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जनसत्ता प्रश्नकाल: सेहत और साख दोनों खो चुके नीतीश, चंद हफ्तों के मुख्यमंत्री

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पवन कुमार वर्मा उन चेहरों में शामिल हैं जो राजनीति में शुचिता स्थापित करने के आकर्षण से नौकरशाही छोड़ कर आए। मुख्यधारा के राजनीतिक दलों में शुचिता की ही कमी के कारण उन्होंने जद (एकी) से लेकर तृणमूल कांग्रेस को छोड़ा। बिहार में जन सुराज पार्टी एक नई शक्ति बन कर उभरी है जो वहां की दशा और दिशा बदल देने का दावा कर रही है। यह जाति-धर्म को छोड़ कर शिक्षा और रोजगार के मुद्दे पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही है। प्रशांत किशोर और वर्मा की जोड़ी ने सुशासन पुरुष नीतीश कुमार से नाता तोड़ने के बाद बिहार में ‘जन सुराज’ की जो राजनीतिक चुनौती पेश की है, उसे समझने के लिए वर्मा से बेहतर कौन होता?

मोदी सरकार की मूल गलती का सुधार है GST दरों में कटौती, पी. चिदंबरम का बड़ा सवाल – क्या यह सुधार है या जनता से छलावा?

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आरबीआई बुलेटिन में अर्थव्यवस्था को “लचीला” बताया गया, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी कटौती सिर्फ त्रुटि सुधार है, असली सुधार अब भी अधूरे हैं।

अमेरिका ने ‘तानाशाह’ चुना, लेकिन जनता में तानाशाही का विरोध करने की हिम्मत बाकी; ट्रंप के बेतुके UN भाषण ने लोकतंत्र पर छेड़ी नई बहस

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संयुक्त राष्ट्र महासभा में ट्रंप का भाषण लोकतंत्र बनाम तानाशाही की बहस छेड़ता है; मोदी के दौर से तुलना और अमेरिकी जनता के प्रतिरोध पर तवलीन सिंह का विशेष लेख।

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