Delhi Assembly Elections 2025: दिल्ली में केजरीवाल के साथ क्यों आए अखिलेश यादव, क्या टूट जाएगी ‘यूपी के दो लड़कों’ की जोड़ी?

Akhilesh Yadav Arvind Kejriwal Delhi Election 2025: दिल्ली के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव खुलकर आम आदमी पार्टी के लिए चुनाव मैदान में उतरे। उन्होंने AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए रोड शो तो किया ही, यह भी कहा कि दिल्ली में AAP की सरकार बन रही है।

अखिलेश यादव के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के लिए प्रचार करने से सवाल यह खड़ा हो रहा है कि क्या यूपी के दो लड़कों की जोड़ी अब टूट जाएगी? क्या ‘यूपी के दो लड़के’ बिछुड़ जाएंगे?

याद दिलाना होगा कि अखिलेश यादव और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बीजेपी से मुकाबला करने के लिए 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और तब इसे यूपी के दो लड़कों की जोड़ी कहा गया था। हालांकि यह जोड़ी 2022 के विधानसभा चुनाव में टूट गई थी, जब कांग्रेस और सपा के बीच उत्तर प्रदेश में गठबंधन नहीं हो पाया था लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में फिर से ‘यूपी के दो लड़के’ साथ आए थे और इसका फायदा इन दोनों राजनीतिक दलों को मिला था।

2019 के मुकाबले 2024 में सपा और कांग्रेस दोनों ने ही अपने प्रदर्शन में जबरदस्त सुधार किया था। गठबंधन में चुनाव लड़ते हुए सपा को 37 और कांग्रेस को 6 सीटों पर जीत मिली थी। इससे बीजेपी और एनडीए को बड़ा राजनीतिक नुकसान हुआ था।

लोकसभा चुनाव के बाद अखिलेश हरियाणा के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से कुछ सीटें चाहते थे लेकिन कांग्रेस ने उन्हें कोई सीट नहीं थी। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव महा विकास अघाड़ी के साथ मिलकर 12 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते थे। इसके लिए सपा की महाराष्ट्र इकाई ने कई बार कांग्रेस से गुहार लगाई थी लेकिन कांग्रेस तैयार नहीं हुई थी। तब अखिलेश यादव खुद महाराष्ट्र गए थे और कुछ सीटों पर पार्टी के उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार किया था। सपा ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा था और दो सीटों पर जीत दर्ज की थी।

शायद हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव में कांग्रेस के द्वारा हिस्सेदारी और भागीदारी न दिए जाने की टीस अखिलेश यादव के मन में जरूर है। अखिलेश को यह भी याद होगा कि मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें सीट बंटवारे में जगह नहीं दी थी और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ‘अखिलेश-वखिलेश’ कहा था।

सबसे बड़ी बात यह है कि यह दोनों ही राजनीतिक दल- सपा और कांग्रेस इंडिया गठबंधन के प्रमुख दल हैं।

हरियाणा, महाराष्ट्र के बाद बात जब दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार की आई तो सपा और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस खुलकर आम आदमी पार्टी के पक्ष में आ गए और यह निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए बेहद अपमानजनक था।

लोकसभा चुनाव 2024 में राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने इंडिया गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए उत्तर प्रदेश में मिलकर चुनाव प्रचार किया था लेकिन बुधवार का दिन दिल्ली और हिंदुस्तान की सियासत में इसलिए याद रखा जाएगा क्योंकि अखिलेश यादव कांग्रेस को एक तरह से मुंह चिढ़ा रहे थे। दिल्ली में जब अखिलेश अरविंद केजरीवाल के साथ किराड़ी में रोड शो कर रहे थे तो वहां से कुछ किलोमीटर दूर ही बादली विधानसभा क्षेत्र में राहुल गांधी एक जनसभा में अरविंद केजरीवाल पर हमला बोल रहे थे।

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वैसे भी दिल्ली विधानसभा चुनाव ने आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की सियासी दोस्ती को दुश्मनी में बदल दिया है। बीते दिनों जब राहुल गांधी ने केजरीवाल की ईमानदारी, उनके कामकाज पर सवाल उठाए और शराब घोटाले को लेकर उन्हें कटघरे में खड़ा किया तो अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम ने भी राहुल को इसका जोरदार जवाब दिया। इससे पता चलता है कि इन दोनों नेताओं के बीच सियासी रिश्ते बेहद तल्ख हो चुके हैं।

अब हम फिर से अपने वही सवाल पर वापस आते हैं कि क्या दिल्ली के चुनाव नतीजों के बाद यूपी के दो लड़कों की जोड़ी टूट जाएगी?

सपा का दिल्ली की राजनीति में कोई आधार नहीं है। सपा का मुख्य आधार उत्तर प्रदेश में ही है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि आखिर अखिलेश अरविंद केजरीवाल के लिए कांग्रेस को नाराज करने के लिए क्यों तैयार हो गए? क्योंकि यह लगभग तय है कि वह 2027 की शुरुआत में होने वाला उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव कांग्रेस के साथ ही मिलकर लड़ेंगे और उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी का कोई जनाधार नहीं है। इसके बाद भी अखिलेश यादव ने अगर यह कदम उठाया है तो निश्चित रूप से उन्होंने काफी सोच-समझकर ही ऐसा किया होगा।

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टीवी चैनलों से लेकर सड़क-चौराहों तक होने वाली राजनीतिक बहसों में इसे लेकर भी चर्चा खूब होती है कि इंडिया गठबंधन में शामिल तमाम दल कांग्रेस को बहुत ज्यादा हिस्सेदारी नहीं देना चाहते। ऐसे दलों में समाजवादी पार्टी के अलावा, बिहार का राष्ट्रीय जनता दल, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस आदि शामिल हैं। ममता बनर्जी तो पश्चिम बंगाल के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन न करके अकेले ही चुनाव लड़ती रही हैं। शायद इन दलों को डर है कि कांग्रेस को ज्यादा हिस्सेदारी देने से राज्य में उनकी ताकत घट सकती है।

अब आते हैं दिल्ली पर। दिल्ली में पिछले दो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस शून्य पर आउट हुई है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा हुआ था लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र की हार ने एक बार फिर पार्टी के कामकाज और उसके नेतृत्व पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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दिल्ली में चुनावी मुकाबला मुख्य रूप से बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच दिखाई दे रहा है। अगर कांग्रेस इस चुनाव में भी दिल्ली में खाता नहीं खोल पाई तो वह याद जरूर रखेगी कि अखिलेश यादव ने कांग्रेस का साथ देने या दिल्ली के चुनाव से दूर रहने के बजाय अरविंद केजरीवाल का साथ दिया था। ऐसे में ‘यूपी के दो लड़के’ दिल्ली चुनाव के बाद क्या साथ रहेंगे और रहेंगे तो कितने ‘मन’ से रहेंगे, इसे लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

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