BR Patil Resignation: कांग्रेस के लिए कर्नाटक में क्या कोई नई मुसीबत खड़ी हो सकती है? ताजा घटनाक्रम में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के पॉलीटिकल एडवाइजर बीआर पाटिल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। हैरान करने वाली बात यह है कि पाटिल को सिद्धारमैया का कट्टर समर्थक माना जाता है। बताना होगा कि कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच चल रही लड़ाई पूरी तरह जगजाहिर है।
कर्नाटक कांग्रेस में दो बड़े नेताओं (सिद्धारमैया और शिवकुमार) के बीच चल रही लड़ाई पिछले महीने भी उजागर हुई थी जब सिद्धारमैया के समर्थक नेताओं ने कुछ डिनर मीटिंग्स की थी। याद दिलाना होगा कि साल 2023 में जब कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनी थी तो रोटेशनल फॉर्मूले की बात कही गई थी।
इस रोटेशनल फॉर्मूले के तहत यह दावा किया गया था कि ढाई साल तक सिद्धारमैया मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालेंगे और उसके बाद डीके शिवाकुमार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन सिद्धारमैया इस तरह के किसी भी फॉर्मूले को बार-बार नकारते रहे हैं।
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हालांकि कर्नाटक कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि पाटिल के इस्तीफे का सिद्धारमैया-डीके शिवकुमार की लड़ाई से लेना-देना नहीं है। लेकिन पाटिल का इस्तीफा कमजोर घटनाक्रम नहीं है।
बीआर पाटिल कर्नाटक कांग्रेस के बड़े नेता हैं। वह कलबुर्गी जिले की अलंद सीट से चार बार विधायक रहे हैं। बताया जाता है कि वह इस बात से नाराज थे कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया उन्हें जरूरत के हिसाब से अहमियत नहीं दे रहे हैं। कलबुर्गी इलाके में डीके शिवकुमार का प्रभाव कम है। यह इलाका कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का सियासी किला है।
यह भी कहा जाता है कि बीआर पाटिल के मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे और राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री प्रियांक खड़गे के साथ अच्छे राजनीतिक ताल्लुकात नहीं हैं।
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बीआर पाटिल के इस्तीफे की खबर जैसे ही कर्नाटक की राजनीति में जोर-शोर से चली तो इसे लेकर काफी हलचल पैदा हुई। जब पत्रकारों ने सिद्धारमैया से इस संबंध में सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि वह पाटिल से बात करेंगे। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, प्रियांक खड़गे का कलबुर्गी में अच्छा असर है और पाटिल लगातार इस बात को महसूस कर रहे थे कि मुख्यमंत्री का करीबी होने के बावजूद उन्हें दरकिनार किया जा रहा है।
राज्य में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तो इस बात की संभावना थी कि पाटिल मंत्री बनेंगे लेकिन कलबुर्गी जिले से प्रियांक खड़गे और एक और विधायक शरण प्रकाश पाटिल को मंत्री बनने का मौका मिला। हालांकि बाद में सिद्धारमैया ने पाटिल को मनाने की कोशिश की और उन्हें अपना पॉलीटिकल एडवाइजर बनाया। लेकिन सूत्रों का ऐसा कहना है कि पाटिल सरकार में उनकी सीमित भूमिका की वजह से नाराज थे।
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कुल मिलाकर पाटिल का इस्तीफा कर्नाटक कांग्रेस के अंदर चल रही उथल-पुथल को दिखाता है। पाटिल ने पिछले महीने कर्नाटक के विधानसभा परिसर में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने धरना दिया था। यह धरना उन्होंने किसानों के लिए एमएसपी को गारंटी देने वाले कानून को लागू करने की मांग को लेकर दिया था।
पाटिल का कहना है कि उन्होंने पहले ही इस्तीफा देने का फैसला कर लिया था और वह कर्नाटक विधानमंडल (प्रिवेंशन ऑफ डिसक्वालीफिकेशन एक्ट) के पास होने का इंतजार कर रहे थे। यह कानून मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के सलाहकारों को विधायक के रूप में अयोग्य ठहराए जाने से बचाने के लिए बनाया गया है।
पाटिल ने कहा कि वह अपना इस्तीफा वापस नहीं लेंगे और ‘कुछ समस्याओं की वजह’ से इस्तीफा दे रहे हैं। कांग्रेस नेता ने कहा कि अपने क्षेत्र में विकास कार्यों को लेकर जो उनकी शिकायत थी, उन्होंने इसे कांग्रेस विधायकों की बैठक में उठाया था लेकिन कुछ नहीं हुआ और इस वजह से उन्होंंने इस्तीफा दे दिया।
जुलाई, 2023 में कांग्रेस की सरकार बनने के कुछ हफ्ते बाद पाटिल ने सीएम सिद्धारमैया को पत्र लिखा था और कुछ मंत्रियों और विधायकों के बर्ताव को लेकर शिकायत की थी। तब इसे लेकर काफी विवाद हुआ था।
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