भी समझना जरूरी होगा की भारत में ऐसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जो किसी भी सूरत में अमेरिका जाना चाहते हैं। ऐसे लोग टूरिज्म, बिजनेस और एजुकेशन के मामले में वीजा लेकर अमेरिका जाना चाहते हैं।

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अमेरिकी मीडिया में आई रिपोर्ट्स से पता चलता है कि ICE के अफसरों को अवैध अप्रवासियों को पकड़ने के लिए रोजाना टारगेट दिया गया है और इस वजह से अवैध अप्रवासियों में इस बात का डर पैदा हो गया है कि कहीं उन्हें उनके ऑफिस या फिर घर से हिरासत में ना ले लिया जाए। बड़ी संख्या में लोग ऐसे भी हैं जो डरकर और चुप-चाप रहने को मजबूर हैं।

भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता उन छात्रों और प्रोफेशनल्स को लेकर है, जो अमेरिका में पढ़ाई और काम करने जाते हैं। मई 2024 तक, अमेरिका में लगभग 3,51,000 भारतीय छात्र थे, जिनमें से ज्यादातर मास्टर डिग्री के लिए STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित) में पढ़ाई कर रहे थे। यह आंकड़ा भारत के विदेश मंत्रालय ने ही दिया था।

अक्टूबर, 2022 से सितंबर 2023 के बीच, अमेरिका द्वारा जारी किए गए लगभग 4 लाख H-1B वीजा में से 72% भारतीयों को मिले। इसी दौरान अमेरिका में भारत की चार बड़ी आईटी कंपनियों- इंफोसिस, टीसीएस, एचसीएल और विप्रो को लगभग 20,000 कर्मचारियों के लिए H-1B वीजा की मंजूरी मिली।

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अमेरिका में रह रहे भारतीयों के लिहाज से एक बात अहम है कि छात्र (F श्रेणी) और स्किल्ड प्रोफेशनल्स (H-1B) दोनों ही अमेरिका की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देते हैं। भारत की ओर से इस बात को अमेरिका के सामने रखा गया है।

डोनाल्ड ट्रंप H-1B वीजा कार्यक्रम का समर्थन करते रहे हैं। चुनाव जीतने के बाद पिछले साल दिसंबर में उन्होंने कहा था कि वे H-1B के पैरोकार हैं और वीजा के पक्ष में रहे हैं। इसके बाद जनवरी में भी उन्होंने कहा था कि अमेरिका को “बेहद योग्य” और “महान” लोगों की जरूरत है, और वीजा कार्यक्रम के जरिये ही हमें ऐसे लोग मिलते हैं।

कुल मिलाकर भारत अमेरिकी इमिग्रेशन पॉलिसी में हो रहे बदलावों पर नजर रखेगा और इसे किस हद तक स्वीकार करेगा, ये भी आने वाले दिनों में और साफ होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 फरवरी से दो दिन के लिए अमेरिका दौरे पर जाएंगे। इस दौरान वह ट्रंप से मुलाकात करेंगे और हो सकता है इस दौरान दोनों नेताओं के बीच व्यापार, रक्षा जैसे अहम मुद्दों के साथ ही इस मुद्दे पर भी बातचीत हो।

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Fact Check: कन्नड़ बिग बॉस फेम तुकाली संतोष का वीडियो गलत दावे के साथ महाकुंभ से जोड़कर किया वायरल

लाइटहाउस जर्नलिज्म को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर व्यापक रूप से शेयर किया जा रहा एक वीडियो मिला। जिसमें दावा किया गया कि प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ के दौरान ट्रैफिक में फंसे लोग रो रहे हैं।

जांच के दौरान हमने पाया कि वायरल दावा भ्रामक है। शेयर किए गए वीडियो में कन्नड़ बिग बॉस फेम तुकाली संतोष और उनकी पत्नी दिखाई दे रहे हैं।

इंस्टाग्राम यूजर रवींद्र राजू ने भ्रामक दावे के साथ वीडियो शेयर किया।

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अन्य यूजर भी इसी दावे के साथ वीडियो शेयर कर रहे हैं।

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उसी यूजर ने अपने पेज पर फिर से वीडियो शेयर किया।

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हमने वीडियो से प्राप्त कीफ्रेम पर गूगल रिवर्स इमेज सर्च चलाकर जांच शुरू की। हमने वीडियो पर ‘सुमन टीवी कन्नड़’ का वॉटरमार्क भी देखा।

हमें इंस्टाग्राम पर अपलोड किया गया एक वीडियो मिला, जिसमें कैप्शन में बताया गया था कि यह वीडियो तुकाली संतोष का है, जिसने भीड़ में एक कार को टक्कर मार दी थी।

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हमें TV9 कन्नड़ पर भी यह वीडियो मिला।

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हमें एक सप्ताह पहले अपलोड किया गया सुमन टीवी कन्नड़ पर भी यही वीडियो मिला।

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इस वीडियो को भोजपुरी स्टार पवन सिंह और भोजपुरी अभिनेता निर्भय प्रताप सिंह के मुद्दे से भी गलत तरीके से जोड़ा जा रहा था।

निष्कर्ष: कन्नड़ बिग बॉस फेम तुकाली संतोष और उनकी पत्नी मानसा संतोष का भीड़ से घिरा वीडियो गलत दावों से महाकुंभ 2025 से जोड़ा जा रहा है। वायरल दावा भ्रामक है।

Fact Check: झारखंड में पुलिस लाठीचार्ज के वीडियो को महाकुंभ का बताकर भ्रामक दावों के साथ किया शेयर 

लाइटहाउस जर्नलिज्म को सोशल मीडिया पर एक वीडियो मिला, जिसमें पुलिस कुछ लोगों की पिटाई करती दिख रही है। वीडियो के साथ दावा किया गया कि वीडियो में यूपी पुलिस महाकुंभ में शाही स्नान के लिए आए श्रद्धालुओं के साथ दुर्व्यवहार कर रही है।

जांच के दौरान, हमने पाया कि वीडियो प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ से संबंधित नहीं है, बल्कि यह पुराना है और झारखंड का है।

एक्स यूजर कमांडो अरुण गौतम ने भ्रामक दावे के साथ वीडियो शेयर किया।

महाकुंभ स्नान मे स्नानार्थी का इस तरह उत्तर प्रदेश पुलिस स्वागत करती है l ये है उत्तर प्रदेश सरकार का महाकुंभ व्यवस्था **गुंडाराज ‘ @ColRohitChaudry @devendrayadvinc @INCIndia @INCMaharashtra @INCMP @Jairam_Ramesh @jitupatwari @kcvenugopalmp @kharge @priyankagandhi @Pawankhera… pic.twitter.com/tmuu0pKu7I

अन्य यूजर भी इसी दावे के साथ वीडियो शेयर कर रहे हैं।

महाकुंभ स्नान मे स्नानार्थी का इस तरह उत्तर प्रदेश पुलिस स्वागत करती है l ये है उत्तर प्रदेश सरकार का महाकुंभ व्यवस्था * @Uppolice pic.twitter.com/Ud7gx07TKJ

महाकुंभ स्नान मे स्नानार्थी का इस तरह उत्तर प्रदेश पुलिस स्वागत करती है l ये है उत्तर प्रदेश सरकार का महाकुंभ व्यवस्था **गुंडाराज ‘ pic.twitter.com/lti71X5dUe

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हमने वीडियो InVid टूल में अपलोड करके जांच की शुरुआत की और उससे मिले कीफ्रेम पर रिवर्स इमेज सर्च चलाया।

हमें 2 जनवरी, 2025 को बीजेपी नेता और राज्यसभा सांसद दीपक प्रकाश द्वारा X पर अपलोड किया गया वही वीडियो मिला।

देखिए, झारखंड में इंसाफ़ मांगने पर क्या मिलता है! pic.twitter.com/xksFMSeTKb

कैप्शन से पता चलता है कि वीडियो झारखंड का है।

हमें bhaskar.com पर एक महीने पहले अपलोड की गई एक न्यूज़ रिपोर्ट में वीडियो के कुछ दृश्य मिले।

हेडलाइन से पता चलता है कि एक युवक का शव नाले में मिला और फिर परिजनों ने विरोध किया और पुलिस को भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठियों का इस्तेमाल करना पड़ा। यह घटना झारखंड के धनबाद में हुई।

हमें ईटीवी भारत की वेबसाइट पर भी यही दृश्य मिले।

हमें इस घटना के बारे में कई अन्य समाचार रिपोर्ट मिलीं।

हमें धनबाद के इस मामले पर एक वीडियो रिपोर्ट भी मिली।

निष्कर्ष: झारखंड के धनबाद में नाले में युवक का शव मिलने के बाद विरोध प्रदर्शन और पुलिस द्वारा लाठीचार्ज का वीडियो प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ से गलत दावों के साथ जोड़कर शेयर किया जा रहा है। वायरल दावा फर्जी है।

Karnataka Congress: CM सिद्धारमैया के सलाहकार ने क्यों दिया इस्तीफा, कर्नाटक कांग्रेस में चल रही कलह कब खत्म होगी?

BR Patil Resignation: कांग्रेस के लिए कर्नाटक में क्या कोई नई मुसीबत खड़ी हो सकती है? ताजा घटनाक्रम में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पॉलीटिकल एडवाइजर बीआर पाटिल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। हैरान करने वाली बात यह है कि पाटिल को सिद्धारमैया का कट्टर समर्थक माना जाता है। बताना होगा कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच चल रही लड़ाई पूरी तरह जगजाहिर है।

कर्नाटक कांग्रेस में दो बड़े नेताओं (सिद्धारमैया और शिवकुमार) के बीच चल रही लड़ाई पिछले महीने भी उजागर हुई थी जब सिद्धारमैया के समर्थक नेताओं ने कुछ डिनर मीटिंग्स की थी। याद दिलाना होगा कि साल 2023 में जब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनी थी तो रोटेशनल फॉर्मूले की बात कही गई थी।

इस रोटेशनल फॉर्मूले के तहत यह दावा किया गया था कि ढाई साल तक सिद्धारमैया मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे और उसके बाद डीके शिवाकुमार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन सिद्धारमैया इस तरह के किसी भी फॉर्मूले को बार-बार नकारते रहे हैं।

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हालांकि कर्नाटक कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पाटिल के इस्तीफे का सिद्धारमैया-डीके शिवकुमार की लड़ाई से लेना-देना नहीं है। लेकिन पाटिल का इस्तीफा कमजोर घटनाक्रम नहीं है।

बीआर पाटिल कर्नाटक कांग्रेस के बड़े नेता हैं। वह कलबुर्गी जिले की अलंद सीट से चार बार विधायक रहे हैं। बताया जाता है कि वह इस बात से नाराज थे कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया उन्हें जरूरत के हिसाब से अहमियत नहीं दे रहे हैं। कलबुर्गी इलाके में डीके शिवकुमार का प्रभाव कम है। यह इलाका कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का सियासी किला है।

यह भी कहा जाता है कि बीआर पाटिल के मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रियांक खड़गे के साथ अच्छे राजनीतिक ताल्लुकात नहीं हैं।

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बीआर पाटिल के इस्तीफे की खबर जैसे ही कर्नाटक की राजनीति में जोर-शोर से चली तो इसे लेकर काफी हलचल पैदा हुई। जब पत्रकारों ने सिद्धारमैया से इस संबंध में सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि वह पाटिल से बात करेंगे। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, प्रियांक खड़गे का कलबुर्गी में अच्छा असर है और पाटिल लगातार इस बात को महसूस कर रहे थे कि मुख्यमंत्री का करीबी होने के बावजूद उन्हें दरकिनार किया जा रहा है।

राज्य में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तो इस बात की संभावना थी कि पाटिल मंत्री बनेंगे लेकिन कलबुर्गी जिले से प्रियांक खड़गे और एक और विधायक शरण प्रकाश पाटिल को मंत्री बनने का मौका मिला। हालांकि बाद में सिद्धारमैया ने पाटिल को मनाने की कोशिश की और उन्हें अपना पॉलीटिकल एडवाइजर बनाया। लेकिन सूत्रों का ऐसा कहना है कि पाटिल सरकार में उनकी सीमित भूमिका की वजह से नाराज थे।

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कुल मिलाकर पाटिल का इस्तीफा कर्नाटक कांग्रेस के अंदर चल रही उथल-पुथल को दिखाता है। पाटिल ने पिछले महीने कर्नाटक के विधानसभा परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने धरना दिया था। यह धरना उन्होंने किसानों के लिए एमएसपी को गारंटी देने वाले कानून को लागू करने की मांग को लेकर दिया था।

पाटिल का कहना है कि उन्होंने पहले ही इस्तीफा देने का फैसला कर लिया था और वह कर्नाटक विधानमंडल (प्रिवेंशन ऑफ डिसक्वालीफिकेशन एक्ट) के पास होने का इंतजार कर रहे थे। यह कानून मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के सलाहकारों को विधायक के रूप में अयोग्य ठहराए जाने से बचाने के लिए बनाया गया है।

पाटिल ने कहा कि वह अपना इस्तीफा वापस नहीं लेंगे और ‘कुछ समस्याओं की वजह’ से इस्तीफा दे रहे हैं। कांग्रेस नेता ने कहा कि अपने क्षेत्र में विकास कार्यों को लेकर जो उनकी शिकायत थी, उन्होंने इसे कांग्रेस विधायकों की बैठक में उठाया था लेकिन कुछ नहीं हुआ और इस वजह से उन्होंंने इस्तीफा दे दिया।

जुलाई, 2023 में कांग्रेस की सरकार बनने के कुछ हफ्ते बाद पाटिल ने सीएम सिद्धारमैया को पत्र लिखा था और कुछ मंत्रियों और विधायकों के बर्ताव को लेकर शिकायत की थी। तब इसे लेकर काफी विवाद हुआ था।

मखाना बोर्ड के ऐलान से क्या NDA को बिहार विधानसभा चुनाव में कोई फायदा होगा? क्लिक कर जानिए।