Jagdeep Dhankhar Controversy: जगदीप धनखड़ को एक ऐसे उप राष्ट्रपति के रूप में जाना जाएगा जिनका अपने कार्यकाल में न्यायपालिका से टकराव होता रहा। वह विपक्ष के निशाने पर तो रहे ही न्यायपालिका को लेकर की गई टिप्पणियों को लेकर भी सुर्खियों में रहे। इससे पहले जब वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे तब भी ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी की सरकार के साथ उनका आमना-सामना होता रहा।
आइए, जानते-समझते हैं कि न्यायपालिका के साथ धनखड़ के रिश्ते कब-कब खराब हुए।
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साल 2022 में धनखड़ की टिप्पणी को लेकर सबसे पहले विवाद तब हुआ जब उन्होंने दिसंबर में राज्यसभा में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा National Judicial Appointments Commission (NJAC) कानून को रद्द करने के फैसले पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश संसद की संप्रभुता से समझौता है और जनादेश का अपमान है।
धनखड़ ने कहा था कि संसद “जनता के आदेश” की कस्टोडियन है और वह इस मुद्दे को हल करेगी। यह वह वक्त था जब विपक्ष राज्यसभा में संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज में सरकार की कथित दखलअंदाजी और न्यायपालिका के साथ टकराव को लेकर चर्चा करने की योजना बना रहा था।
उस दौरान केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि न्यायाधीशों को नियुक्त करने की कॉलेजियम प्रणाली जवाबदेह नहीं है और संविधान के खिलाफ है। उनकी इस टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई थी।
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जनवरी, 2023 में धनखड़ की टिप्पणी को लेकर एक बार फिर विवाद हुआ जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 1973 के केशवानंद भारती मामले का हवाला दिया। इस फैसले में कहा गया था कि संसद को संविधान में संशोधन करने का तो अधिकार है लेकिन इसके बेसिक स्ट्रक्चर में नहीं। ऑल इंडिया प्रीसाइडिंग ऑफिसर्स कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा था, ‘क्या हम एक लोकतांत्रिक मुल्क हैं?’
धनखड़ ने कहा था, ‘लोकतांत्रिक समाज का आधार जनता की सर्वोच्चता, जनता और संसद की संप्रभुता होती है। कार्यपालिका संसद की संप्रभुता पर निर्भर करती है। विधायिका और संसद तय करती है कि मुख्यमंत्री कौन होगा, प्रधानमंत्री कौन होगा। विधायिका के पास ही अंतिम शक्ति होती है। विधायिका ही तय करती है कि संस्थानों में कौन होगा।’
धनखड़ ने कहा था कि सभी संवैधानिक संस्थाओं- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को अपनी सीमाओं के अंदर रहकर काम करना जरूरी है।
मार्च, 2025 में जब दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में जली हुई नकदी मिली तो धनखड़ के बयान से एक बार फिर NJAC को लेकर बहस छिड़ गई। धनखड़ ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द नहीं किया होता तो हालात काफी अलग होते। बताना होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए NJAC एक्ट को खारिज कर दिया था।
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इस साल 22 अप्रैल को जब सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आया कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को 3 महीने के भीतर किसी बिल को मंजूरी देनी होगी तब भी धनखड़ ने बिना लाग-लपेट के इसके खिलाफ अपनी बात रखी। उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी में संविधान के 75 साल पूरे होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था, ‘संविधान में संसद से ऊपर किसी की कोई कल्पना नहीं है और चुने हुए जनप्रतिनिधि ही इस बात को तय करते हैं कि संविधान की विषय वस्तु क्या होगी?’
धनखड़ ने एक कार्यक्रम में राज्यसभा इंटर्न्स को संबोधित करते हुए कहा था, ‘भारत में हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां न्यायपालिका राष्ट्रपति को निर्देश दे। हमारे पास ऐसे जज हैं, जो कानून बनाएंगे (विधायिका का काम करेंगे), कार्यपालिका का काम करेंगे और एक सुपर संसद के रूप में काम करेंगे लेकिन उनकी कोई जवाबदेही नहीं होगी, क्योंकि देश का कानून उन पर लागू नहीं होता।’