गाली, विवाद और राजनीति, लोकतंत्र कैसे बन गया ‘ओटीटी सीरीज’; सुधीश पचौरी का तीखा विश्लेषण

Satirist Sudhish Pachauri's column Baakhabar, व्यंग्यकार सुधीश पचौरी का कॉलम बाख़बर

वह एक दृश्य और चैनलों द्वारा उसे एक ‘गेम चेंजर’ दृश्य बताकर दिखाते रहना। एक ओर पुतिन, दूसरी ओर शी जिनपिंग और बीच में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। तीनों किसी बात पर एक साथ हंसते हुए। प्रधानमंत्री की एक तर्जनी कुछ कहती हुई… पुतिन के चेहरे पर हंसी और शी जिनपिंग का अक्सर भावहीन और सख्त-सा चेहरा कुछ मुस्कुराता हुआ। और अपने चैनल ऐसे कि पहले ‘मेरी दोस्ती मेरा प्यार’ वाली इस निराली तस्वीर को एक कोने में बार-बार दिखाते, फिर इसके ही समांतर कहीं डोनाल्ड ट्रंप को ‘शुल्क पर शुल्क’ लगाने की घोषणा करते दिखाते। फिर कुछ अमेरिकी, कुछ देसी विशेषज्ञों से कहलवाते कि ‘अंकल सैम’ अब भी उसी भारत की कल्पना करते हैं, जब यह अंग्रेजों का उपनिवेश था… यह मोदी का भारत है… यह किसी की धौंसपट्टी में नहीं आने वाला। उन्होंने साफ कर दिया कि ‘सितारों से आगे जहां और भी हैं..!

बहसों में कोई कहता कि यह ‘अनेक ध्रुवीय दुनिया’ की शुरुआत है। कोई बताता कि यह दुनिया की आठ अरब जनता में से करीब डेढ़ अरब जनता की ताकत है, जो एक साथ बोल रही है। कोई कहता ‘अंकल सैम’ के सलाहकर उन्हें गलत सलाह देते हैं। कोई चुटकी लेता कि ‘अंकल सैम’ का फोन मोदी को कई बार आया, लेकिन मोदी ने फोन तक नहीं उठाया। इस तरह बिना कहे बहुत कुछ कह दिया। एक ने दो टूक कहा कि अगर ‘अंकल सैम’ ने ऐसा कराया होता तो वे इतना ‘शुल्क’ क्यों लगाते। जो हो, एक दृश्य ने चाहे कुछ ही देर के लिए सही, दुनिया की राजनीति के मायने बदल दिए। इसे देख ‘अंकल सैम’ के एक सलाहकार इतने खफा हुए कि सीधे बेमानी बातें कहने लगे।

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इधर भारत की वैश्विक ‘धज’ बनती रही। फिर एक दिन गाली प्रकरण सामने आ गया। बहसों में ‘वोट चोर’ नारा लगाने वालों के प्रवक्ता कहने लगते कि हम राजनीति में ऐसी हर गाली को अवांछित और दंडनीय मानते हैं… आप उसे सजा दें, लेकिन इस गाली संस्कृति की शुरुआत आपने ही की थी। आपके नेता ने हमारे नेता को तब ‘ये कहा’ और वो कहा। फिर कहते कि ‘गाली’ देने वाला आपका ही था। फिर कहते कि आप उसे सजा दें… हम कब मना करते हैं… बिहार है, इसलिए गाली को मुद्दा बना रहा है! बहरहाल, सत्तासीनों ने गाली का ‘प्रतिवाद’ तो किया, लेकिन देर से किया और ‘बिहार बंद’ के साथ वह निपट गया।

इन दिनों तो ऐसे ‘अपमान’ का ‘प्रतिवाद’ भी उसी तरह आता है, जैसे ‘सांप तो निकल जाए और आप लकीर पीटते रहें’! इन दिनों, ‘गालियों की संस्कृति’ भी कुछ इसी तरह से आती। एक गाली देता है तो दूसरे का दिल भी गाली देने को मचलने लगता है… फिर तीसरा, चौथा, पांचवां… और पचासवां भी गाली देने लगता है। गालियां भी इन दिनों ‘ओटीटी सीरीज’ की तरह आती हैं। अब तो गाली ही ताली और कव्वाली है। किसी का विरोध करना है तो आक्रोश में यही भाषा और उससे जिन्हें आपत्ति होती है, तो उसके विरोध में भी वही भाषा। ऐसा लगता है कि बिना आपत्तिजनक भाषा के लोग अपनी बात कहने में सक्षम ही नहीं रहे।

हर दिन एक नया बवाल, कहीं टीका तो कहीं वक्फ, धर्मनिरपेक्षता से लेकर कथा तक, राजनीति ने सबमें घुसपैठ की है

एक दिन एक बड़ी अदालत ने दिल्ली-दंगों के कुछ ‘आरोपितों’ को जमानत नहीं दी। हम सोचते रहे कि अब कोई नारा लगेगा, लेकिन अफसोस कि ऐसा बहुत कुछ अव्यक्त ही रह गया। एक दिन एक ‘सेकुलर संप्रदाय’ में ही झगड़ा हो गया।

ऊपर वाले सेकुलरों को आमंत्रित साहित्यकार की धर्मनिरपेक्षता में कुछ आपत्तिजनक नजर आया, इसलिए ‘साहित्य समारोह’ से ‘सेकुलर साहित्यकार’ को ‘प्रवेश निषेध’ कह दिया। यहां सब एक-दूसरे की ‘धर्मनिपक्षेता’ की नाप जोख करते रहते हैं कि कौन असली ‘सेकुलर है, कितना ‘सेकुलर’ है और कौन ‘नकली सेकुलर’ है। यह भी जानने की कोशिश करते हैं कि कब किसने धर्मनिरपेक्षता के बारे में क्या-क्या कहा है और कहां-कहां गड़बड़ की है।

बहरहाल, जीएसटी परिषद ने आम जनता पर तरस खाकर सारी ‘कर श्रेणियां’ हटा कर सिर्फ ‘कर के दो स्तर’ रहने दिए: एक पांच फीसद का, दूसरा अठारह फीसद का… बाकी दैनिक उपभोग की बीस-पच्चीस वस्तुएं, जैसे दूध, ब्रेड आदि कर मुक्त कर दी गई। एंकरों ने उड़ान भरी। बहसों में कुछ चहकते, तो कुछ बहकते नजर आए। एक कहे कि ये है सरकार की ओर से ‘दिवाली का तोहफा’ तो दूसरे कहे कि ये बिहार के चुनाव को जीतने का टोटका है।