Delhi AAP MLAs Resignation: दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग से ठीक पहले आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका तब लगा जब शुक्रवार को आठ विधायकों ने पार्टी को अलविदा कह दिया। दिल्ली में 5 फरवरी को वोटिंग होनी है और उससे 5 दिन पहले एक के बाद एक धड़ाधड़ सात विधायकों का इस्तीफा निश्चित रूप से राष्ट्रीय राजधानी के चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकता है। इन विधायकों के इस्तीफा देने का कितना असर चुनाव नतीजों पर होगा, इस पर बात करने से पहले यह जान लीजिए कि ये विधायक कौन हैं और ये पिछली बार किस सीट से चुनाव जीते थे।
इन विधायकों में मादीपुर से गिरीश सोनी, पालम से भावना गौड़, कस्तूरबा नगर से मदनलाल, त्रिलोकपुरी से रोहित महरौलिया, जनकपुरी से राजेश ऋषि, महरौली से नरेश यादव, आदर्श नगर से पवन शर्मा और बिजवासन से भूपिंदर सिंह जून का नाम शामिल है। इससे पहले भी कई नेता बीते महीनों में पार्टी छोड़ चुके हैं और राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल भी आम आदमी पार्टी के लिए सिरदर्द बन चुकी हैं।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी और इसके राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए यह चुनाव काफी मुश्किल माना जा रहा है। पिछले दो चुनाव में दिल्ली की राजनीति में लगभग एकतरफा जीत दर्ज करने वाले केजरीवाल इस चुनाव में बीजेपी के ताबड़तोड़ हमलों से परेशान दिखाई देते हैं। न सिर्फ बीजेपी बल्कि कांग्रेस भी उन पर पुरजोर ढंग से हमलावर है और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के सीधे निशाने पर केजरीवाल हैं।
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बीजेपी और कांग्रेस के धारदार हमलों का अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री आतिशी, पार्टी के तमाम बड़े नेता और सोशल मीडिया की टीम लगातार जवाब दे रही है और इसी दौरान वे चुनाव आयोग से भी जोर-आजमाइश कर रहे हैं। कुल मिलाकर इस वजह से राष्ट्रीय राजधानी में चुनावी मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है।
बीजेपी की ओर से चुनाव प्रचार की कमान खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संभाली हुई है। प्रधानमंत्री आम आदमी पार्टी की सरकार को आप-दा की सरकार बताते हुए 5 फरवरी को दिल्ली से इसकी विदाई करने की अपील कई बार चुनावी रैलियों के मंच से कर चुके हैं। इसके अलावा पूरी दिल्ली में लगे होर्डिंग्स के जरिए और सोशल मीडिया पर विज्ञापनों के जरिए भी बीजेपी ने यही नारा दिया है- अब और नहीं सहेंगे, बदल के रहेंगे।
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आम आदमी पार्टी की दिल्ली की राजनीति के बारे में एक बात बिल्कुल साफ है कि अरविंद केजरीवाल ही यहां पार्टी के सबसे बड़े चेहरे हैं। 70 सीटों पर टिकट तय करना यानी कि किस सीट से कौन उम्मीदवार होगा, सरकार में कौन मंत्री होगा, किस मंत्री के पास क्या विभाग होंगे, संगठन कैसे काम करेगा, यह सब कुछ अरविंद केजरीवाल ही तय करते हैं। इसलिए इस बार भी 2013, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव की तर्ज पर केजरीवाल ने ही उम्मीदवार तय किए।
अरविंद केजरीवाल इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि कथित आबकारी घोटाले को जिस तरह बीजेपी और फिर कांग्रेस ने मुद्दा बनाया, उनके सरकारी आवास ‘शीशमहल’ में हुए खर्च को मुद्दा बनाया गया, उससे इस बार के चुनाव में स्थिति पिछले दो चुनाव जैसी नहीं है। इसलिए इस चुनाव में उन्होंने बहुत समझदारी से, बहुत सतर्कता के साथ उम्मीदवारों का चयन किया और पिछले चुनावों में जीते कई नेताओं का टिकट काट दिया। इस्तीफा देने वाले यह सात विधायक भी टिकट कटने की वजह से नाराज थे।
चूंकि अरविंद केजरीवाल ही दिल्ली में आम आदमी पार्टी के सबसे बड़े चेहरे हैं इसलिए इन सभी नेताओं के विधायक बनने के पीछे केजरीवाल एक बड़ी वजह जरुर थे। इन सभी नेताओं को केजरीवाल ने ही टिकट दिया और जिताकर विधानसभा तक पहुंचाया।
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वोटिंग से ठीक पहले सात विधायकों का इस्तीफा देना एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम है और इन विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र में जरूर इसका कुछ हद तक असर देखने को मिलेगा। लेकिन क्यों ये भी आपको बताते हैं।
भले ही इन नेताओं के विधानसभा पहुंचने में केजरीवाल का बड़ा रोल रहा हो लेकिन फिर भी एक विधायक का अपने निर्वाचन क्षेत्र में कुछ ना कुछ असर जरूर होता है। इनमें से कुछ नेता तो दो बार विधायक रह चुके थे जबकि कस्तूरबा नगर से मदनलाल तीन बार विधायक का चुनाव जीत चुके थे। पालम से भावना गौड़, आदर्श नगर से पवन कुमार शर्मा, जनकपुरी से राजेश ऋषि, महरौली से नरेश यादव लगातार दो बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके थे। 10 साल तक किसी विधानसभा सीट से विधायक रहे नेता की जनता और समर्थकों के बीच पकड़ काफी मजबूत होती है।
चूंकि ये नेता लगातार जनता के बीच में सक्रिय रहे हैं और 2025 के चुनाव में उन्हें कहीं से भी यह उम्मीद नहीं थी कि पार्टी उनका टिकट काट देगी और वे चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे ऐसे में इन विधायकों ने अपने कार्यकाल में जितने लोगों की मदद की, काम करवाए उनके बीच में इनका आधार जरूर होगा और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इनके इस्तीफा देने से इन सात निर्वाचन क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन पर असर जरूर पड़ेगा। क्योंकि इनके अधिकतर समर्थक शायद अब आम आदमी पार्टी को वोट नहीं देंगे और इससे चुनाव नतीजों पर असर पड़ सकता है।
याद दिलाना होगा कि इससे पहले दिल्ली सरकार में परिवहन मंत्री रहे कैलाश गहलोत पार्टी छोड़कर चले गए थे। आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद और एक वक्त में अरविंद केजरीवाल के भरोसेमंद लोगों में शुमार स्वाति मालीवाल ने केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है।
दिल्ली सरकार के एक और पूर्व मंत्री राजेंद्र पाल गौतम पार्टी छोड़ चुके हैं और कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे हैं। राजकुमार आनंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री रहते वक्त सरकार में मंत्री थे, वह बीजेपी के टिकट पर पटेल नगर से चुनाव लड़ रहे हैं। छतरपुर के विधायक करतार सिंह तंवर ने आम आदमी पार्टी का साथ छोड़ दिया।
इतने नेताओं के लगातार इस्तीफा देने को कोई छोटी घटना नहीं कहा जा सकता और इन सभी के निर्वाचन क्षेत्रों में निश्चित रूप से आम आदमी पार्टी के लिए जीतना मुश्किल होगा।
साल 1998 से दिल्ली की सत्ता से बाहर बीजेपी पूरी ताकत लगा रही है कि किसी भी तरह अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को इस बार दिल्ली में सरकार बनाने से रोका जाए। इसके लिए पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और दिल्ली इकाई सहित तमाम प्रदेशों के मुख्यमंत्री और बड़े नेता दिल्ली की गलियों की खाक छान रहे हैं। बीजेपी की कोशिश है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार को सत्ता से विदा किया जाए। इसके अलावा कांग्रेस भी कुछ सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ रही है।
अब सवाल इस बात का है कि विधायकों के इस्तीफे का बीजेपी और कांग्रेस कितना फायदा उठा पाती हैं। जिस तरह का जबरदस्त और आक्रामक चुनाव प्रचार बीजेपी और कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ किया हुआ है, उससे आम आदमी पार्टी की मुश्किलों में इजाफा हुआ है। राजनीति में हवा का रुख बदलते हुए देर नहीं लगती और 7 विधायकों का इस्तीफा सहित कई बड़े नेताओं के पार्टी छोड़कर जाने के बाद केजरीवाल के लिए दिल्ली की सत्ता में वापसी करना चक्रव्यूह को भेदने जैसी चुनौती है। 8 फरवरी को पता चलेगा कि केजरीवाल इस चक्रव्यूह को भेद पाते हैं या नहीं?
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